Wednesday 14 December 2016

06. एक कहानी जो मन को छू गयी

   मानवीय संवेदना की कहानी 'चिङिया'
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कुछ कहानियां होती हि ऐसी हैं जो अापके ह्रदय में उतर जाती है, जो भुलाये नहीं भूलती॥
ऐसी हि एक कहानी है "चिङिया" जो अाधुनिक महानगर के संवेदनाहीन संबंधों पर तीव्र प्रहार करती है।
कहानी का मुख्य पात्र स्वयं लेखक है जो एक गाँव के जीवंत परिवेश और संबंधों से जुङा हुआ है।
एक बार लेखक को एक महानगर में नौकरी मिल जाती है, और वह उस संवेदना हीन शहर का तीसरी मंजिल का सदस्य बन जाता है।
यहां लेखक ने बहुत हि खूबसूरती के साथ के शहर के लोगों कि तथाकथित सभ्यता का वर्णन किया है।
बीच वाली मंजिल के शर्मा जी के घर समारोह है और लेखक इंतजार करता है उसे कि भी पङोसी होने के नाते बुलाया जायेगा, पर इंतजार हि रह जाता है।
वहीं एक बार सताईस नंबर के फ्लैट वाले बुजुर्ग दिवाकर जी 'अंकल' शब्द पर नाराज हो जाते हैं।
हद तो तब हो नाती है जब यहाँ के लोग 'राम-राम' शब्द को पुराना बता कर नकार देते हैं।
तब लेखक लिखता है जब सङक पर खङा कुत्ता मुझे देखकर पूंछ हिला देता है तो मुझे आत्मीयता का अहसास होता है।
ऐसे शहर में रहना लेखक के लिए मुश्किल हो जाता है॥
लेखक के इस एकान्त को दूर करती है लेखक के कमरे में आने वाली चिङिया, जिससे लेखक भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाता है और चिङिया कमरे में हि घोंसला बना लेती है।
लेकिन एक दिन लेखक का स्थानान्तरण अन्यत्र हो जाता है।
लेखक जब अपना सामान बांध रहा होता है, तब चिङिया उदास निगाहों से लेखक को देखती रहती है। चाहे चिङिया नासमझ है पर वो महसूस करती है कि लेखक शायद मुझसे दूर जा रहा है। स्वयं लेखक भी इस भावना को महसूस करता है, पर मजबूर है।
लेखक अपना सामान बांध कर नीचे रिक्शे में रख अाता है, और बाकी सामान लेने  के लिए पुनः कमरे अाता है तो स्तब्ध रह जाता है।
कमरे में चिङिया का घोंसला बिखरा पङा है और चिङिया उड गयी॥
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अाधुनिक समय के संवेदनहीन होगे संबंधों पर लिखी गयी एक मार्मिक कहानी है।
यह लेखक कि प्रथम कहानी है।
लेखन-ज्ञानप्रकाश विवेक
प्रथम प्रकाशन- दैनिक ट्रिब्यून, चंडीगढ।

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