Sunday 28 November 2021

478. काला मोती- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

सुनील का तृतीय अंतरराष्ट्रीय अभियान
काला मोती- सुरेन्द्र मोहन पाठक, 1968
सुनील सीरीज- 18
सेंट्रल पार्क में पायी गयी एक अचेत युवती जैसी एक मामूली खबर को सुनील ने सिर्फ सनसनी फैलाने के लिए अखबार में छपवा दिया था लेकिन वो‌ नहीं जानता था कि ऐसा करके उसने एक युवती को कई पार्टियों के आकर्षण का केन्द्र बना दिया था।
अब हर पार्टी का केवल एक ही‌ मकसद था- युवती का खात्मा या उस पर कब्जा। 

  - कौन थी वह युवती?
-   वह से सेंट्रल पार्क में अचेत अवस्था में कैसे पायी गयी?
-  कुछ लोग उस का खात्मा क्यों करना चाहते थे?
- आखिर क्या रहस्य था उस युवती में?

सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित एक रहस्य कथा है 'काला मोती'। जिसे पढें और जानें उक्त प्रश्नों के उत्तर। 
     पठन की दृष्टि से 'किंडल' एक उपयोगी प्लेटफार्म है। किंडल के अथाह सागर म बहुत से मोती हैं। उन मोतियों में से मैंने सुरेन्द्र मोहन पाठक द्वारा लिखित 'काला मोती' चुना। 
  'काला मोती' सुनील सीरीज का 18वां उपन्यास है। और यह सुनील का सीक्रेट सर्विस एजेंट और अंतरराष्ट्रीय अभियान का तृतीय उपन्यास है। इस से पूर्व सुनील 'हाॅगकाॅग में हंगामा' और 'खतरनाक अपराधी' में सीक्रेट सर्विस के एजेंट के रूप में अंतरराष्ट्रीय अभियानों पर जा चुका है।
       'काला मोती' उपन्यास का आरम्भ एक विदेशी युवती से होता है जो सेंट्रल पार्क में अचेत अवस्था में पायी जाती है। उसके पीठ पर कुछ निशान भी गुदे हुये हैं। सुनील उस युवती की खबर को सनसनी की दृष्टि से 'ब्लास्ट' नामक अखबार में प्रकाशित कर देता है।
समाचार था - नौजवान विदेशी लड़की सैंट्रल पार्क के घने कुन्ज में अचेत पाई गयी।
      कर्नल मुखर्जी सैन्ट्रल इन्टैलीजेंस ब्यूरो की एक नव संस्थापित शाखा स्पेशल इन्टैलीजैंस के डायरेक्टर थे और सुनील स्पेशल इन्टैलीजैंस का सदस्य था। स्पेशल इन्टैलीजैंस के सभी सदस्य ऐसे थे जो पहले से ही कहीं काम धन्धों में लगे हुए थे और जिनके जासूस होने के विषय में कोई स्वप्न में नहीं सोच सकता था।
सुनील पेशे से पत्रकार है, और स्पेशल इन्टैलीजैंस का सदस्य भी।
   कर्नल मुखर्जी सुनील‌ को उस युवती की अहमियत बताते हैं और सुनील को कहते हैं- “वर्तमान स्थिति में हम चाहते यह हैं कि लड़की हमारे अधिकार में रहे और इस बात की पब्लिसिटी भी न हो कि उसमें सरकारी तौर पर कोई दिलचस्पी ली जा रही है।”
    कर्नल मुखर्जी ही नहीं कुछ और भी लोग हैं जो इस युवती को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं या फिर उसका खात्मा करना चाहते हैं।
  कू ओ एक चाईनीज लड़की थी। जो करीम और सामू को लड़की का खात्मा करने की जिम्मेदारी देती है।
“सामू।” - कू ओ अखबार में छपी तस्वीर की ओर संकेत करती हुई बोली - “इस लड़की की हत्या करनी है। लड़की सिविल हस्पताल में है। स्कीम करीम की होगी। काम तुम्हें करना है। इस काम में सफलता बहुत जरूरी है।”
  
       वहीं एक अमेरिकन पार्टी भी इस युवती में दिलचस्पी रखती है।
मुकन्द माली अमेरिकन एजेन्ट था जो अमेरिकन हैरी फ्रिच के साथ मिलकर एक प्लान बनाता है।
माली !” - फ्रिच उसे अखबार में छपी ऐरिका ओल्सन की तस्वीर दिखाता हुआ बोला - “इस तस्वीर को देखो।” 
“क्या यही वह एमरजेन्सी है, जिसका चीफ ने जिक्र किया था ?” - मुकन्द माली तस्वीर देखता हुआ बोला।
“हां ।” 
“क्या मामला है ?”
“यह लड़की सैंट्रल पार्क में बेहोश पाई गई थी।”
“है कौन ?”
“इसका नाम ऐरिका ओल्सन है । चीफ का कथन है, यह लड़की चीनी वैज्ञानिक फैंग-होह-कंग की रखैल है।..................  यह लड़की इस समय सिविल हस्पताल में है । हमें इसे हस्पताल से उड़ा कर लिंक रोड स्थित एक इमारत में पहुंचा देने का आर्डर मिला है। इस आपरेशन के लिये तुम्हें चुना गया है।”

   अब हर कोई इस लड़की के पीछे था। सुनील उसे सुरक्षित रखना चाहता था। चाइनीज उसको‌ मारना चाहते थे और अमेरिकन उस अपने कब्जे में लेना चाहते थे। पार्क में अचेत वह युवती सबके‌ किए विशेष बन गयी थी।
     यहाँ यह देखना रोचक है की कब कौन, कौनसी चाल चलता है और कब कौन किसको‌ मात देता है।  यह घटनाक्रम मुझे बहुत रोचक लगे थे। जब एक ही कार्य पर तीन-तीन दल कार्यरत हों और उन सभी का उद्देश्य भी अलग हो। यहाँ सभी एक दूसरे की बाजी पलटते नजर आते हैं।  पता ही नहीं चलता कब कौन किसको‌ मात दे जाये।
    हालांकि सुनील एक- दो जगह आगे बढता है लेकिन करीम और माली की पार्टियां उसे डाॅज दे जाती हैं। वहीं लड़की भी एम्नीसिया की शिकार है।अपने विषय में सब भूल चुकी है।
  लेकिन सुनील हाथ एक सूत्र लगता है और उसे पता चलता है की लड़की का संबंध चीन के वैज्ञानिक फैंग होह कंग से है, और लड़की काला मोती के विषय में जानती है।
   लेकिन इस कड़ी का एक सूत्र हाॅगकाॅग में है। उसी सूत्र की तलाश में सुनील हाॅगकाॅग को निकलता है। और संयोग से चीनी और अमेरिकन भी वहाँ जा पहुंचते हैं। जो की सुनील की सफलता में बडी समस्या है।
  उपन्यास का अंत हाॅगकाॅग में होता है लेकिन अंत एक अधूरापन सा लिये समाप्त हो जाता है।
    उपन्यास की कहानी रोचक है। सुनील का यह अभियान पूर्णतः इन्टैलीजेंस से संबंधित है इसका उसके पत्रकार जीवन से संबंध नहीं है। उपन्यास में घात-प्रतिघात वाले दृश्य रोचक और पठनीय है। हां, उपन्यास का अंत कुछ निराश करता है।
'काला मोती' उपन्यास एक रहस्य से आरम्भ होता है। और फिर यह एक्शन में परिवर्तन हो जाता है। और यहाँ बहुत ही रोचक भी होता है। उपन्यास का अंत हाॅगकाॅग में एक अलग अंदाज में होता है।
उपन्यास- काला मोती
लेखक  -   सुरेन्द्र मोहन पाठक
सन् -    ‌‌‌‌‌‌‌    1968
सुनील सीरीज- 18

1 comment:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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