Sunday 20 June 2021

439. ज्वैलथीफ का हत्यारा- राजकिशोर श्रीवास्तव

एक अपराधी अनजाना
ज्वैलथीफ का हत्यारा- राजकिशोर श्रीवास्तव
  
यह कहानी है शहर बम्बई की। बम्बई, बाॅम्बे और अब मुम्बई समय के साथ-साथ यह शहर अपने नाम बदलता रहा है।
    इस शहर में एक में एक अपराधी है जो जनता के गहने लूटता है। बम्बई पुलिस बहुत कोशिश के  बाद भी उस अपराधी तक नहीं पहुँच पाती। 
ज्वैलथीफ का हत्यारा- राजकिशोर
ज्वैलथीफ का हत्यारा- राजकिशोर श्रीवास्तव
      लेकिन एक दिन उसी अपराधी ज्वैलथीफ की लाश मिलती है। पुलिस के लिए यह हत्या एक पहेली बन कर रह जाती है। पुलिस भी मानती है- ...भयंकर ज्वेलथीफ का हत्यारा असाधारण अपराधी होगा यह तो निश्चित बात है।(पृष्ठ-24)
       इन्हीं घटनाओं के दौरान दिल्ली का प्रसिद्ध जासूस हरीश का अपने साथी राकेश और जाॅली के साथ का आगमन कहानी में होता है। और यह केस उसे दे दिया जाता है।-
"एशिया का माना हुआ जासूस है...। उलझन और पेचीदा केस उन्हीं को सौंपा जाता है, उनके सूझबूझ के सामने बड़े से बड़ा और चालाक अपराधी ज्यादा दिन नहीं टिक पाता और कानून की गिरफ्त में आ जाता है।...।" (पृष्ठ-25)
यहाँ से शुरुआत होती है जासूस और 'अनजाना' नामक अपराधी के मध्य संघर्ष की कथा।      दोनों के मध्य चूहे- बिल्ली का खेल चलता है। जासूस महोदय तब हैरत रह जाते हैं जब उनकी प्रत्येक चाल पर अपराधी बाजी मार जाता है।
     यही बात जासूस हरीश का परेशान करती है की आखिर कोई अपराधी इतना तीव्र मस्तिष्क कैसे हो सकता है।
      और आखिर जासूस हरीश ने अपराधी पर अपना शिकंजा कसा और ज्वैलथीफ के हीरों का पता लगा ही लिया।
      उपन्यास में शहर के एक बदमाश का चरित्र अच्छी तरह से उभारा गया है और उपन्यास में इस पात्र का किरदार है भी अच्छा।
-        राबर्ट शहर का बहुत ही खतरनाक गुण्डा था। उसके हृष्ट-पुष्ट शरीर को देखकर कोई भी उस से टकराने की कोशिश नहीं करता था। न जाने कितने गुण्डे उसके शागिर्द बन गये थे। शराब के नशे में हर वक्त चढी आँखें बड़ी भयंकर लगा करती थी। शहर के प्रत्येक होटल है। दुकान में बिकने वाली चीजें राबर्ट दादा के लिए फ्री थी। (पृष्ठ- प्रथम)

उपन्यास के पात्र-
हरीश- दिल्ली का प्रसिद्ध जासूस
राकेश - हरीश का साथी, जासूस
जाॅली-  हरीश कि साथी, जासूस
पुलिस कमिश्नर मुम्बई
शोभना- पुलिस कमिश्नर की बेटी
विलसन- ज्वेलथीफ
अंजाना- एक रहस्यमय अपराधी
राबर्ट - शहर का बदमाश
रवीना - राॅबर्ट के साथी
दलपत, मुस्सफा- राॅबर्ट के साथी

उपन्यास साहित्य का वह समय जब उपन्यास जगत के केन्द्र इलाहाबाद होता था। तब उपन्यास पत्रिका रूप में प्रकाशित होते थे। उस दौर में बहुसंख्यक पत्रिकाएं प्रकाशित होती थी और बहुत से लेखक भी उस दौर में हुये और फिर गुमनामी में चले गये।
इस उपन्यास में मुझे कुछ बातें अच्छी लगी और कथा के विपरीत भी।
- उपन्यास की कहानी और पात्र मौलिक हैं।
- उपन्यास में कहीं अनावश्यक वार्तालाप या घटनाक्रम नहीं है।
- कहानी संतुलन बना कर चलती है।
कुछ विसंगतियां भी देख लीजिए।
- कहानी का अंत या कहें खल पात्र जिस व्यक्ति को दिखाया है वहीं कहीं से भी तर्कसंगत नहीं लगता। उसके अपराधी बनने का कोई कारण नजर नहीं आता।
- अपराधी पर गोलियाँ का प्रभाव नहीं पड़ता इसका कोई कारण नहीं बताया गया।
    उक्त विसंगतियों को छोड़ कर उपन्यास की कहानी रोचक है। लघु कलेवर में होने के कारण कसावट लिए हुये है।
  उपन्यास एक बार तो पढा ही जा  सकता है। कुछ अतिरिक्त परिश्रम से उपन्यास कथा और भी रूचिकर हो सकती थी।
उपन्यास- ज्वैलथीफ का हत्यारा
लेखक - राजकिशोर श्रीवास्तव
प्रकाशन- जासूसी डायरी- इलाहाबाद
पृष्ठ-        84

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