Friday 5 January 2018

90. प्राइम मिनिस्टर का मर्डर- अमित खान

भारत के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश।
प्राइम मिनिस्टर का मर्डर- अमित खान, उपन्यास, थ्रिलर, औसत।
    अमित खान जी द्वारा लिखित प्राइम मिनिस्टर का मर्डर उपन्यास मेरे द्वारा पढे जाने वाला इनका प्रथम उपन्यास है।
               उपन्यास की कहानी तो इसके शीर्षक से ही स्पष्ट हो जाती है। कुछ लोग भारत के प्राइम मिनिस्टर की हत्या करना चाहते हैं।
कौन लोग?
   भारत के प्रधानमंत्री जब रूस दौरे पर जाते हैं तो वहाँ उनकी हत्या की साजिश रची जाती है। एक तीर से दो शिकार।
     भारत के प्रधानमंत्री की हत्या और भारत- रूस के संबंधों को बिगाङना भी। लेकिन जैसे ही इस बात की खबर कमाण्डर करन सक्सेना को होती है तो वह इस षडयंत्र को नाकाम करने के लिए मैदान में उतर जाता है।
      "यह कैसी आवाजें हैं?"- करण सक्सेना बुरी तरह चौंका।
" लगता है...नीचे कोई हंगामा बरपा हो गया है जनाबेमन।"- मुल्तानी भाई जबरदस्त आतंकित मुद्रा में बोला - " जरूर प्रधानमंत्री की हत्या हो गयी है। ऐसा मालुम होता है...कर्नल नासिर ने किसी और आदमी का भी इंतजाम किया हुआ था, जिसने गोली चलायी।"
इस बात ने ही करण सक्सेना के होश उङा दिये। (पृष्ठ-187-188)
- भारत के प्रधानमंत्री की हत्या कौन करना चाहता है?
- कौन लोग थे जो भारत- रूस के संबंधों को बिगाङना चाहते थे?
- क्या वे अपने मक़सद में कामयाब हो पाये?
- क्या कमाण्डर करन सक्सेना दुश्मनों के षडयंत्र को असफल कर पाया?
   ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर अमित खान द्वारा लिखित उपन्यास प्राइम मिनिस्टर का मर्डर में ही मिल सकते हैं।
इस प्रकार के मैंने जितने भी उपन्यास पढे हैं कोई भी, कभी भी रोचक नहीं लगा। और यह उपन्यास भी उसी श्रेणी का ही है। यह उपन्यास उस दौर का लगता है जब उपन्यासों के पाठक बहुत ज्यादा थे लेखक कुछ भी लिख देता था और पाठक पढ लेता था। इसलिए इस उपन्यास से ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती।
उपन्यास में काॅन्ट्रेक्ट किलर ऐलेक्स का मानसिक परीक्षण वाला दृश्य बहुत ही रोचक है। यह लेखक द्वारा किया गया एक बेहतरीन प्रयोग है जो इस उपन्यास की जान भी है।
 
उपन्यास में अगर कुछ गलतियों/ कमी की बात की जाये तो वह 'कुछ' से आगे ही है-
  
1. उपन्यास के शुरूआत होती है राॅ की एजेंट रजिया से जो दुश्मनों की कैद में है और इसके बाद अन्य एजेंट भी दुश्मन की कैद में ही नजर आते हैं।
- रजिया (पृष्ठ- 01)
- रजनी (पृष्ठ- 50)
- रहमान (पृष्ठ -70)
इस प्रकार पृष्ठ संख्या 70 तक पहुंचते-पहुंचते जासूस महोदय दुश्मन की कैद में पहुंच जाते हैं।
2. उपन्यास में कमाण्डर करन सक्सेना भी इतना दम नहीं दिखा पाया जितना की उपन्यास का खलनायक कर्नल नासिर
    कभी-कभी और कहीं-कहीं तो लगता है की कमाण्डर सक्सेना में कोई जासूस वाली बुद्धि ही नहीं है। अजीब से निर्णय लेता है और फिर उन पर पश्चात् भी होता है।
3. आतंकवादी अब्दुल करीम की तलाश सब को होती है पर पृष्ठ संख्या 33-54 तक उनकी निगरानी तो होती है लेकिन गिरफ्तार नहीं किया जाता और फिर पृष्ठ संख्या पर लिखा - आई. एस. आई. के दोनों खूंखार एजेंट जफर सुल्तान और अब्दुल करीम गायब हो गये।
4. पृष्ठ संख्या 128- 137 तक मिस्टर अलेक्से से आतंकवादी कर्नल नासिर से संबंधित पूछताछ होती है। कर्नल नासिर की जानकारी लेने के पश्चात ऐलेक्स को तुरंत रिहा कर दिया जाता और ऐलेक्स कर्नल नासिर को तुरंत संपर्क कर सब स्थिति बता देता है।
" परंतु इस पूरे प्रकरण में हमसे एक बहुत भयंकर गलती हो चुकी है।"- रूसी अधिकारी ने कहा।
"क्या?"
" हमें अलेक्से को यहाँ से जाने नहीं देना चाहिए था।"
"क्यों?"
" क्योंकि अलेक्से यहाँ से जाते ही सबसे पहले कर्नल नासिर को सचेत करेगा।"
"चिंता मत करो।" - गंगाधर महंत बोले-" उसका सारा इंतजाम भी हमने किया हुआ है।" (138)
     
लेकिन सारे इंतजाम धरे के धरे रह जाते हैं। फिर भी यहाँ कहानी कुछ हद तक संभल जाती है।
5. "जी हां! मान लीजिए...कर्नल नासिर को हमारी गतिविधियों के बारे में शुरु से ही सब कुछ मालूम था।"- मुल्तानी भाई बोला- " वो जानता था कि उसे और अलेक्से को वाॅच किया जा रहा है। परंतु फिर भी उसने यह सारा खेल जानबूझकर इसिलिए खेला....ताकि आपके सामने चारा डाला जा सके और आप कूदकर इस गलत नतीजे पर पहुंच जायें की प्रधानमंत्री पर गोली जिन्ना हाउस से चलाई जाने वाली थी..…..।" (पृष्ठ-180)
    यह बात मुल्तानी भाई के दिमाग में आती है और पाठक के भी। बस इस बात को कमाण्डर करण सक्सेना नहीं सोच पाता और वास्तव में गलत निर्णय भी ले लेता है।
6. एक दो जगह अलेक्से और तानिया के रति प्रसंग है जो उपन्यास/ कहानी में जबरदस्ती के से दृश्य नजर आते हैं।
                  आतंकवाद पर लिखे गये अधिकांश उपन्यास एक जैसे ही कहानी लिए होते हैं। आतंकवादी भारत में आये और भारत के जासूसों ने उन्हें खत्म कर दिया। इस उपन्यास में फर्क बस यहि है की सारी कहानी रूस में घटित होती है।
       
    उपन्यास में कमियां बहुत है जो कहानी पर भारी पङती हैं। कहीं कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है जो पाठक को उपन्यास से बांधे रखे।
     यह एक औसत श्रेणी का उपन्यास है।
किसी एक उपन्यास से लेखक की प्रतिभा का आंकलन नहीं किया जा सकता। यह मात्र एक छोटी सी रचना है, जो लेखक की समग्र प्रतिभा को प्रतिबिंबित नहीं करती।
          अमित खान के कुछ और उपन्यास भी मेरे पास उपलब्ध हैं, समय मिलते उनको पढा जायेगा।
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उपन्यास- प्राइम मिनिस्टर का मर्डर
लेखक- अमित खान
प्रकाशक- धीरज पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 271
मूल्य- 50₹
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अमित खान
डी- 603, स्काई पार्क
अजीत ग्लास गार्डन के नजदीक,
आॅफ एस. वी. रोङ, गोरेगाँव (वेस्ट)
मुंबई- 400404
Mob- 9821163955 ( सिर्फ रविवार)
ईमेल- foramitkhan@gmail.com
फेसबुक- Author Amit Khan

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