Monday 8 November 2021

471. रक्त तृष्णा- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय

दरवाजे पर खड़ी है डायन
रक्ततृष्णा- चन्द्रप्रकाश पाण्डेय

    अगर हम कहें की चन्द्रप्रकाश पाण्डेय ने लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में हाॅरर साहित्य को एक नया आयाम दिया है, सार्थक और तर्क संगत कहानियों के साथ इस साहित्य को स्थापित किया है तो यह कोई अतिशयोक्तिपूर्ण कथन नहीं है।
  चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी ने परम्परागत चली आ रही डरावनी कहानियों को जो नया रुप दिया है, उसमें कथा भी है और तर्क भी है। और वह कथा और तर्क पाठको को प्रभावित करने में सक्षम भी हैं।
    हाॅरर उपन्यासों की श्रेणी पारलौकिक में चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी वर्तमान में एक सक्षम और सशक्त हस्ताक्षर बन कर उभरे हैं।
   मैंने इनके अधिकांश उपन्यास पढे हैं जो मुझे बहुत रूचिकर लगे, इस से पूर्व मैं हाॅरर उपन्यास न के बराबर ही पढता था।
     अब बात करते हैं इनके उपन्यास 'रक्ततृष्णा' की। जिसका शाब्दिक अर्थ है- रक्त पीने की इच्छा। 
‘यदि आप वाकई मजबूत कलेजे वाले इंसान हैं तो ही डायन के अस्तित्व को परखने की कोशिश कीजियेगा क्योंकि अगर एक बार आपने उसकी कायनात को छेड़ दिया तो आपकी जिंदगी साधारण नहीं रह जायेगी। उसके वजूद को करीब से देखने की आपको कीमत चुकानी होगी।’ 
    यह कहानी है साकेत नामक एक शिक्षित युवा की जो कभी डायन के अस्तित्व को मानता नहीं है, लेकिन‌ साकते की दादी मरते वक्त उसके कान में एक ही शब्द फुसफुसाती है और वह शब्द है डायन।
         साकेत सोचता है दादी ने उसे हर तरह की कहानियाँ सुनाई थी पर दादी ने कभी डायन की कहानी नहीं सुनाई तो फिर दादी ने अंतिम समय में उसके कान में डायन क्यों कहा। यही प्रश्न साकेत को उद्वेलित करता है तथा कुछ और रहस्यमयी घटनाएं साकते को विवश कर देती हैं की वह डायन के अस्तित्व का पता लगाये। लेकिन यह भी तय था डायन के वजूद को करीब से देखने की आपको कीमत चुकानी होगी।’
     आखिर क्या रहस्य था डायन का?
     क्या साकेत उसका पता लगा पाया?
     डायन के अस्तित्व का पता लगाने की क्या कीमत चुकानी पड़ी साकेत को?
     आखिर दादी ने मरते वक्त उसके कान में डायन क्यों कहा?

     पाठक मित्रो, आप चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी का उपन्यास 'रक्ततृष्णा' पढे। आपको उक्त प्रश्नों के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ रहस्यमयी और हैरतजनक पढने को मिलेगा।
    उपन्यास का आरम्भ होता है जून 1998 पश्चिम बंगाल से। लेकिन यह घटनाक्रम कहानी की भूमिका मात्र है। वास्तविक कहानी का संबंध बहराइच, उत्तर-प्रदेश, दिसम्बर 2015 से। जहाँ कथानायक साकेत का घर है।
     साकेत की दादी अस्पताल में अंतिम सांस ले रही है, तब साकेत दादी से मिलने आता है। अंतिम समय में दादी साकेत के कान में 'डायन' शब्द बोलती है।
     साकेत नहीं समझ पाता की आखिर दादी ने यह शब्द क्यों कहे। दादी की मृत्यु पश्चात साकेत को यह पता चलता है की अंतिम समय में दादी अर्द्ध विक्षिप्त हो गयी थी और दादी कहती थी डायन दरवाजे पर आ गयी है।
         साकेत को कुछ और भी रहस्यमयी घटनाओं की जानकारी होती है जैसे जंगल में मन्दिर के पास रहस्यमय खुदाई, गाँव के एक व्यक्ति का डायन को देख कर पागल हो जाना।  एक बार जब साकेत उस रहस्यमय-मंदिर और तालाब की ओर जाता है तो उसे वहाँ एक रहस्यमय औरत मिलती है जो स्वयं का नाम सुनस्त्रा बताती है। उसका दावा है की वह डायन के दर्शन करवा सकती है पर उसके कुछ नियम है। और नियमों को तोड़ने का मतलब मृत्यु है और डायन से साक्षात्कार का अर्थ भी यही है। अब निर्णय साकेत को करना था।
    साकेत अपनी हर बात अपनी भाभी से शेयर करता है।  और सुनस्त्रा का किस्सा भी-“यही बात मुझे भी परेशान कर रही है भाभी।” साकेत के लहजे में उलझन थी- “वे किसी ऐसी डायन की बात कर रही थीं, जो घने जंगल में मौजूद मंदिरों के खण्डहर में रहती है और हर पूर्णिमा की रात तालाब में नहाते हुए भयानक गीत गाती है।”
     अब साकेत को निर्णय लेना था- अगर दादी की मौत के राज़ से वाकिफ़ होना है और हवेली पर मंडरा रहे डायन के खौफ की जड़ों तक पहुँचना है तो जोखिम लेना ही होगा क्योंकि दरिया के किनारे खड़े रहकर उसकी गहराई का सटीक अंदाजा कभी नहीं लगाया जा सकता।
      डायन के रहस्य को जानने के‌ लिए साकेत जा पहुंचता है मौत के उस रास्ते पर जहाँ थी रक्त तृष्णा।
    अरे! अभी एक और महत्वपूर्ण पात्र तो शेष है।
सुनहरे बॉर्डर वाली काली साड़ी में लिपटी उस महिला के नैन-नक्श निहायत ही तीखे थे, जो अपनी बांह पर तह किया हुआ एक पुराना कम्बल लटकाए हुए घाट की सीढ़ियाँ उतर रही थी। उसका कद साढ़े पांच फीट से निकलता हुआ था और काठी पूरी तरह संतुलित थी। उसके मुखड़े और हाव-भाव से ये कतई नहीं लग रहा था कि उसकी उम्र चौबीस या पच्चीस साल से अधिक होगी।
          यह रहस्यमयी पात्र है- प्रियदर्शिनी। पूरे उपन्यास में प्रियदर्शिनी एक रहस्य के आवरण में लिपटी नजर आती है। अपने प्रथम आगमन पर यह पाठक पर ऐसा प्रभाव छोड़ती है की आगे पाठक इस पात्र से मिलने को व्याकुल हो उठता है।
    एक आशा है भविष्य में यह पात्र किसी और उपन्यास में नजर आना चाहिये।
     उपन्यास की कहानी कहने को मात्र एक डायन की कहानी है, लेकिन यह मात्र इनती ही कहानी नहीं है। इसका फलक पश्चिम बंगाल, वाराणसी और बहराइच तक विस्तृत है। यह विस्तार क्षेत्र रूप में ही नहीं काल अनुरूप में भी विस्तृत है।
     कहानी साकेत की इस खोज से सम्बन्ध रखती है की क्या डायन होती है। साकेत के जीवन में कुछ ऐसे संकेत आते हैं जो उसे विवश करते हैं की वह डायन‌ के अस्तित्व, दादी के अंतिम शब्द और दरवाजे पर डायन आ गयी किवंदती को परखे और वास्तविकता का पता लगाये। लेकिन यह इतना सुगम कार्य तो नहीं था। क्योंकि साकेत को रहस्यमय सुनस्त्रा यह भी कहती है की डायन‌ के अस्तित्व को परखने का तात्पर्य है अपने जीवन से हाथ धोना। 
     साकेत के लिए जहाँ हर एक घटना पहेली है। जैसे दादी के शब्द, दरवाजे पर डायन, उसके घर का डायन से क्या संबंध?, जंगल में रहस्य औरत।
       इस कथा के अतिरिक्त भी कहानी में काफी ट्विस्ट और भी उपस्थित हैं। हाँ, उपस्थित तो वाराणसी का एक कंजूस मकान मालिक भी है। खैर, मकान मालिक का किरदार तो आप उपन्यास में पढें तो ज्यादा अच्छा रहेगा।
      कहानी की बस से बड़ी विशेषता है रहस्य और जिज्ञासा। किसी भी कहानी में यह दो सशक्त स्तम्भ होते हैं और रक्ततृष्णा तो इन दो स्तम्भों पर ही आधारित है। हर पृष्ठ यह जिज्ञासा बलवती होती है की आगे क्या होगा। हर पृष्ठ स्वयं में रहस्य समेटे हुये है, सिर्फ पृष्ठ ही नहीं उपन्यास के अधिकांश पात्र भी रहस्य के आवरण में लिपटे नजर आते हैं।
      पाठक मित्रो, अगर आप हाॅरर साहित्य में रूचि रखते हैं तो यह उपन्यास आपकी उम्मीद पर खरा उतरेगा, यह मेरा विश्वास है।
    
उपन्यास में कुछ संवाद रोचक और पठनीय है। कुछ संवाद यहाँ उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत हैं। कुछ संवाद सुक्तियों की तरह हैं तो कुछ कथाक्रम का अंश हैं जो कहानी को आगे बढाने और विषयवस्तु को स्पष्ट करने में सहायक हैं।
- शिक्षा रोशनी की तरह है, जो हमें रास्ता दिखाती है। ये हम पर निर्भर करता है कि उस रोशनी के सहारे हम किस रास्ते पर आगे बढ़ते हैं।”
जंगल में खामोशी का मतलब ये तो नहीं होता कि जंगल में शेर नहीं है?”
- मत भूलो कि वह एक डायन है और एक डायन के लिए अपमान को बर्दाश्त कर पाना नामुमकिन की हद तक मुश्किल होता है।
-डायन एक खूबसूरत औरत होती है, जो हमेशा जवान रहने की ख्वाहिशमंद होती है। अपनी उम्र को बढ़ने से रोकने के लिए वह छोटे बच्चों को चुराती है और उन्हें खाकर अपने बालों में सफेदी और चेहरे पर झुर्रियाँ आने से रोकती है। वीरानों में अकेले टहलने वाली खूबसूरत और जवान औरत अक्सर डायन ही होती है।

         उपन्यास पढते वक्त एक बात स्पष्ट होती है वह है लेखक का विषय वस्तु के प्रति अध्ययन। लेखन ने प्रचलित अवधारणाओं और कुछ अप्रचलित या धर्म विशेष में प्रचलित किंवदंतियों और धारणाओं का बहुत अच्छे से प्रयोग किया है।
   हाँ, कुछ शब्द ऐसे हैं जो सामान्यतः पाठक नहीं समझ पाता उनकी अलग से जानकारी दी जाती तो अच्छा रहता।
जैसे-मिस्टिसिज्म व विचक्रउन्हों
       चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी की रचना 'रक्त तृष्णा' हाॅरर श्रेणी में एक अलौकिक (Paranormal) कथा है। यह आम प्रचलित हाॅरर कथाओं से अलग और तर्कपूर्ण कहानी है। उपन्यास की कहानी कसावट, तीव्रता और रहस्य से परिपूर्ण है।
उपन्यास-  रक्त तृष्णा
लेखक -    चन्द्रप्रकाश पाण्डेय
फॉर्मेट-     EBook on kindle

लेखक की उपलब्ध अन्य कृतियाँ
(प्रकाशन क्रम के अनुसार)
  1. फिर वही खौफ (हॉरर थ्रिलर)
  2. अवंतिका (माइथालॉजिकल थ्रिलर)
  3. मौत के बाद (हॉरर थ्रिलर)
  4. आवाज़ (पैरानॉर्मल थ्रिलर)
  5. विषकन्या (माइथालॉजिकल थ्रिलर)
  6. अनहोनी (पैरानॉर्मल थ्रिलर)
  7. रक्ततृष्णा (हॉरर थ्रिलर)

2 comments:

  1. उपन्यास के प्रति रुचि जगाता आलेख। जल्द ही इसे पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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  2. बहुत सुंदर समीक्षा सर जी मैंने भी यह उपन्यास आज खत्म किया वाकई कहानी बहुत जबरदस्त है हालांकि डरावनी नही कह सकते लेकिन जिस तरह से डायन से चंद्रप्रकाश जी ने हम पाठकों को रूबरू करवाया है वह बहुत ही काबिलेतारीफ है वाकई इसे पढ़कर लगा कि हां यह उन डायन की कहानियों से बहुत अलग थी जो हॉरर शो या फिर किस्से कहानियों में बचपन से सुनते हुए आया हु वाकई में डायन होती है या नही यह तो कह नही सकता लेकिन लगता है अगर होती है तो इस तरह की भी हो सकती है जो अभी तक छवि बनी थी डायन के प्रति यह डायन बहुत ही भिन्न है उन डायनों से असल मे क्या है नही मालूम लेकिन लिखा बहुत ही शानदार और जानदार है चंद्रप्रकाश जी ने मजा आ गया।

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