Thursday 11 May 2017

42. हवेली के दुश्मन- संजय गुप्ता

हवेली के लोगों का दुश्मन।
हवेली के दुश्मन- संजय गुप्ता, जासूसी उपन्यास, मध्यम।


'सांय।'
एक तीर बङी तेजी से हवा में लहराता हुआ आया।
'खच्च!'
वह तीर एक कारिंदे के सीने में जा धंसा।
कारिंदे के मुख से एक तेज चीख निकली। दर्द और पीङा से भरी हुई चीख।
और फिर वह ..............
वह मर चुका था। जीवित इंसान से लाश में तब्दील हो चुका था।
यह भयानक दृश्य देखकर बङे ठाकुर और उनके तीनों पुत्र अवाक रह गये। स्तब्ध रह गये।
किसी पत्थर की मूर्ति के समान वे अपने स्थान पर खङे रहे...............
फिर सबसे पहले बङे ठाकुर संभले।
और अगले ही क्षण उनकी दहाङ दूर-दूर तक गूँज उठी।
"किसने यह तीर फेंका? किसने चलाया यह तीर! अपनी मौत को दावत देने जैसी हिम्मत किसमें पैदा हो गयी? अगर मर्द का बच्चा है तो सामने आए। अगर सचमुच हमसे टकराने का हौसला है तो सामने आए।"
तीर चलाने वाला सामने नहीं आया।
उपर्युक्त दृश्य है संजय गुप्ता के उपन्यास ' हवेली के दुश्मन' का।
          रूपनगर के ठाकुर चन्द्रदेव सिंह और उनके तीनों पुत्रों को मारने की किसी अंजान शख्स की धमकी दी और फिर एक-एक कर वह हवेली के मालिकों को मारने लगा।

बङे ठाकुर चन्दरदेव सिंह ने इस स्थिति से निपटने के लिए अपने मित्र व रिटायर्ड पुलिस अफसर चौधरी  हीरा लाल साहब को अपनी हवेली की जिम्मेदारी दे दी।
सुरक्षा, अति सुरक्षा के बीच वह अनजान शख्स  कत्ल करता चला गया पर उसका कोई पता नहीं चला।
- एक तरफ है भीमा। जिसने चेतावनी दी है वह हवेली के मालिकों का खत्म कर देगा।
- एक है गणेशी, वह भी हवेली के बङे मालिक को मारना चाहता है।
- ठाकुर पृथ्वी राज चौहान भी हवेली के मालिकों से द्वेष रखता है।
"क्यों थी वह मनहूस हवेली!
क्या अतीत जुङा हुआ था उसका बङे ठाकुर चन्द्रेव सिंह के साथ-
जिसमें जगह-जगह खून के धब्बे, औरतों और कमजोरों की चीख थी।
प्रतिशोध की आग में जलते दुश्मन द्वारा रचा गया रहस्यमय षडयंत्र।
जिसके चलते हवेली में एक भयानक जलजला उठा और शुरु हुआ एक खूनी दौर.....(उपन्यास के अंतिम कवर पृष्ठ से)
  उपन्यास में जहां एक तरफ प्रतिशोध की कथा है वहीं अंधविश्वास व उसका उन्मूलन चाहने वाले लोग भी हैं।
" अगर गांव की कोई कुंआरी कन्या नग्न होकर....मेरा मतलब है वस्त्र विहीन होकर, ......देवी के मंदिर के सात चक्कर और गांव का एक चक्कर लगाए, तो मुझे विश्वास है कि बारिश रुककर रहेगी।"- पण्डित जी ने बताया ।
"बकवास बंद कीजिए पण्डित जी।"- बूढा नारायण चिल्ला उठा, -" आपके घर में भी कुंवारी कन्याए थी, आप उनमें से किसी को देवी क्यों नहीं बना देते।"
संवाद-
उपन्यास के कुछ संवाद जबरदस्त हैं जो पाठक को प्रभावित कर सकते हैं।
सहसा वह गर्रा उठा- "तो तुम हो चौधरी हीरालाल। रिटायर्ड पुलिसिए! रूपनगर के ठाकुरों के कुत्ते।"
- "बीमारी को छोङिए, भूतप्रेत चढ जाए तो भी लोग डाॅक्टर के पास चले जाते हैं। ऐसे में हम जैसे ज्ञानी विद्वान औझा...भूखों नहीं मरेंगे तो और क्या होगा?"
- "न....नहीं हुजूर! वो क्या है कि पुलिस को देखकर शरीफ आदमी घबरा ही जाता है।"
-
गलतियाँ-
उपन्यास में एक दो जगह गलतियाँ रह गयी।
- चौधरी हीरालाल को कभी मोटर साइकिल पर जाते दिखा दिया और कभी जीप पर आते। कब जीप मोटरसाइकिल में बदल गयी पता ही नहीं चलता।
- एक और उदाहरण देखिए।
सर्र की आवाज हुई और शीशी से कोई गैस बाहर निकली।
चौधरी ने जोर से सांस भीतर खींची।
"बेहोशी की गैस!"- फिर वे बङबडाए।
अब पता नहीं इसी बेहोशी की गैस को सूंघ कर भी चौधरी बेहोश क्यों नहीं हुआ।
राजा पॉकेट बुक्स के मालिक संजय गुप्ता द्वारा लिखा गया ' हवेली के दुश्मन' एक रोमांचक उपन्यास है। हालांकि पाठक को कहानी का पता तो शुरू से ही चल जाता है पर भी एक रोमांच रहता है की कातिल कत्ल कैसे करता है।
  कहानी अच्छी है अगर थोङी कसावट और होती तो उपन्यास की रफ्तार तेज हो जाती। उपन्यास धीमी गति का है, पाठक को कहानी का भी पता है और लेखक भी रोमांच होने के बाद इसे अच्छी तरह से स्थापित नहीं कर सका। इन्हीं कारणों से पाठक उपन्यास तो पढता चला जाता है लेकिन उपन्यास के साथ स्वयं का जुङाव महसूस नहीं करता।
एक मध्यम स्तर का उपन्यास कहा जा सकता है।
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उपन्यास- हवेली के दुश्मन
लेखक- संजय गुप्ता
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 230
मूल्य- 15₹

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