Friday 26 November 2021

476. खतरनाक ब्लैकमेलर- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

प्रेम,  ब्लैकमेल और हत्या की कहानी
खतरनाक ब्लैकमेलर- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज-14   

इन दिनों किंडल पर कुछ उपन्यास पढे जा रहे हैं। इसी क्रम में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का उपन्यास 'खतरनाक ब्लैकमेलर' भी पढा। यह सुनील सीरीज का चौदहवां उपन्यास है और सुनील का यह तीसरा ऐसा कारनामा है जिसमें ब्लैकमेल पर आधारित है। यह भी दिलचस्प है की इन चौदह उपन्यासों में से तीन ब्लैकमेल पर आधारित हैं और उनमें से दो की कहानी एक जैसे ही है।
    अब कुछ चर्चा उपन्यास कर कथानक पर।
राजनगर टेक्सटाइल मिल का मालिक - रत्न प्रकाश - एक सेल्ज कॉन्फ्रेंस के सिलसिले में विशालगढ गया और जब वहां से लौटा तो उसके साथ एक अनिद्य सुन्दरी थी जिसका परिचय उसने अपनी पत्नी के रूप में दिया । और अब उसकी सैक्रेटरी नीला का दावा था कि रत्न प्रकाश ने न केवल नीला को धोखा दिया था बल्कि वो खुद भी किसी धोखे का शिकार हो गया था। 

  अब सच क्या है झूठ क्या है यह तो खैर सुनील की खोजबीन और उपन्यास का समापन ही बतायेगा।
  ब्लैकमेलर शैतान होता है जिसे एक बार खून‌ पीने की आदत लग जाती है वह उस से छूटती नहीं है। यह भी एक ऐसे ही ब्लैकमेलर की कहानी है।
 

  रत्नप्रकाश की सेक्रेटरी नीला सुनील चक्रवर्ती से मदद मांगने जाती है।

“मैं चाहती हूं कि तुम सन्तोष के पंजे से रत्न प्रकाश को छुड़ाने में मेरी सहायता करो।” - नीला भर्राये स्वर में बोली - “सुनील, यह बात सुनने में बुरी लगती है लेकिन यह हकीकत है कि मैं अब भी रत्न प्रकाश से मुहब्बत करती हूंँ।  मैं उसकी हितचिन्तक हूं । रत्न प्रकाश न जाने किस दबाव में आकर सन्तोष के हाथों का खिलौना बना हुआ है। अगर शीघ्र ही कुछ किया नहीं गया तो वह औरत उसे बरबाद कर देगी । मैं चाहती हूं तुम किसी प्रकार सन्तोष के पिछले जीवन के बखिए उधेड़ डालो। तुम यह पता लगाओ कि सन्तोष का रत्न प्रकाश पर क्या दबाव है और क्यों उसने आनन-फानन सन्तोष से शादी की।
   नीला चाहती है कि सुनील इस सत्यता का पता लगाये की रत्नप्रकाश ने संतोष से शादी क्यों की? कहीं वह किसी ब्लैकमेलिंग का शिकार तो नहीं बन गया? 


  और सुनील इस कार्य को स्वीकार भी करता है। वह संतोष के संबंध में कुछ जानकारी एकत्र करता है, तब उसे नाम सुनाई देता है 'सबरवाल बिल्डिंग' का। जहाँ 'स्टार क्लब' नाम का एक क्लब चलता है। जिसे निरंजन सिंह और अरुणा चलाते हैं।
    जब सुनील सबरवाल बिल्डिंग में संतोष के संबंध में जानकारी प्राप्त करना चाहते है तो अपने ही डर से स्टार क्लब के संचालक उसे वहाँ से भगाना चाहते है।
   सुनील के एक और नया नाम सामने आता  है ठाकुर रुद्र सिंह का। जो कभी विशालगढ का एक अमीर व्यक्ति था जो आज राजनगर में एक शराबी और बदहाली‌ का
जीवन बिता रहा था। ठाकुर से हुयी‌ मुलाकात सुनील के समक्ष कई महत्वपूर्ण रहस्य उजागर करती है।
    अच्छा, एक बात और...उपन्यास सुनील का है, ब्लैकमेलिंग पर आधारित है तो यह तय है कि इसमें हत्या अवश्य होगी। जी हां, यहाँ भी एक हत्या होती है और हत्या में प्रयुक्त हथियार सुनील के पास से इंस्पेक्टर प्रभूदयाल बरामद करता है।
    सुनील तो जहाँ रत्नप्रकाश, संतोष और नीला की प्रेम कहानी और ब्लैकमेलिंग के विषय पर खोज कर रहा था लेकिन उसके तो स्वयं हत्या की मुसीबत गले आ पड़ी।
   लेकिन किस्मत का धनी। हाँ, किस्मत का इसलिये की उपन्यास के अंत में उसे एक गवाह संयोग से ही‌ नजर आ जाता है।
    किस्मत का धनी और तीव्र बुद्धि का स्वामी, खोजी पत्रकार सुनील कुमार चक्रवर्ती अनंत असली अपराधी का पता लगा ही लेता है। वह कहां एक तरफ एक हत्या की पहेली को सुलझाता है वहीं वह नीला द्वारा दिये गये कार्य को भी सम्पन्न करता है और एक ब्लैकमेलर का रहस्य भी उजागर करता है।
    उपन्यास में नीला और रुद्र सिंह का कारण किरदार चाहे कम समय का है लेकिन दोनों का कि
किरदार प्रभावित करता है। दोनों का ही पाठक को भावुक कर जाते हैं।
सुनील की सोच भी ठाकुर के प्रति यही होती है- ठाकुर रुद्रसिंह का चरित्र उसके मस्तिष्क को बुरी तरह मथ रहा था। अपने तमाम ऐबों के बावजूद ठाकुर उसे बुरा आदमी नहीं लगा था।
   सुनील सीरीज में एक अहम पात्र होता है इंस्पेक्टर प्रभुदयाल। इस उपन्यास में भी उपस्थित है, यहाँ प्रभुदयाल की पत्नी कला और बच्चों का वर्णन है। हालांकि यह चित्रण बहुत कम है।
- प्रभू की पत्नी बहुत शर्मीली थी। उसके दो छोटे-छोटे लड़के अपनी मां से चिपटे खड़े थे।
   सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों में 'स्प्रिंग वाले गेट' और फिर गेट बंद करते एक 'झीरी' का रह जाना साधारण मिल जाता है। यह वर्णन इस उपन्यास में भी है।

“क्योंकि फ्लैट के मुख्य द्वार में स्प्रिंग वाला ताला फिट है । द्वार बन्द होते ही ताला अपने-आप बन्द हो जाता है । इसलिये यह मेरी आदत बन गई है कि बाहर जाते समय मैं चाबियां साथ लेकर जाती हूँ।”
   जैसा की मैने आरम्भ में वर्णन किया था सुनील सीरीज के आरम्भ के चौदह उपन्यासों में से तीन ब्लैकमेलिंग पर आधारित है। उपन्यास 'ब्लैकमेलर की हत्या', 'शैतान की मौत' और एक यह प्रस्तुत उपन्यास ' खतरनाक ब्लैकमेलर' यह तीनों उपन्यास ब्लैकमेलिंग पर आधारित है।
जब आप उपन्यास 'खतरनाक ब्लैकमेलर'' पढते हो तो आपको सहज ही उपन्यास 'शैतान की मौत' की याद आयेगी।
दोनों उपन्यासों का कथानक एक ही है। हां, प्रस्तुतीकरण इतना अलग है की आप सहज अनुमान नहीं लगा सकते की दोनों उपन्यासों का कथानक एक ही है।
  जब 'खतरनाक ब्लैकमेलर'' की नीला सुनील से कहती है की रत्नप्रकाश ब्लैकमेल हो रहा है। तो आपको सहज ही 'शैतान की मौत' की 'आरती भण्डारी' याद आ जायेगी।
  जब नीला यह कहती है की संतोष के बैंक अकाउंट में दो किश्तों में अस्सी हजार रुपये निकल गये तो आपको आरती भण्डार के पिता का कथन याद आ जायेगा।
- चालीस हजार रुपये की रकम केवल दो चैकों की सूरत में बैंक से निकाली गई है। दोनों चैक बीस-बीस हजार रुपये के थे और पिछले दो महीनों में कैश करवाये गये थे।( शैतान की मौत)
- अस्सी हजार रुपये केवल दो बार में चालीस-चालीस हजार के दो चैकों की सूरत में निकाले गये थे। (खतरनाक ब्लैकमेलर)
  और दोनों उपन्यास में ब्लैकमेलिंग का कारण भी एक ही घटना है, बस दोनों का रूप अलग-अलग है। 
    प्रस्तुत उपन्यास 'खतरनाक ब्लैकमेलर' ब्लैकमेलिंग पर आता एक रोचक और पठनीय उपन्यास है।‌ कहानी जिज्ञासा पैदा करने वाली है।

उपन्यास-  खतरनाक ब्लैकमेलर
लेखक   - सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज- 14

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