Tuesday 8 June 2021

438. बैंक वैन राॅबरी- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

विमल के विस्फोट संसार की छटी झलक
बैंक वैन राॅबरी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

यात्रा के दौरान मेरे पास एक-दो उपन्यास होते हैं जो मेरी यात्रा को सुखद बनाते हैं।
      ग्रीष्मकालीन अवकाश के पश्चात पुनः विद्यालय आरम्भ हो गये। Lockdown की वजह से विद्यालय जल्दी बंद हो गये थे और इस बार विद्यालय जल्दी खुल भी गये। इस बार घर से विद्यालय जाते वक्त प्रस्तुत उपन्यास मेरा साथी था। 
बैंक वैन राॅबरी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

आपके प्रिय पात्र सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल उर्फ विमल कुमार खन्ना उर्फ गिरीश माथुर उर्फ बनवारी लाल तांगेवाला उर्फ रमेश कुमार उर्फ कैलाश मल्होत्रा उर्फ बसंत कुमार मोटर मैकेनिक उर्फ नितिन मेहता उर्फ कालीचरण उर्फ आत्मा राम उर्फ पेस्टन जी नौशेरवानजी घड़ीवाला उर्फ अरविंद कौल उर्फ राजा गजेन्द्र सिंह का हौलनाक कारनामा। 
        कुछ लोगों की जिंदगी ही ऐसी होती है जिसमें उन्हें कभी चैन नसीब नहीं होता। परेशानियां और विपरीत परिस्थितियाँ उनके जीवन को मुश्किल बना देती हैं।
   ऐसा ही जीवन है विमल का। जी हां, विमल का।
विमल सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का एक विशेष पात्र है जो वक्त का मारा हुआ है। हर बार उसकी कोशिश यही होती है की वह शांति से अपना जीवन जीये पर ....यह उसके लिए कभी संभव न हो सका।
'बैंक वैन राॅबरी' का ही किस्सा ही ले लो।
विमल शांति से जयपुर के इस्माईल रोड़ पर बसंत कुमार मोटर मैकेनिक बन कर एक सर्विस गैरेज चला रहा था। और उसे लगता था कि नयी जगह और नये काम में‌ उसे कोई पहचान ना पायेगा। और वह एक मैकेनिक की आराम से जिंदगी जी लेगा।
लेकिन सरदार सुरेन्द्र सिंह सोहल की जिंदगी में इत्मीनान कहां। पता नहीं वाहे गुरु उससे कब तक खफा रहने वाला था। पता नहीं दाता अभी उसके और कितने इम्तिहान लेने वाला था। (पृष्ठ-64)
      उसकी जिंदगी में शांति न थी। कोई न कोई शांति भंग करने वाला, उसे पुनः अपराध के रास्ते पर ले जाने वाला आ ही जाता है। और इस बार मानक चौक, जयपुर का SHO शमशेर सिंह ठाकुर।
    वह पचास के ऊपर की आयु का हष्ट-पुष्ट व्यक्ति था। उसके चेहरे पर राजपूतों जैसी उमेठी हुई, बड़ी-बड़ी अधपकी मूँछें थी और उसकी बड़ी-बड़ी विकराल सी लगने वाली आँखों में गुलाबी डोरे शायद हर वक्त मौजूद रहते थे। (पृष्ठ-19)
   और उसने न केवल विमल को पहचाना बल्कि उसे अपने साथ अपराध करने के लिए मजबूर भी कर दिया। और वह अपराध था जयपुर स्थित 'बीकानेर बैंक' की एक वैन को लूटने का। वह वैन जिसमें अड़तालीस लाख रुपये थे।
    
   और एक अक्टूबर 1975 को शमशेर सिंह ठाकुर ने विमल के सहयोग से योजनाबद्ध तरीके से सफलतापूर्वक बैंक वैन राॅबरी कर ली।
    साढे दस बजे तक जंगल की आग की तरह सारे जयपुर में यह खबर फैल गयी कि अड़तालीस लाख की रकम के साथ बैंक की वैन कहीं गायब हो गयी थी। (पृष्ठ-105)
   
   कहानी को दो भागों में विभक्त कर सकते हैं। लूट से पूर्व और लूट के पश्चात। और दोनों जगह कहानी रोमांच ही पैदा करती है।
      दौलत अच्छे-अच्छे लोगों का ईमान खराब कर देती है। यहाँ तो सब दीवाने दौलत के ही थे। कुछ का तो ईमान पहले से ही खराब था। और विमल का कहना था-"मैं धंधे में धोखाधड़ी पसंद नहीं करता।"-(पृष्ठ-37)
  और वही ठाकुर के विचार कुछ और ही थे- आदमी की नियत होनी चाहिए और उसमें इतना हौंसला होना चाहिए कि जो चीज उसे सीधे-सीधे हासिल नहीं, वह उसे झपटकर हासिल कर सके। (पृष्ठ-62)
      उपन्यास का मध्यांतर पश्चात का भाग परस्पर धोखाधड़ी पर आधारित है। अब देखना यह है की कौन किस के साथ धोखा करता है।
कौन सफल होता है? किस को दौलत मिलती है और किस को मौत?

     डकैती आधारित उपन्यास एक तय रास्ते पर ही चलती हैं। सबसे पहले लूट के लिए आदमी एकत्र करना, स्थान की रेकी करना, फिर लूट को अंजाम देना और अंत में‌ परस्पर धोखेबाजी।
हालांकि परस्पर उपन्यास में भी यही कुछ है। लेकिन उपन्यास का प्रस्तुतिकरण इतना अच्छा है की आप कहानी के साथ बंध जाते हैं। लेखक महोदय ने किसी भी घटना को अति विस्तृत नहीं किया जिस से की उपन्यास में नीरसता का कोई स्थान नहीं है। और यही विशेषता उपन्यास की रोचकता में महत्व रखती है।
उपन्यास के पात्र
उपन्यास की यह अच्छी बात है की उपन्यास में पात्र बहुत ही कम हैं। मुख्य पात्र कुल छह हैं और सभी डकैती में शामिल हैं।
विमल उर्फ बसंत कुमार - उपन्यास नायक
शमशेर सिंह ठाकुर- SHO, माणक चौक, जयपुर
तीर्थ सिंह- विमल के गैरेज में काम करने वाला युवक
प्रहलाद कुमार- एक ट्रक ड्राइवर
राजेश- बैंक कर्मचारी
मीना- राजेश की पत्नी

बैंक डकैती पर आधारित यह उपन्यास आदि से अंत तक रोचक है। कहानी की कसावट औए सजावट प्रभावित करती है।
जयपुर के  बीकानेर बैंक बख्तरबंद वैन की दिनदहाड़े लूट की हैरत अंगेज  दास्तान।
आदि से अंत तक रोचक।
एक ही बैठक में पठनीय।
उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- बैंक वैन राॅबरी
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
पृष्ठ-238
प्रकाशक- डायमण्ड पॉकेट बुक्स, दिल्ली

1 comment:

  1. रोचक.. पढ़ने की कोशिश रहेगी....इसलिए भी क्योंकि ये एकल उपन्यास है वरना विमल तो तीन से पहले खत्म ही नहीं होता है.....

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