Tuesday 31 March 2020

283. Philosopher Stone - प्रेम एस. गुर्जर

नियति की तलाश में एक युवा....
Philosophers stone- प्रेम एस. गुर्जर, उपन्यास
फिलॉसॉफर्स स्टोन- प्रेम एस. गुर्जर

जब Philosophers stone उपन्यास देखा तो इसका शीर्षक मुझे बहुत आकर्षित लगा। इस उपन्यास को पढने का एक कारण तो इसका शीर्षक था और द्वितीय कारण लेखक का राजस्थान निवासी होना। इन्हीं दो कारणों से यह उपन्यास पढ लिया गया।

यह कहानी है एक ऐसे लड़के की जो अपने सपने को पूर्ण करने के लिए घर से निकला और वह संघर्षों को पार करता हुआ अपनी नियति के सहारे अपने स्वप्न को पूरा करता है।

वह खुश था कि एक चरवाहे का जीवन छोड़कर अपनी नियति की खोज में चल पड़ा।
-क्या थी उस लड़के की नियति?
- क्या उस लड़के का सपना?
- क्या वह अपने अपने को पूर्ण कर पाया?

इन सब जिज्ञासाओं का समाधान तो इस उपन्यास से ही होगा। 



      एक राजा ने घोषणा की- कहा-“आज आप सभी के सामने मैं यह वचन देता हूँ कि आर्यावर्त का अगला उतराधिकारी वही होगा जो उस नायाब पारस पत्थर को ढूँढ़कर लाएगा और वही मधुलिका से विवाह करने के योग्य होगा।”
       कथा नायक के लिए यह सुनहरा समय था, अपने सपने को साकार करने का लेकिन यह इतना आसान न था। क्योंकि उस पारस पत्थर को प्राप्त करने का रास्ता जार्था के खतरनाक जंगल से जाता था।
जार्था के जंगल में जाकर आज दिन तक कोई जिंदा नहीं बच पाया। तुम्हारा सपना पूरा तभी हो सकता जब तुम इस कठिन कार्य को पूर्ण करो।”
           लेकिन कथा नायक भी कम न था। उसे तो नितयि पर विश्वास था, उसे अपना सपना पूर्ण करना था। उसके लिए चाहे जो भी मुसीबत आये वह टकराने के लिए तैयार था।
      “मुझे पता है दुनिया की कोई ताकत सच्चे प्यार करने वालों एवं नियति को प्राप्त करने वालों को नहीं रोक सकती।”
       कम शब्दों में कहे तो यह कहानी एक युवक के सपने को पूर्ण करने की है, वह किन परिस्थितियों और समस्याओं से जूझता हुआ कैसे नियति के सहारे अपने अपने को पूर्ण करता है।

     उपन्यास में कुछ शब्दों का इतना दोहरान है की पाठक नीरस हो जाता है। जैसे कुछ शब्द देखें- नियति, सिद्दत, ब्रह्माण्ड, प्रकृति।
कुछ उदाहरण देखें
- “लगता है अपनी नियति से भटक गए।” बौद्ध गुरु ने बिना लड़के कि तरफ देखे कहा।
- पंडित ने कहा था ‘बहुत कम लोग होते हैं जो पूर्ण निष्ठा से अपनी नियति को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।’
- “अक्सर लोग उस चीज के पीछे भागते फिरते हैं जो उनकी नियति में नहीं” लड़का बोला,
- “बहुत खूब! तुम्हारी बातों से लगता है जीवन की खोज पर निकले हो जिसे तुम लोग नियति कहते हो।” विदेशी ने कहा, - “वैसे मेरा नाम डेविड विलियम मैक्सवेल है। मैं रोम से हूँ।”
- “क्योंकि आप दोनों की नियति भी पृथक-पृथक है…” एक वनकन्या ने कहा।
- “जिसकी कोई नियति नहीं होती वो तुम्हारी नियति को कभी नहीं समझ सकते।"-ऋषि ने लड़के को समझाया।
- “तो तुम अपनी नियति की तलाश में यहाँ तक आए?” महागुरु ने लड़के से पूछा, उनकी आँखें अभी भी बंद थीं।
- मंजिल उसी को मिलती है जिसकी नियति में मिलना होता है। सारा खेल नियति पर निर्भर करता है। अगर वह रास्ता नहीं भी बताएगा तो भी उसकी नियति में है तो वह खोज ही लेगा।

       यह तो कुछ उदहारण बाकी उपन्यास में हर पात्र 'नियति' शब्द इतनी बार बोलता है की एक ऊब सी पैदा हो जाती है। लेखक को शब्दों के दोहराव से बचना चाहिए था।
पूरे उपन्यास में नायक को लड़का ही लिखा गया है, बस एक दो जगह वह अपना नाम बताता है, बाकी लेखक उसे हर जगह लड़का ही लिखता तो ऐसे लगता है की वह कोई छोटा सा लड़का ही है।

उपन्यास में कुछ अच्छा पंक्तियाँ है जो यहाँ प्रस्तुत हैं।
- सच्चा प्यार करने वाले एवं अपने सपनों का पीछा करने वाले इंसान कभी सामान्य नहीं होते।
- कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनमें इंसान चाहते हुए भी नियंत्रण नहीं कर पाता। आकर्षण भी एक ऐसा ही धोखा है जिसमें हर आकर्षित होने वाला उसकी तरफ खिंचा चला जाता है।
- मुहब्बत के बिना तो जिंदा मुर्दे जैसे लगते हैं; जबकि मुहब्बत किया इंसान मर भी जाए तो दिल की दुनिया का शहंशाह होता है।”
- “किताबें हमारे दिल को बोलने का मौका देती हैं।”


      यह कहानी एक लड़के की है जो अपने सपने को पूरा करने के लिए घर से निकलता है।
         कहानी में कुछ ट्विस्ट दिये हैं लेकिन उनका प्रस्तुतीकरण बहुत नीरस है। वह चाहे राजकुमार से युद्ध हो, जंगली लोगों से संघर्ष हो या काले जादू के लोगों से टक्कर, पर हर कहीं बहुत हल्के से तरीके से नायक की विजय दिखा दी गयी है। कहीं-कहीं तो नायक (लड़का) कुछ करता नजर भी नहीं आता है दुश्मन हार मान लेता है। 'तुम अपने मन को सच्चा रखो, आपकी विजय होगी' और इस तरह लड़का हर जगह जीत जाता है।
        एक अच्छी कहानी प्रस्तुतीकरण के कारण जगह-जगह पर मात खाती नजर आती है। ऐसा लगता है बच्चों की कहानी को युवावर्ग के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है और वह दोनों (बच्चे/युवा) दोनों के उम्मीदों पर खरी नहीं उतरती दिखाई नहीं देती।

उपन्यास- philospher stone (पारस पत्थर)
लेखक- प्रेम एस. गुर्जर
प्रकाशक- हिन्द युग्म

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