Sunday 3 July 2022

521. तथास्तु - शगुन शर्मा

कत्ल की रोचक कहानी
तथास्तु- शगुन शर्मा

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में वेदप्रकाश शर्मा जी एक सशक्त हस्ताक्षर रहे हैं। उनके उपन्यासों की संख्या चाहे कम हो पर उनके पाठकों की संख्या विशाल है। और इस विशाल पाठक वर्ग को वेद जी जैसे लेखक की तलाश रहती है। जब वेदप्रकाश शर्मा जी के पुत्र शगुन शर्मा का नाम उपन्यासकार के रूप में सामने आया और उनके आरम्भ के उपन्यास पढे तो बहुत रोचक लगे।
   एक लम्बे समय पश्चात शगुन शर्मा जी का उपन्यास 'तथास्तु' पढा। 
     उपन्यास 'तथास्तु' एक थ्रिलर मर्डर मिस्ट्री है। जो रहस्य और रोमांच का मिश्रण लिये हुये है। उपन्यास का आरम्भ पाठक जो वेदप्रकाश शर्मा जी के लेखन की याद दिलाता है।
    उपन्यास का आरम्भ प्लेबैक सिंगर रागिनी माधवन से होता है। रागिनी का पूरा नाम रागिनी माधवन था। वह यौवनावस्था के नाजुक दौर को पहुंची किसी ताजा खिले गुलाब सी सुंदर युवती थी। उसकी आवाज में जैसे जादू और आँखों में हद दर्जे का आकर्षण था। बला के हसीन चेहरे पर शैशव का अल्हड़पन तथा गजब का आत्मविश्वास था। 
  उन्नीस वर्षीय गायिका रागिनी माधवन के पास 'आजाद प्रोडक्शन' की फिल्म 'तथास्तु' का डायरेक्टर भीखाराम भंसाली फिल्म के पार्श्वगायन के लिए आता है। 'आजाद प्रोडक्शन' और भीखाराम भंसाली फिल्म इंडस्ट्रीज के बड़े नाम हैं जो स्वयं में सफलता की गारंटी है। स्थापित और चर्चित अदाकारों के साथ और भव्य स्तर पर फिल्म निर्माण के‌ लिए जाने जाते हैं। जैसे बाॅलीवुड में करण जौहर, संजय लीला भंसाली।
लेकिन रागिनी माधवन उसे मना कर देती है।
कारण?
रागिनी माधवन के अनुसार उसे भीखाराम भंसाली का नाम पसंद नहीं, इसलिए वह 'तथास्तु' फिल्म के लिए गायन नहीं करना चाहती। और ठीक यही उत्तर रागिनी म्युजिक कम्पनी के मालिक बालाजी बड़गोली को भी देती है।
  "लेकिन क्यों रागिनी? आखिर क्यों? तुम्हारी इस इंकारी की वजह क्या है?"
"क्योंकि आपका नाम बालाजी बड़गोली है।"
कैसेट किंग बालाजी बड़गोली, निर्देशक भीखाराम भंसाली और और निर्माता मुकुल बाली आजाद, तीनों दोस्त मिलकर रागिनी को सबक सिखाने का निर्णय लेते हैं।
    अब बात करते हैं कथानक के एक और पक्ष की। पूर्व फिल्म फायनेंसर और हीरों के व्यापारी आनंद अस्थाना की पुत्री अदा अस्थाना 'तथास्तु' फिल्म की नायिका है, जिसकी यह प्रथम फिल्म है। लेकिन आनंद अस्थाना नहीं चाहता की उसकी अर्थशास्त्र में गोल्डमैडल विजेता पुत्री फिल्मों में जाये। लेकिन अदा की जिद्द और फिल्म निर्माता-निर्देशक की इच्छा के आगे बेबस आनंद अस्थाना   'तथास्तु' फिल्म को रुकवाने के लिए किस भी हद तक जाने को तैयार है।
    इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे और ट्विस्ट भी कहानी को रोचक बनाते हैं।
  'तथास्तु' के  मुहूर्त के दिन फिल्म के एक कत्ल हो जाता है।

सारी युनिट के सामने पर कातिल का कुछ पता नहीं चलता। यहीं पर उपन्यास में इंस्पेक्टर दिलबाग लखोटिया और सब इंस्पेक्टर अमित राठी का प्रवेश होता है। दिलबाग लखोटिया दिखने में एक आलसी प्रवृत्ति का व्यक्ति है पर उसका सर्विस रिकॉर्ड उसकी सफलता की कहानी सुनाता है।
     अब दिलबाग लखोटिया कातिल के तलाश में निकलता है तो एक और कत्ल हो जाता है। लेकिन तीसरे कत्ल से पूर्व लखोटिया सारा खेल समझ जाता है। वहीं अज्ञात कातिल यह चाहता की एक और कत्ल कर के अपना इंतकाम पूरा कर ले।
  अब किसी सफलता मिलती है और क्या रहस्य है इन कत्लों के पीछे यह उपन्यास पढकर जाना जा सकता है।
    'तथास्तु' फिल्म की टीम और उनके कत्ल, रागिनी की 'तथास्तु' को इंकार, अदा का जबरन फिल्म में एक्टिव की जिद्द, अदा के बाप की धमकी और रागिनी‌ के बाप का अनोखा व्यवहार उपन्यास के रोचक अंश हैं। लेकिन इसमें से कुछ रोचकता के साथ लेखक न्याय नहीं कर पाया।
  
उपन्यास के प्रमुख पात्रों का परिचय
अदा अस्थाना- फिल्म हेरोइन
आनंद अस्थाना- फिल्म फायनेंसर, अदा का पिता
रागिनी माधवन- पार्श्व गायिका
अनुपमा मुखर्जी-  रागिनी की सेक्रेटरी
गोपाल माधवन- संगीत निर्देशक, रागिनी का पिता
राजन- रागिनी का प्रेमी
बालाजी बडगोली- कैसेट किंग,  म्युजिक कम्पनी मालिक
भीखाराम भंसाली- फिल्म निर्देशक
मुकुल बाली आजाद-  प्रोड्यूसर
संदीप ब्याला- प्राइवेट डिटेक्टिव
दिलबाग लखोटिया- पुलिस इंस्पेक्टर
अमित राठी - सब इंस्पेक्टर
कुमार - माधवन का वृद्ध नौकर
हरसाल पांडा- एक्स्ट्रा कलाकार, उपन्यास का विशेष पात्र
कमल वर्मा - अदा का प्रेमी, आजाद का असिस्टेंट
आजाद प्रोडक्शन की फिल्म तथास्तु
   उपन्यास की रोचकता के साथ-साथ यह भी प्रतीत होता है की उपन्यास का कथानक अनावश्यक विस्तार लिये हुये है, जो उपन्यास की रोचकता को कम करता है। वहीं इंस्पेक्टर लखोटिया का बार-बार जम्हाई लेना, पैंट को ऊपर करना और 'भाया' शब्द बोलना भी अखरता है।
  उपन्यास में एक प्राइवेट डिटेक्टिव भी है, अगर वह ना भी होता तो भी काम चल सकता था। वहीं कमल वर्मा भी एक ऐसा पात्र है जो अंत आते-आते एक अतार्किक वक्तव्य के साथ उपन्यास से गायब हो जाता है।
    उपन्यास को वेदप्रकाश शर्मा के विशेष स्टाइल में बनाने की भरपूर कोशिश की गयी है पर लेखक महोदय पूर्णतः असफल रहे हैं। उपन्यास का आरम्भ चाहे वेदप्रकाश शर्मा जी की याद दिलाता है पर कुछ पृष्ठों पश्चात ही कथानक ढीला सा नजर आता है। इंस्पेक्टर लखोटिया को भी वेदप्रकाश शर्मा जी के पुलिस पात्र की तरह प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, पर उसकी कुछ हरकते पाठक‌ को 'उकता' देती हैं।
  उपन्यास की एक बात विशेष लगी वह है फिल्म की पृष्ठभूमि। अधिकांश उपन्यासों में एक कत्ल और इंवेस्टिगेशन होता है, यहाँ यह सबकुछ तो है लेकिन उपन्यास की पृष्ठभूमि बाॅलीवुड है, ऐसा कम ही देखने को मिला है।
       उपन्यास 'तथास्तु'  का आरम्भ काफी रोचक तरीके से होता है। कहानी आरम्भ में काफी रहस्य स्थापित करती है लेकिन मध्य भाग से पूर्व ही उपन्यास का कथानक मर्डर मिस्ट्री से संबंधित हो जाता है और फिर कातिल की तलाश चलती रहती है, हालांकि उपन्यास में कुछ और ट्विस्ट भी हैं जो पाठक को प्रभावित करते हैं लेकिन उपन्यास के आरम्भ में जो उम्मीद उपन्यास कथानक से होती है उस पर उपन्यास खरा उतरता नजर नहीं आता।
    यह एक मध्य स्तर का उपन्यास है।
उपन्यास- तथास्तु
लेखक -    शगुन शर्मा
प्रकाशक- तुलसी पेपरबैक,मेरठ




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