Thursday 24 September 2020

381. फाॅरेस्ट ऑफिसर- वेदप्रकाश कांबोज

जंगल के रक्षक की कहानी
फाॅरेस्ट ऑफिसर- वेदप्रकाश कांबोज, थ्रिलर उपन्यास

एक कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति को अपने जीवन में अपने कर्तव्य के निर्वाह पर बहुत से संकटों का सामना करना पड़ता है‌। उसके पास दो ही रास्ते होते हैं या तो वह अपने कर्तव्य पथ से हट जाये या फिर भ्रष्ट व्यक्तियों से टकरा जाये।

    वेदप्रकाश काम्बोज जी का प्रस्तुत उपन्यास 'फॉरेस्ट ऑफिसर' भी एक कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी के कर्तव्य, सत्य और दृढता की कहानी है। उसे अपने जीवन में अपने दायित्व का उचित ढंग से निर्वाह करने के दौरान अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। 
       कहानी आरम्भ होती है केसरी से जो से जो नया फॉरेस्ट ऑफिसर बन कर ऐसी जगह पहुंचता है जहाँ कालिया नामक एक अपराधी जंगल से तस्करी करता है। यहाँ के पूर्व फॉरेस्ट ऑफिसर की हत्या कर दी जाती है। 
       कर्तव्य का पालन करने वाला केसरी एक ईमानदार अधिकारी है। वह अपने कर्तव्य को ही श्रेष्ठ मानता है। एक दिन उसके पास कालिया का विशेष आदमी भैरों रिश्वत लेकर आता है।
"यह कालिया कौन है?"
"हुजूर इस इलाके में नये-नये आये हैं। शायद इसलिए नहीं जानते कि इस इलाके में दूसरा नाम कालिया है।....बस यह समझ लीजिए हुजूर की कालिया नाम भगवान शेषनाग का ही अवतार है इस कलयुग में।...अगर कहीं वह नाराज हो गया हुजूर तो समझ लो कि हजारों साँप उसे डसने को दौड़ पड़ेंगे। पाताल में भी जगह नहीं मिलेगी उसे बचने के लिए।"

     कालिया भी एक अकेला नहीं है उसके सिर पर भी खादी और खाकी का हाथ है। खादी और खादी दोनों पर्दे के पीछे से जंगल की तस्करी का संचालन करते हैं।
        केसरी द्वारा रिश्वत न लिये जाने पर कालिया उसके परिवार के साथ निकृष्ट खेल खेलने आरम्भ करता है। वह केसरी को मानसिक स्तर पर कमजोर करना चाहता है।
    इसी दौरान दो शख्स केसरी के जीवन में आते हैं। एक जगतार (जिसकी पहचान एक फरार मुजरिम के रूप में है) और दूसरा शहर का मेयर मिस्टर शर्मा।

मेयर शर्मा और जगन सेठ में भी दुश्मनी है।
"तो युद्ध का ऐलान कर दिया जगन सेठ?"
"पहल तो आपने ही की है शर्मा जी।"
"लेकिन हमने किसी का नाम नहीं लिया था।"
"परदे के पीछे बैठकर तो औरतें गालियां देती हैं शर्माजी। मर्द तो सीधे मैदान में आकर ताल ठोकते हैं।"

- एक तरफ है जगन सेठ और मेयर शर्मा की दुश्मनी।
- कालिया का संरक्षण है जगन सेठ तो केसरी के सिर पर मेयर हाथ है।
- जगतार कभी दुश्मन नजर आता है तो कभी दोस्त।
इस चक्रव्यूह में फंसा है जंगल का रक्षक कृष्ण चंदर केसरी।
क्या वह अपने अपने दुश्मनों से टकरा पायेगा?

   उपन्यास एक्शन थ्रिलर है। उपन्यास का प्रथम रोमांच तो कालिया है। जो अपने प्रतिद्वंद्वी को माफ नहीं करता।लोग उसके बारे में कहते हैं- वह आदमी के रूप में लकडबग्घा ही है। उसी की तरह धूर्त और कुटिल। कभी शेर की तरह सामने नहीं आयेगा। हमेशा छुपकर और पीछे से वार करेगा।
  उपन्यास में खादी के बदलते रूप भी चित्रित हैं। कैसे नेतावर्ग अपने स्वार्थ के लिए बदल जाते हैं।  वहीं केसरी जैसे निर्दोष लोगों को अपने स्वार्थ के लिए प्रयुक्त करते हैं।
   खादी और खाकी दोनों ही उपन्यास में अपने कर्तव्य से भ्रष्ट नजर आते हैं और कालिया जैसे लोगों को संरक्षण देते हैं।
 
उपन्यास के कुछ महत्वपूर्ण संवाद-
-पानी में रहकर मगर से और जंगल में रहकर लकड़बग्घे से वैर पालना कोई अक्लमंदी नहीं।"
-अगर परिस्थितियों का मुकाबला न किया जा सके तो उनके अनुकूल ढल जाने में ही अक्लमंदी है।

लोकप्रिय जासूसी साहित्य में फॉरेस्ट ऑफिसर पर लिखा गया मेरे विचार से यह प्रथम उपन्यास है। एक ईमानदार फॉरेस्ट ऑफिसर जिसे अपनी ईमानदारी की कीमत चुकानी पड़ी।

    उपन्यास में बहुत से बातें वर्णन से चूक गयी हैं। उपन्यास में फॉरेस्ट ऑफिसर के कार्य का कहीं वर्णन नहीं है, उन्हें कार्य करते हुये वर्णित करते तो ज्यादा अच्छा रहता। पेड़-पौधों के साथ-साथ जंगली जानवरों का वर्णन हो सकता था।
   खल पात्र नये फॉरेस्ट ऑफिसर को सिर्फ इसलिए दुश्मन मान लेते हैं की उसने रिश्वत नहीं ली। इस प्रसंग को आगे इस तरह भी बढाया जा सकता था कि फॉरेस्ट ऑफिसर के मना करने के बाद भी विलेन के आदमी शिकार करते हैं और पेड़ काटते हैं। लकिन उपन्यास में कहीं भी अवैध पेड़ नहीं कटता और न जानवरों का शिकार कहीं दर्शाया है।
    कमिश्नर को अपराधी वर्ग का साथी बताया है पर उसकी भूमिका कहीं भी नजर नहीं आती।
   प्रस्तुत उपन्यास एक थ्रिलर उपन्यास है और यह एक्शन फिल्मों की तरह का उपन्यास कहा जा सकता है जो एक्शन पाठक रोचक लगेगा।
उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।

उपन्यास- फाॅरेस्ट ऑफिसर
लेखक-   वेदप्रकाश कांबोज
प्रकाशक- डायमंड पॉकेट बुक्स, दिल्ली

2 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। मिलेगा तो पढूँगा। फारेस्ट ऑफिसर की बात करें तो लालघाट का प्रेत में भी मुख्य किरदार फारेस्ट ऑफिस ही होता है। उसे लालघाट इसलिए भेजा जाता है क्योंकि वो अपने अफसर के रिश्तेदार को अवैद्य शिकार करने से रोकता है। वैसे नरेंद्र कोहली ने भी जंगल और चारवाहन का जंगल नाम की रचनाएँ जंगल और इधर होने वाली कानूनी और गैरकानूनी हरकतों के ऊपर लिखा है।

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    1. आपने अच्छी जानकारी दी, धन्यवाद

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