Saturday 13 May 2017

44. ट्रेजडी गर्ल- एम. इकराम फरीदी


एक लङकी थी जो अंधकार से निकल कर प्रकाश को लालायित थी- एक शुभचिंतक के माध्यम से उसे प्रकाश प्राप्त हुआ मगर अंधकार के अनाकोण्डा को ये गंवारा नहीं था.......
      यौवन, दुर्भाग्य, शोषण और अपराध के गर्भ में परिवेश पाकर परिपक्व हुयी एक लङकी।
        उपर्युक्त पंक्तियां नव लेखक एम. इजराम फरीदी के द्वितीय उपन्यास ट्रेजडी गर्ल के अंतिम कवर पृष्ठ से हैं।
        एक थी गुल- जी हां, ये कहानी एक गुल की है और उस गुल का नाम था -सुरभि। नाम उसका सुरभि था लेकिन अतीत उसका काला था। वही काला अतीत उसका वर्तमान बन कर जब सामने खङा हो गया। तब मुसीबतों के पहाङ उस पर टूट पङे।
  प्रस्तुत उपन्यास जहाँ एक और हमें सामाजिक लगता है वहीं दूसरी तरफ जासूसी भी दिखाई देता है। जहाँ एक तरफ प्यार है तो वहीं दूसरी तरफ इसमें नफरत भी है। दोस्त हैं, दुश्मन भी हैं और दोस्त-दुश्मन भी है।

कहानी-
उपन्यास की कहानी की बात करे तो यह सुरभि नामक एक ऐसी युवती की कहानी है जिसका अतीत कभी दागदार रह चुका है। अब सुरभि एक अच्छा जीवन जी रही है, अपने अतीत को भूला कर। लेकिन एक दिन सुरभि के अतीत का मित्र ही उसके सुनहरे वर्तमान पर काला बादल बन कर छा जाता है। अब सुरभि कहां जाये।
      इस पुरुष प्रधान समाज में स्त्री की नियति है की वह हर जगह छली जाती। इन परिस्थितियों से उसे  हर बार बचाता है सुरभि का दोस्त अजय।
अपने अतीत के ब्लैकमेलर से बचने के लिए अपने मित्र अजय का सहारा लेती है। लेकिन ब्लैकमेलर उसके पति विशाल से पास जाने की धमकी देता है।
      लेकिन जब सुरभि के पति विशाल का ब्लैकमेलर से वास्ता पङता है तब वह सुभाष कौशिक नामक जासूस को  सत्यता का पता लगाने के लिए बुलाता है।
सुरभि का दोस्त अजय जब भारी मुसीबत में‌ फंस जाता है तब सुरभि चाह कर भी उसकी मदद नहीं कर पाती और सुरभि का पति विशाल भी इस मित्रता को पसंद नहीं करता।
यहीं से कहानी में एक जबरदस्त मोङ आता है और कहानी अपने-पराये, दोस्त-दुश्मनों के चेहरों से नकाब उतारती हुयी जासूस सुभाष कौशिक के संवाद के साथ एक विषाद पूर्ण स्थिति में खत्म हो जाती है।
पल-पल बदलते पात्र-
कहानी की एक विशेषता यह है की समस्त पात्र स्वतंत्र है और एक अच्छा कहानीकार भी वही माना जाता है जो अपने पात्रों को अपनी कठपुतली न बनाकर उन्हें स्वतंत्र आचरण करने दे। इसी विशेषता के कारण ट्रेजडी गर्ल उपन्यास सत्यता के ज्यादा नजदीक नजर आता है।
     पाठक उपन्यास के किसी भी पात्र पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं कर सकता है की यह पात्र कहां तक ईमानदार है या कहां तक अपने नियमों पर बद्ध।
  कब सुरभी बदल जाती है, कब विशाल पल-पल बदलता है और कब अजय के विचारों में परिवर्तन आ जाये कुछ भी नहीं कहा जा सकता।
एक जबरदस्त दृश्य-
उपन्यास का एक बहुत ही हास्य व रोचक दृश्य है। जब ब्लैकमेलर सुरभि के पति को सुरभि के काले अतीत के दम पर ब्लैकमेल करने की कोशिश करता है
आप भी देख लीजिएगा।
ब्लैकमेलर ने फोन किया- " आदमी बङे खतरनाक बोल रहे हैं हम...।"
"क...कौन?"
"नाम को जाने दो...।"
"ओह समझा- संदीप दूबे बोल रहे हो तुम।"
ब्लैकमेलर उछला- "अबे..तुझे मेरा नाम कैसे मालूम?"
"...असली संदीप दूबे जी ने....।"
"असली संदीप दूबे ? ये कौन हुआ बे?"
पाठक महोदय वास्तविकता तो ये है की ये ब्लैकमेलर ही असली संदीप दूबे और जिसे स्वयं यहाँ पहचान का संकट पैदा हो गया।
चलो अब थोङा आगे के दृश्य का रसास्वादन करते हैं-
"प्यारे, ज्यादा मेरे दिमाग को मत झुलसा- मैं पहले से परेशान  हूँ- बस मुझसे ब्लैकमेल हो जा- तू जानता है कि तेरी पत्नी के खिलाफ मेरे पास क्या-क्या है?"
"उसकी कोई जरूरत नहीं वो मैने देख रखी है"
"क..कहां- तूने क्या देख ली भई?"
"अपनी बीवी के पास - उसके मोबाइल में है।"
संदीप के आगे पूरी दुनिया घूमने लगी। उसे चक्कर आने लगा।
"कैसा पति है यार तू?"- संदीप रो देने वाले स्वर  में बोला-" अपनी बीवी की रंगरलियां देख कर खुश होता है।"
देखा पाठक मित्रो ऐसा दृश्य कहीं। जहाँ स्वयं ब्लैकमेलर पनाह मांगता नजर आता है। क्या कोई पति अपनी पत्नी के अश्लील विडियो पर खुश हो सकता है। कभी भी नहीं, तो फिर यहाँ क्या चक्कर है?

संवाद-
उपन्यास में बहुत से ऐसे संवाद है जो पात्र का चरित्र-चित्रण करने के साथ-साथ उपन्यास को गति भी देते हैं। कई संवाद तो जीवन को सही दिशा देने वाले दर्शन सूत्र की तरह भी हैं।
- 'वफा, प्यार, मोहब्बत- ये सब फैंटेसी शब्द हैं, जो दिखने में तो खूबसूरत हैं लेकिन इनकी हकीकत कुछ भी नहीं है।"-(पृष्ठ-92)
- "नियति हमारे हाथ में नहीं है, बल्कि हम उसकी कठपुतलियां हैं - गिले शिकवे अपनी जगह और यथार्थ के कङवे घूंट अपनी जगह।"-(92-93)
- " मायके का तो कुत्ता भी प्यारा होता है।" (93)
- "जमाना कहीं नहीं पहुंचा- जमाना वहीं है, आज भी रोटी चावल खा रहा है- बस अय्याशी पर पहले प्रतिबंध था, अब वह ओपन हो गयी है। बीवी अपने पति की न होकर बाकी  सबकी है, बस यही चेंजिंग आई है जमाने में।"-(125)
- "दुनिया का कोई भी ऐसा मर्द नहीं है जो अपनी पत्नी के रूप में ईमानदार सीधी-सादी, नेक और चरित्रवान लङकी को न चाहता हो जबकि प्रेमिका के रूप में वह कैसी भी लङकी को पसंद कर लेगा।"-(143)
-" आशिक का मुकद्दर ऐसा होता है की वह करवटें बदलते-बदलते एक दिन गहरी नींद सो जाता है।"-(167)
-" जब दुश्मन के साथ दोस्त मिल जाये तब तबाही को रोक पाना मुश्किल है।"-(180)
-"एक औरत की क्या नियति है? जहां जायेगी छली जायेगी।"-(226)

जो मुझे अच्छा नहीं लगा-
पृष्ठ संख्या 89 पर सुरभि अजय को अपने पति विशाल के बारे में कहती है।
- "....मेरी जुल्फों की जंजीरों में जकङा गुलाम भला मेरे खिलाफ सोच सकता है"
वर्तमान में सुरभि एक पतिव्रता व अपने पति को सच्चा प्यार करने वाली स्त्री है। तब वह अपने पति संदर्भ में गुलाम या जुल्फों में जकङा आदि शब्द प्रयोग नहीं करेगी। इन शब्दों का अर्थ की वह अपने पति से सच्चा प्यार नहीं करती।
- पूरे उपन्यास में मात्र दो पंक्तियाँ है जो बस मुझे अच्छी नहीं लगी। क्योंकि उनकी वहाँ आवश्यकता नहीं थी।
पृष्ठ संख्या 151 की प्रथम दो पंक्तियाँ ।
- महाभारत की पात्र द्रोपदी को पांचाल क्षेत्र की होने के कारण पांचाली कहा जाता है। इस उपन्यास में लेखक सुरभि को किसी संदर्भ विशेष में पांचाली कहा है इसका कारण समझ में नहीं आता।
  उपन्यास पढें-
उपन्यास की भाषा शैली बहुत ही सरल है जो पाठक को तुरंत समझ में आती है। कहानी हमारे परिवेश की होने के कारण व संस्पैंश के कारण पाठक के मर्म को छू जाती है।
      युवावस्था में भटक कर की गयी गलतियाँ भविष्य में हमारे लिए किस प्रकार मुसीबतें खङी कर सकती हैं यह तो इस उपन्यास को पढ कर ही जाना जा सकता है।
  वर्तमान उपन्यास जगत के मार-काट, जासूसी और हिंसा प्रधान या फिर सामाजिक उपन्यासों के दौर में प्रस्तुत उपन्यास बिलकुल अलग है। क्योंकि उपन्यासकार ने जासूस को तो दिखाया है पर उसे कहीं भी हावी नहीं होने दिया यही स्थिति ब्लैकमेलर की है।
लेखक एम. इकराम फरीदी की कलम को नमन जिन्होने एक संग्रहनीय उपन्यास लिखा।

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उपन्यास- ट्रेजडी गर्ल
लेखक- एम. इकराम फरीदी
प्रकाशक- धीरज पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ- 240
मूल्य-80₹
सन्- may-2017
(उपन्यास प्राप्त करने के लिए लेखक से भी संपर्क किया जा सकता है)
एम.इकराम फरीदी
-Call/paytm- 9911341862
    - 8006756415
- moi mean fare edit gmail.com

2 comments:

  1. अच्छा रिब्यु नावेल लेना पड़ेगा

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  2. उपन्यास रोचक लग रहा है। देखता हूँ कहीं मिलता है तो।

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