Tuesday 15 September 2020

377. मुकद्दर मुजरिम का- वेदप्रकाश कांबोज

 जब अपराधी की किस्मत बदलती है

मुकद्दर मुजरिम का- वेदप्रकाश कांबोज

  मनुष्य की किस्मत कब, कैसा खेल खेल जाये कुछ कहा नहीं जा सकता। कभी अर्श से फर्श और कभी फर्श से अर्श पर ले जाती है।
      ऐसा ही खेल खेला था किस्मत ने एक मुजरिम के साथ। इस खेल ने चाहे उस अपराधी को फर्श से अर्श पर बैठा दिया लेकिन उस सफलता के  पीछे का सच क्या था...
    इन दिनों में वेदप्रकाश कांबोज जी के उपन्यास पढ रहा हूँ। 2020 के सितंबर माह में कांबोज का मैंने यह पांचवां उपन्यास पढा है। मुझे यह उपन्यास रोचक लगा। 
     कहानी आरम्भ होती है महानगर शहर से। पत्रकार आलोक के पास बंगाली आर्टिस्ट की पत्नी आकर कहती है- "...मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करती हूँ कि तुम उनकी खोज खबर लगाकर पता करो कि वे ठीकठाक तो हैं ना।"
         निताई घोष...गजब का कार्टूनिस्ट और चित्रकार था। किसी की भी लिखाई की नकल करने में तो ऐसा सिद्धहस्त था कि देखने वाले आश्चर्यचकित रह जाते थे।

   पर नित्यानंद घोष/ निताई बाबू शराब के अतिरिक्त और कुछ पसंद न करते थे। घर से निकले तो एक-दो माह तक वापस न आते थे। लेकिन इस बार उनकी पत्नी को आशंका हुयी।  इसलिए क्राइम रिपोर्टर आलोक निताई बाबू का पता लगाने निकल लिए शक्तिपुर।     जहाँ जाकर उन्हें पता लगा की नित्यानंद घोष की एक एक्सीडेंट में मौत हो गयी।- 
"सीधा-सादा हिट एन रन का केस था" इंस्पेक्टर चक्रधर ने आलोक से कहा-"नशे में तो वह हरवक्त मदमस्त रहता था। रात को कहीं से पीकर लौट रहा था कि किसी कार की टक्कर लग गयी और वह मारा गया था।"
     आलोक वर्मा को यह सामान्य दुर्घटना नहीं लगी, उसे लगा की निताई घोष की मौत अस्वाभाविक है, उसके पीछे कोई न कोई रहस्य है।  
आलोक वर्मा का अन्वेषण जैसे जैसे आगे बढता है, तो उसके साथ कुछ न कुछ रहस्यमयी घटित होता है जो उसे यह सोचने के लिए प्रेरित करता है की वह सही दिशा में प्रयास रह है, कोई ऐसा रहस्य अवश्य है जिसे कोई न कोई दबाना चाहता है।
       बस इसी रहस्य की तलाश में आलोक वर्मा शक्तिपुर से ज्योतिपुरम जा पहुंचा। जहाँ आलोक को मिलता है परेश नारंग जो पत्रकार को मानव वर्मा की कहानी सुनाता है। मानव वर्मा कैसे किस्मत के चलते अपराधी से धनवान बन गया।

वहीं आलोक को सब जगह एक ही बात सुनने को मिली बंगाली बाबू शराबी आदमी थे, कोई उनकी हत्या क्यों करेगा। लेकिन आलोक को लगता था इस हत्या के पीछे कोई रहस्य है।
      -क्या निताई बाबू की मौत स्वाभाविक या अस्वाभाविक?
     - क्या रहस्य था निताई की मौत में?
    - निताई की पत्नी के मन में आशंका क्यों उठी?
     - परेश नारंग का रहस्य क्या था?
    - पत्रकार आलोक वर्मा की खोज क्या रंग लाई?

एक बेहतरीन मर्डर मिस्ट्री 'मुकद्दर मुजरिम' का उपन्यास आपको इन प्रश्नों के उत्तर देगा। 
निताई घोष की मृत्यु तो एक संकेत मात्र है। यह संकेत है एक गहरी साजिश की ओर। एक ऐसी साजिश जिसमें एक मुजरिम के मुकद्दर को लक्ष्य कर निशाना लगाया जाता है। 

    साजिश इतनी सशक्त है की कथानायक तक को कहीं से भी आभास नहीं होता। एक जाल है और सब उस जाल में उलझते चले जाते हैं।

   एक अच्छी कहानी की भी यही विशेषता होनी चाहिए की उसका रहस्य क्लाईमैक्स तक यथावत बना रहे और 'मुकद्दर मुजरिम का' इस दृष्टि से खरी उतरती है।

      हालांकि उक्त कथन उपन्यास की एक तरह से भूमिका या आरम्भ कहा जा सकता है, क्योंकि वास्तविक कहानी तो पर्दे के पीछे। मुझे वेदप्रकाश कांबोज जी की यह विशेषता अच्छी लगी की वे मूल कहानी पर धीरे-धीरे आते हैं। अधिकांश मर्डर मिस्ट्री में यह होता है की एक कत्ल और फिर जासूस द्वारा कुछ लोगों के बयान और अंत में कातिल का पता लगाना। वेदप्रकाश कांबोज जी इस विषय में कुछ अलग हटकर लिखते हैं। प्रस्तुत उपन्यास भी एक अलग घटनाक्रम से आरम्भ होता है और धीरे-धीरे मूल कथानक की ओर बढता है।

उपन्यास के कुछ पात्र आपको अवश्य पसंद आयेंगे। क्योंकि यही पात्र कहानी को गति प्रदान करते हैं।

- मेरा नाम आलोक है और 'नई खबर' नामक महानगर से निकलने वाले अखबार का क्राईम रिपोर्टर हूँ।निताई घोष यानि वह बंगाली कलाकार पहले उसी अखबार में मेरे साथ काम किया करता था

- पीतांबर सिंह एक भारी भरकम और बैल की तरह चौड़े कंधों वाला आदमी था। किन्तु उसका चेहरा किसी बुलडॉग की भांति खतरनाक दिखाई देता था।

   और पात्रों का वर्णन देखें-
"यह मानव वर्मा कौन है?"
"चौधरी जगप्रताप का भांजा।...।"
"और यह चौधरी जगप्रपात कौन है?"
"अब तो बेचारे इस दुनिया में नहीं है। गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी थी।...।"

परेश नारंग- यह भी उपन्यास का एक विशेष पात्र है।
जया/ नमिता- उपन्यास के यह पात्र आरम्भ से ही आश्चर्य पैदा करते हैं और अंत तक पाठक को प्रभावित करने में सक्षम है।

   उपन्यास का आरम्भ काठमाण्डू की एक घटना से होता है जहाँ आलोक वर्मा एक जगह जया का परिचित होने का दावा करता है।
    नमिता चौधरी का परिचय आलोक का ज्योतिपुरम में होता है वहां भी पहचान का संकट पैदा होता है।
  यह पहचान और उससे उत्पन्न संकट उपन्यास का विशेष आकर्षण है।

किसी भी कहानी में संवाद/सुक्तियां लेखक की वैचारिक क्षमता का प्रदर्शन होता है। प्रस्तुत उपन्यास से एक पंक्ति देखें जो जीवन‌ की सत्यता व्यक्त करती है।
- जिन्दगी का मोह और मौत का डर दुनिया भर की सारी दौलत से भारी होता है।

  प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री से आरम्भ होता है और बहुत से और भी रहस्यों को अपने अंदर समेटे आगे बढता है। कहानी का आगे बढना कुछ नये रहस्य को पैदा करता है और कुछ को अनावरण करता है। उपन्यास में रहस्य-रोमांच और एक्शन का मिश्रण जितना रोचक है उतना ही रोचक क्लाईमैक्स है। 
       अगर आपको यह उपन्यास उपलब्ध हो तो आप अवश्य पढें। उपन्यास आपको पसंद आयेगा।
उपन्यास- मुकद्दर मुजरिम
लेखक-    वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक-  डायमण्ड पॉकेट बुक्स

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