Wednesday 2 June 2021

437. महंत द गाॅडफादर- अमिताभ कुमार

धर्म- राजनीति और अपराध का केन्द्र
महंत- The Godfather- अमिताभ कुमार

  भारत एक धार्मिक देश है। भारत के मूल में धर्म और आध्यात्मिक है लेकिन बदलते परिवेश में धर्म अपने विकृत रुप को प्राप्त हो रहा है। और जब धर्म राजनीति का आश्रय प्राप्त कर अपराध की तरफ बढता है तो उसका चेहरा और भी विकृत हो उठता है। धर्म जब राजनीति और अपराध का केन्द्र बन जाता है और उसी अमिताभ कुमार ने अपनी रचना 'महंत- द गाॅडफादर' में अभिव्यक्त किया है। 

09.11.2020
   इस रचना पर लेखक महोदय का कथन भी देख लीजिएगा- आज सूचना और प्रौद्योगिकी के आधुनिक समय में भी अनपढ और अशिक्षित क्या, पढे-लिखे और तथाकथित सभ्य लोग भी धर्म के नाम पर अपना सब कुछ लूटा रहे हैं। लोगों की धार्मिक भावनाओं का लाभ लेने के लिए आज धर्म के ठेकेदारों में होड़ मची हुई है। धर्म के नाम पर यह धर्म के ठकेदार धर्म का व्यवसाय करके अकूत सम्पत्ति एकत्रित कर, विलासपूर्ण जीवन जी रहे हैं।....सन् साठ और सत्तर के दशक में ये तथाकथित धर्मगुरु परोक्ष रूप से राजनीति और अपराध को नियंत्रण करते थे। अब प्रत्यक्ष रूप से राजनीति में आकर शासन कर रहे हैं और सक्रिय रूप से विभिन्न अपराधों में लिप्त हैं।
   प्रस्तुत कथानक धर्म के इन्हीं विभिन्न रूपों का एक छोटा प्रयास है। (लेखकीय)

    अब चर्चा करते हैं उपन्यास कथानक की। यह कहानी है एक सामान्य से बालक कमलेश की, कमलेश से काली पाण्डे और फिर महंत कमलेश्वर बनने की।
      इस कथा का प्रथम अंश एक सामान्य बालक कमलेश के जीवन पर आधारित है जो परिस्थितियों के चलते एक आपराधिक कृत कर काली पाण्डे बनता है।
      उपन्यास में द्वितीय अंश है वह धर्म राजनीति और अपराध के मिश्रण का।
धर्म और राजनीति आज अपराध का केन्द्र बन गये हैं। इस उपन्यास को पढते वक्त यह धारणा और भी मजबूत होती है।
      सत्ता के लालच में राजनेता कैसे -कैसे लोगों को प्रश्रय देते हैं इसका उदाहरण गिरजाशंकर और कालीपाण्डे है।
वहीं धर्मस्थल भी आज अपराध और वासना के केन्द्र बन गये हैं। इसका अच्छा उदाहरण उपन्यास में है।
 
विधायक गिरजाशंकर उपन्यास में खल पात्र के रूप में चित्रित किया गया है। उपन्यास में मुख्यतः धर्म और राजनीति का संगम दिखाया गया है। गिरजाशंकर अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
  वह कालीपाण्डे के साथ राजनीतिक खेल खेलता है। जरूरत अनुसार व्यक्ति का इस्तेमाल करना वह जानता है।
   उपन्यास में जहाँ राजनीति का अनावरण किया गया है वही मठों के अंदर का घृणित जीवन भी चित्रित किया गया है।
साधु-संत एक तरफ जहाँ जनता को प्रवचन देते हैं वहीं स्वयं उनका जीवन अय्याशी से भरा होता है।
    प्रस्तुत उपन्यास में भी मंगलेश्वर जैसे साधु लोगों मठ में अय्याश व्यक्ति का जीवन जीते नजर आते हैं।
उपन्यास में कुछ संवाद वास्तव में बहुत अच्छे हैं। ये संवाद जहाँ पात्र का परिचय देते हैं वहीं वर्तमान परिस्थितियों का चित्रण भी करते हैं।
-जनता को अब विकास और जनकल्याण से सरोकार नहीं रह गया। लोग अब धर्म और जाति के आधार पर दल का चुनाव कर रहे हैं, दल के कार्य के आधार पर नहीं। (पृष्ठ-111)
"राजनीति में...जिसका मुँह देखना पसंद नहीं, उसका पिछवाड़ा देखना पड़ता है। (पृष्ठ-224)
बहुत समय पूर्व मैंने इण्डिया टुडे में अयोध्या के धर्मगुरुओं का काले चरित्र पर एक आर्टिकल पढा था उसी आर्टिकल से मेरे मन में इच्छा थी की इस विषय पर कोई विस्तृत रचना पढी जाये। 'महंत-द गाॅडफादर' उपन्यास देख कर यह इच्छा और बलवती हो उठी। पर उपन्यास में उस स्तर या तार्किक स्तर का कुछ भी न था जो उस आर्टिकल में था।
क्योंकि प्रस्तुत रचना में बहुत कुछ और कहना बाकी रह गया। एक तो यह रचना अनुवाद है और इसका अनुवाद कृत्रिम प्रतीत होता है और दूसरा कहानी में बहुत कुछ अतार्किक सा नजर आता है।
उपन्यास- महंत -द गाॅडफादर
लेखक-    अमिताभ कुमार
प्रथम संस्करण- 2014
प्रकाशक- दिव्यांश पब्लिकेशन
पृष्ठ- 303

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