Wednesday 14 December 2016

02. खुशवंत सिंह की प्रतिनिधि कहानियां

खुशवंत सिंह की प्रतिनिधि कहानियां।
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राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित खुशवंत सिंह की इक्कीस चुनी हुयी कहानियां पढने को मिली। खुशवंत सिंह की कहानियां साहित्यिक तो नहीं कही जा सकती लेकिन अपने कहने के ढंग से काफी रोचक जरूर हैं। इनमें साहित्यिकता की बौद्धिकता  न होकर हृदय की कोमलता है।
इस संग्रह की प्रथम कहानी 'कर्म' एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है जो स्वयं को अंग्रेजों के समकक्ष बनाये रखने का प्रयास करता है लेकिन एक दिन वही अंग्रेज लोग उसका आवरण उतार देते हैं, यह एक हास्य व रोचक कहानी है, इसी श्रेणी की अन्य कहानी है 'जल हिंदिया की प्रथम यात्रा'।
  'विष्णु का प्रतीक' व ' नास्तिक' दोनों कहानी धर्म व ईश्वर के अस्तित्व को रेखांकित करती है, दोनों ही सार्थक कहानियां है। वहीं 'मांडला की मेम साहब' पारलौकिक विषय पर लिखी गयी कहानी है।
इस संग्रह की अधिकतर कहानियों में कोई न कोई प्रेम प्रसंग अवश्य मिलता है, वहीं एक कहानी भी 'लंदन में एक प्रेम प्रसंग' शीर्षक से है।
कहानी 'साहब की बीवी' एक ऐसे दंपति की कहानी है जिसमें एक पति अपनी पत्नी से कोई संपर्क नहीं रख पाता और एक दिन पत्नी अपने पति का इंतजार करते हुये सदा-सदा के लिए सो जाती है।
अधिकतर कहानियां रोचक है, वहीं 'मिस्टर कंजूस और उनका चमत्कार' एक हास्य कथा है,और ऐसा हास्य 'जल हिंदिया की प्रथम यात्रा' के अंत में भी पाया जाता है।
इस संग्रह की कहानियां 'रेप', 'दंगा' व 'कुसुम' निकृष्ट रचनाएँ लगी।
'मरणोपरांत' स्वयं को आधार बना कर लिखी कहानी है, जिसमें स्वयं के मरण पश्चात् की मार्मिक कथा है।
कहानी 'ब्रह्म वाक्य' हमारे समाज की वास्तविक बयान करती एक अच्छी कहानी है। वहीं 'वह क्यों रुका रहा' कहानी भीष्म साहनी की कहानी 'वाग्चू' की याद ताजा कर देती है।
इस संग्रह में जो कहानी मुझे अच्छी लगी वो है 'कर्म', ब्रह्म वाक्य, जल हिंदिया की प्रथम यात्रा, दंगा।
मैंने एक बार पढा था कि खुशवंत सिंह उच्चवर्ग के लोगों के लेखक है, जिनके लेखन में साहित्य के नाम पर रोचकता व हल्की अश्लीलता पायी जाती है, यह धारणा इस संग्रह से पुष्ट होती है।
हालाकि इस संग्रह में अश्लीलता न के  बराबर है पर रोचकता जरूर है।

खुशवंत सिंह 15.08.1915 -- 20.03.2014
प्रकाशक- नीलकमल प्रकाशन

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