Saturday 27 November 2021

477. हत्या की रात- सुरेन्द्र मोहन पाठक

झेरी झील के किनारे हत्या
हत्या की रात- सुरेन्द्र मोहन पाठक, 1967
सुनील सीरीज- 16

महेश कुमार एक बड़े उद्योगपति का ऐय्याश और बिगडैल बेटा था। शहर से दूर स्थापित अपने एक काटेज में लड़कियों को बुलाना और उनके साथ अपनी मनमानी करना महेश कुमार का पसंदीदा शगल था। फिर एक रात महेश कुमार की गोली से बिंधी लाश उसी के काटेज में पाई गयी और अब पुलिस का मानना था कि ऐसी ही किसी लड़की ने जिस पर उसकी पेश नहीं चली थी उसकी ईह-लीला समाप्त कर डाली थी।  
हत्या की रात- पाठक, सुनील 16, svnlibrary
नमस्कार पाठक मित्रो,
    आज हम चर्चा करने जा रहे हैं सुरेन्द्र मोहन पाठज द्वारा लिखित सुनील सीरीज के सोलहवें उपन्यास 'हत्या की रात' की।
जैसा की शीर्षक से विदित होता है यह एक हत्या पर आधारित कथा है और वह हत्या होती है एक रात को।
किसकी हत्या?
किसने की हत्या ?
क्यों की हत्या?

  इन प्रश्नों का उत्तर उपन्यास पढ कर ही जाना जा सकता है। हां, उपन्यास रोचक है। कहानी अच्छी है। 
    राजनगर शहर से कुछ दूर एक झील है, झेरी झील।
      वतीन चार साल पहले झील के आसपास की जमीन खेती-बाड़ी के लिए इस्तेमाल की जाती थी और वह इलाका राजनगर के जीवन और आधुनिकता से एकदम कटा हुआ था। तब झील के किनारे केवल तीन चार ही काटेज थे जिनमें से एक काटेज पार्वती का था और बाकी सब किसानों के झोंपड़े थे । लेकिन बाद में धीरे-धीरे ऐसे परिवर्तन हुए थे कि वहां खेती-बाड़ी का सिलसिला घट गया था। शहर के लोग उस स्थान में पिकनिक स्पाट के रूप में दिलचस्पी लेने थे और फिर कुछ अमीर लोगों ने अपने आराम के लिए काटेज बनवा लिए थे और अब तो सुना गया था कि वहां पर एक बहुत बड़ा होटल और बोटिंग क्लब बनने वाला था।
   यहाँ अब भी बहुत कम लोग रहते हैं लेकिन अपने यहाँ उपन्यास में शामिल तीन परिवारों की बात करते हैं। एक है महेश कुमार।
दूसरा परिवार है पार्वती और उसकी पुत्री मंजुला का।
और तीसरा है प्रताप चंद और उसकी पत्नी इन्द्रा का।
एक रात जब मंजुला महेश कुमार के कॉटेज पर डिनर पर इन्वाइट थी और वह देर रात तक नहीं लौटी तो उसकी माँ पार्वती को बैचेनी होने लगी।
  वहीं अर्धरात्रि को प्रताप चंद ने महेश कुमार के काॅटेज पर गोली चलने की और नारी चीख सुनी।
    सुबह महेश कुमार के काॅटेज पर स्थानीय पुलिस इंस्पेक्टर और पत्रकार उपस्थित थे। राजनगर से ब्लास्ट का प्रतिनिधि सुनील चक्रवर्ती भी उपस्थित था‌। क्योंकि रात किसी ने महेश कुमार की गोली मार कर हत्या कर दी थी।
        स्थानीय पुलिस के स्थान पर इस हत्या की खोजबीन करने का कार्यभार राजनगर के पुलिस इंस्पेक्टर प्रभुदयाल को सौंपा गया था।
इंस्पेक्टर प्रभुदयाल ने स्तही खोजबीन के आधार पर एक संदिग्ध को अपराधी मान कर कारावास में पहुंचा दिया। लेकिन वहीं पत्रकार सुनील चक्रवर्ती की खोजबीन कहती थी की वास्तविक अपराधी कोई और ही है। उसके तथ्य कहते थे कि हत्या की रात वहाँ एक या दो नहीं बल्कि तीन संदिग्ध व्यक्ति उपस्थित थे, और इन्हीं तीनों में से एक वास्तविक अपराधी है।
  अब सुनील को प्रभुदयाल के तथ्यों को खारिज करना था, वास्तविक अपराधी अपराधी को सामने लाना था। अपनी तीक्ष्ण बुद्धिबल से सुनील चक्रवर्ती हत्या की रात के वास्तविक अपराधी को सामने लाने का सराहनीय कार्य कर ही दिया।
   उपन्यास की कहानी बहुत रोचक और रहस्य लिये है। काॅटेज में हत्या की जानकारी से पूर्व ही उपन्यास में रहस्य  अपना जाल बिछाना आरम्भ कर देता है। और जैसे ही पता चलता है की महेश कुमार की हत्या हो गयी तो फिर एक संदिग्ध चेहरा सामने आता है। लेकिन शीघ्र ही एक और चेहरा संदिग्ध दृष्टिगत होने लगता है।
वहीं प्रभुदयाल और सुनील चक्रवर्ती का अन्वेषण अलग-अलग राह पर चलता है। जहां प्रभुदयाल सामने दृष्टिगत हो रहे तथ्यों को वास्तविक मानता है वहीं सुनील की तीक्ष्ण दृष्टि कहती है कि वास्तविकता कुछ और ही है।
  सुनील रमाकांत के सहयोग से अपनी खोजबीन को आगे बढाता है।
यहाँ एक और पात्र सामने आती है, जिसका कांता। कांता आरम्भ में जो चित्रण है, उसका प्रभाव है वह तो एक बार सुनील को भी अचम्भित कर देता है।
“मिस्टर सुनील !”
“यस ।”
“यू आर ए फूल ।” - कांता एक-एक शब्द पर जोर देती हुई बोली।
“व्हाट !” - सुनील चिल्लाया । क्रोध से उसका चेहरा लाल हो उठा।
“यस, आई रिपीट। यू आर ए फूल।

   सुनील के उपन्यासों में यूथ क्लब के मालिक रमाकांत का विशेष योगदान होता है। क्योंकि यूथ क्लब के कुछ कर्मचारी सुनील के लिए कार्य करते हैं‌। प्रस्तुत उपन्यास में‌ भी इनका विशेष सहयोग रहा है।
- रमाकान्त की यूथ क्लब राजनगर की सबसे रंगीन और सबसे आधुनिक क्लब थी। यूथ क्लब के रंगारंग प्रोग्राम और हंगामे राजनगर के उच्च वर्ग के लिए बहुत बड़ा आकर्षण थे। क्लब के सदस्य तो बहुत कम थे लेकिन सदस्यों से चार गुना अधिक संख्या सदस्यों के मेहमानों की हो जाती थी । रमाकांत क्लब का अकेला आर्गेनाइजर था, इसलिए कभी भी रात के तीन बजे से पहले सो नहीं पाता था और इसी कारण वह साधारणतया दोपहर हो जाने के बाद ही सोकर उठता था।
  सुनील सीरीज के इस से पूर्व जो पन्द्रह उपन्यास हैं वे सब कलेवर में लघु हैं। यह उपन्यास काफी विस्तृत और कथा के स्तर पर भी फैलाव किये हुये है। लेकिन इस से पूर्व के जितने उपन्यास हैं वे आकार में छोटे हैं। यहाँ से सुनील के उपन्यासों में काफी परिवर्तन दिखाई देता है।
   'हत्या की रात' एक रोचक  मर्डर मिस्ट्री है। एक हत्या और फिर सुनील और प्रभुदयाल द्वारा अपराधी की खोज करना। दोनों का तरीका भी अलग-अलग है। जहाँ इंस्पेक्टर प्रभुदयाल कुछ स्तरीय तथ्यों के आधार पर परिणाम निकाल लेता है वहीं सुनील तथ्यों और घटनाओं की तह तक जाँच करता है और वास्तविक अपराधी को सामने लाता है।
    उपन्यास रोचक और पठनीय है।
उपन्यास-  हत्या की रात
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
सन् -       1967
सुनील सीरीज -16

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