जासूसी उपन्यासकार सुनील प्रभाकर का एक उपन्यास 'मौत का साया' पढने को मिला। तेज रफ़्तार उपन्यास है। ठीक सुपर फास्ट ट्रेन की तरह। पाठक ने उपन्यास एक बार आरम्भ कर दिया तो वह उसके अंतिम पृष्ठ पर जाकर ही ठहरेगा। उपन्यास अपने प्रथम पृष्ठ से ही तेज रफ्तार पकङ लेता है और अंत तक उसी रफ्तार से चलता है।
मुझे सुनील प्रभाकर का ये पहला उपन्यास पढने को मिला और वह भी गजब, जबरदस्त, पठनीय।
उपन्यास का नायक- जेम्स, जेम्स विलियम नायक है उपन्यास का। हिंदुस्तानी पिता व अंग्रेज माँ की संतान जेम्स स्वयं पूरा हिंदुस्तान है। वह एक प्राइवेट जासूस है लेकिन जरूरत पङने पर भारत सरकार के लिए भी काम करता है।
कहानी- भारत के गृह मंत्रालय के स्ट्राॅग रूम' से एक महत्वपूर्ण फाइल गायब हो जाती है। वह 'रेड फाइल' गायब की थी गृह मंत्री के निजी सचिव एच. सी. कामत ने। कामत वह शख्स था जिसकी ईमानदारी पर शक नहीं किया जा सकता। वहाँ लगे CC TV से पता चलता है की जिस समय कामत ने फाइल गायब की उस वक्त वह अपने होश में नहीं थे अर्थात् वे किसी नशे के प्रभाव में लग रहे थे और उनका स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं था।
गोवा में सचिव एच. सी. कामत के पिता की मौत हो जाती है जब कामत वहाँ पहुंचते हैं तो उनकी हत्या कर दी जाती है। स्थानीय जासूस गणेशन प्रभाकर को हत्यास्थल से मात्र एक लङकी का बाल मिलता है।
इस पूरे प्रकरण की जांच की जिम्मेदार दी जाती है प्राइवेट डिटेक्टिव जेम्स विलियम को।
जब जेम्स गोवा पहुंचता है तो उस पर कातिलाना हमला होता है। जेम्स जैसे बचकर अपने होटल पहुंचता है तो वहाँ भी उसका स्वागत करने को कातिल तैयार मिलते हैं। जेम्स उनसे बच जाता है और उन्हीं के माध्यम से जा पहुंचता है रेशमा तक।
लेकिन जेम्स यहाँ कैद हो जाता है। लेकिन अर्द्धरात्रि को वहां से एक मददगार जेम्स को लेकर निकल जाता है। अभी वे ज्यादा दूर नहीं निकल पाते उनको चारों तरफ से घेर लिया जाता है।
एक बार फिर नाटकीय अंदाज से जेम्स को बचाने पहुंच जाते हैं कर्नल लूथरा।
कर्नल लूथरा भी एक लङकी के शिकार हैं।
कहानी इतनी तीव्र रफ्तार से आगे बढती हैं की पाठक को सोचने का समय नहीं मिलता। कहानी में पृष्ठ दर पृष्ठ नये -नये मोङ आते जाते हैं। रोमांच अपनी चरम सीमा पर रहता है।
स्वयं जेम्स हैरान है की घटनाएं इतनी तेजी से क्यों घट रही है। पर इन घटनाओं का उत्तर तो सुनील प्रभाकर के उपन्यास 'मौत का साया' को पढकर ही मिलेगा।
- एच. सी. कामत ने वह फाइल क्यों गायब की?
- कामत की हत्या किसने की?
- जेम्स पर लगातार हमला कौन करवाता है?
- जेम्स को रेशमा की कैद से कौन आजाद करवाता है?
- जेम्स पर हमले के दौरान कर्नल लूथरा वहा कैसे पहुंचते हैं?
- लूथरा और लङकी का क्या रहस्य था?
- लङकी के बाल का क्या रहस्य था?
ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न है जिनके उत्तर उपन्यास में ही मिलते हैं।
संवाद- उपन्यास के कुछ संवाद वास्तव में बहुत अच्छे हैं। संवाद ही लेखक की प्रतिभा के अच्छे उदाहरण हो सकते हैं, जिस पर सुनील प्रभाकर खरे उतरते हैं।
-रेशमा- "तुमने सुना होगा नागिन की पूँछ पर पांव रखने वाला कभी जीवित नहीं बच सकता। तुमने तो सीधे नागिन के फन पर हाथ डाला है।'' (पृष्ठ-61)
-" कहते हैं की जीवन और मौत हमेशा ईश्वर के ही हाथ में होती है।"-(58)
- "हालांकि मैं पण्डित हूं- शराब मुझे नहीं पीनी चाहिये- किंतु यह विदेशी विस्की है- विदेशी डिस्टिल वाटर है, इसलिए इसे पीने से गुरेज नहीं करना चाहिये।'' (93)
- "इंसान के जीवन और मौत में मात्र पल भर का फासला हुआ करता है- और जब मौत इंसान पर झपटती है तो जीवन के सारे अर्थ खो जाया करते हैं" (136)
- पङौसी के घर चुल्हा न जला हो- तो एक पङौसी का फर्ज बनता है कि तब तक वह खाना न खाये जब तक कि पङौसी को न खिला दे।" (162)
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उपन्यास में कमी- उपन्यास में क ई बाते खटकती हैं। अगर लेखक चंद शब्द न लिखता तो ज्यादा ठीक था।
जैसे पृष्ठ 27 पर जेम्स पर हमला होता है और वह हमलावर के पीछे भागता है।
'लिफ्ट की ओर भागते समय वह पहले अपने कमरे में आया था और ओवरकोट में बाहें डाल- हैट सिर पर लगाता हुआ ही दरवाजे की ओर भागा था।'
अब एक समझदार जासूस अपने हैट -कोट पहनेगा या हमलावर के पीछे भागेगा। पाठक स्वयं सोच लें।
- उसने रिवॉल्वर निकाल लिया। (158)
यहाँ कर्नल का जिक्र हो रहा है जो की पूर्णतः नग्न है। जेम्स ने उस पर चादर डाल दी।
"आप चिंता मत कीजिए.....आपके शरीर पर बेडशीट मैं पहले डलवा चुका हूँ ।" (156)
अब कर्नल रिवॉल्वर कहां से निकालेगा।
विशेष- उपन्यास के पृष्ठ 43 का एक संवाद।
- उसने अपने शब्दों के शब्दकोश के सारे फुर्तीले शब्द उसकी ओर उछाल दिये।"
शब्दकोश शब्दों का ही होता है इसलिए यहाँ 'अपने शब्दों के' शब्द अनावश्यक रूप से लिख दिये गये।
सही वाक्य था - " उसने शब्दकोश के सारे फुर्तीले शब्द उसकी ओर उछाल दिये।" (176)
इस प्रकार की गलतियाँ कोई बङी बात नहीं है और न ही यह कोई साहित्यक उपन्यास है।
उपन्यास बहुत अच्छा है, पढने योग्य है।
विशेण-
जेम्स को एक पुस्तक विक्रेता कहता है-
" ये लीजिये- अजय ठकराल का नया उपन्यास 'दबे पांव' कमाल का उपन्यास है....।"
अजय ठकराल भी कोई उपन्यासकार थे यह विषय www.sahityadesh.blogspot.in के लिए उपयोगी होगा।
- जो उपन्यास मेरे पास उपलब्ध है उसमें पृष्ठ संख्या 193-208 तक पृष्ठ गायब हैं।
सुनील प्रभाकर का यह उपन्यास बहुत अच्छा है। सबसे बङी बात है इसका तेज कथानक जो पाठक को अपने में बांधे रखनें में सफल हुआ है। पाठक को पढने के दौरान पूरा आनंद आयेगा।
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उपन्यास- मौत का
लेखक- सुनील प्रभाकर
प्रकाशक - गौरी पॉकेट बुक्स-मेरठ
मूल्य- 25₹
पृष्ठ- 365.
उपन्यास रोमांचक लग रहा है। आखिर में जो गलतियाँ आपने बताई उन्हें एक अच्छा सम्पादक निकाल सकता था लेकिन पॉकेट बुक्स वाले प्रूफ रीडर तक नहीं देते हैं तो सम्पादक तो दूर की बात।
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