Wednesday 22 February 2023

556. खून की बौछार- इब्ने सफी

क्या था कुएं का राज
खून की बौछार- इब्ने सफी
विनोद- हमीद शृंखला

   हिंदी रोमांच कथा साहित्य में इब्ने सफी साहब अपने समय के श्रेष्ठ कथाकार रहे हैं। एक युग उनके नाम रहा है।  रोमांच और रहस्य का मिश्रण उनके उपन्यासों को पढने के लिए पाठकवर्ग को विवश कर देता था।
   इब्ने सफी द्वारा लिखा गया 'खून की बौछार' भी एक रहस्य और रोमांच से परिपूर्ण कथानक है।
ठाकुर धरमपाल सिंह अपने एक अतिथि रमेश के साथ बाग में बैठे थे। अधेड़ावस्था के रमेश के साथ ठाकुर साहब की मुलाकात भी एक रहस्यमयी कहानी की तरह है। देश -विदेश भ्रमण के शौकीन रमेश कुमार ठाकुर साहब और उनकी पुत्री रंजना को विभिन्न किस्से सुना रहे थे।

अभी ये लोग बातें कर ही रहे थे कि सहसा सारे बाग में प्रकाश हो गया। रंजना ने पलट कर देखा और चीख मार कर उछल पड़ी ।
   पुराने अन्धे कुएं से अंगारों का फव्वारा सा छूट रहा था । चिंगारियाँ अधिकाधिक ऊंचाई तक जा रही थी । एक विचित्र प्रकार की झन्नाटेदार आवाज से सारा बाग गूंज रहा था । (उपन्यास अंश- खून की बौछार- इब्ने सफी)

      यह भयानक खेल यही नहीं रुका बल्कि ठाकुर साहब की हवेली की दीवारों से  भी विभिन्न प्रकार के जानवरों की आवाजें आने लगी।
    कुछ लोग इसे भूतों का खेल समझते थे तो कुछ लोग इसे किस अपराधी व्यक्ति का कृत्य। लेकिन ठाकुर साहब के सौतेले अर्द्धविक्षिप्त भाई को इन सब से कोई‌ मतलब नहीं था। वह युवा होकर भी बच्चों जैसे हरकते करता था।
   जब घर के लोग इन घटनाओं से परेशान हो गये तो मजबूर होकर मिस रंजना को सी.आई.डी. इंस्पेक्टर विनोद कुमार की मदद लेनी पड़ी।
विनोद कुमार अपने सहकारी हमीद के साथ आ पहुंचा ठाकुर धरमपाल की हवेली दाराब नगर।
नयी हवेली पुराने हवेली का नया संस्करण थी। पुरानी हवेली के कुछ खण्डहर अब भी उपस्थित थे।
  एक तरफ मिस्टर रमेश और उसके नेवले का किरदार रहस्यमयी था वहीं कुछ घटनाएं भूतिया प्रतीत होती थी। हमीद जैसा व्यक्ति भी हवेली से भाग खड़ा हुआ था।  

विनोद कमरे के दरवाजे पर खड़ा होकर सिगार सुलगाने लगा और हमीद कमरों के अन्दर चला गया ।
         तभी हमीद की चीख सुनाई पड़ी । विनोद झपट कर कमरे के भीतर गया। हमीद दीवार को टेक लगाये हुये आश्चर्य से कमरे के चारों ओर देख रहा था। वह ऊपर से नीचे तक खून में हवा हुआ था।
"अरे यह क्या ?” - विनोद ने पूछा ।
हमीद चुपचाप खड़ा रहा । अचानक वह चीख कर भागा । उसके पीछे विनोद भी भागा और फाटक के करीब जाते जाते पकड़ लिया ।
"आखिर बात क्या है कुछ बताओ तो सही ?"-  विनोद ने कहा।
"मैं एक मिनट के लिये भी यहीं नहीं ठहर सकता ।" - हमीद ने हाँफते हुये कहा - "देखिये ! यह खून की बौछार।"

  वहीं जब रमेश के रहस्यमयी व्यक्तित्व की बात चली तो रंजना ने उसके नेवले का जिक्र किया।

           रंजना ने जब रमेश के नेवले की कथा कही तो विनोद ने कहा- "मैंने भी ऐसा नेवला आज तक नहीं देखा । सचमुच वह एक विचित्र जानवर है और उसमें बहुत से असाधारण गुण भी हैं। ब्राजील के आदि निवासी उसे शिकाकी कहते हैं और बड़े अदब से उसका नाम लेते हैं । एक खास त्योहार पर तो वे लोग उसकी पूजा भी करते हैं।

     विनोद और हमीद की सजगता के पश्चात भी एक कत्ल हो गया और एक रात ठाकुर साहब भी हवेली से गायब हो गये। वहीं कुएं से चिंगारियां, दीवारों से भयानक आवाजें और खण्डहर में लटकती खोपड़िया विनोद- हमीद के लिए निरंतर रहस्यमयी बनती जा रही थी। लेकिन विनोद को इन सब का रहस्य तो जानना ही था।
   एक लम्बे संघर्ष के पश्चात विनोद ने इन रहस्यों से पर्दा हटा दिया और असली अपराधी को खोज निकाला ।
उपन्यास शीर्षक- उपन्यास का शीर्षक कथा अनुरूप नहीं है। उपन्यास में एक जगह हमीद पर खून की बौछार होती है और उसी आधार पर उपन्यास का नामकरण कर दिया गया है।
   खून की बौछार क्यों होती है, कौन करता है जैसे प्रश्नों का उपन्यास में उत्तर नहीं मिलता।
   अगर उपन्यास का शीर्षक 'कुएं का रहस्य' होता तो ज्यादा अच्छा था। हां, एक महत्वपूर्ण बात तो रह ही गयी।
  इब्ने सफी द्वारा उर्दू में रचित इस उपन्यास का नाम 'कुएं का राज' है। लेकिन हिंदी अनुवाद में पात्रों के नाम परिवर्तन के साथ ही उपन्यास शीर्षक भी बदल दिया गया है।
उर्दू नाम - कुएं का राज      हिंदी नाम - खून की बौछार
नवाब रशीदुज्ज़माँ  -          ठाकुर धरमपाल सिंह
गजाला    -                      रंजना
फरीदी-                           विनोद
हमीद -                           हमीद
परवेज -                         शंकर
तारिक-                          रमेश

उपन्यास अंश-
रंजना से विदा होने से प्रथम हमीद के मस्तिष्क में खण्डहर नाच रहा था । सन्ध्या हो चुकी थी कालिमा का साम्राज्य आरम्भ हो रहा था । हमीद खण्डहर की ओर बढ़ा। रात के सन्नाटे में सहसा उसे उछलती हुई खोपड़ियाँ याद आ गई । वह भयभीत हुआ, किन्तु विनोद का ध्यान और कुएं के रहस्य ने उसे पुनः उत्साहित किया, वह धीरे धीरे खण्डहर की ओर बढ़ा। आज वातावरण पूर्ण रूप से शान्त था । अन्धेरे में सांय सांय करती हुई वायु नीरवता को कम्पित कर रही थी। गढ़े में खोपड़ियों का पता नहीं था । वह देर तक का हुआ गढ़े में झाँकता रहा । भय के कारण तीव्र स्वांस एक बार उसके कान से टकराई, और उसे ऐसा ज्ञात हुआ मानो कोई हिंसक पशु उसे सूंघ रहा हो, वह चौंक कर पीछे हटा और चारों ओर दृष्टि दौड़ाई, किन्तु कुछ नहीं दिखाई पड़ा । खण्डहरों में सन्नाटा छाया हुआ था, हृदय को दृढ़ करके वह पुनः आगे बढ़ा ।

विनोद का नियम-
विनोद का नियम था कि जब किसी ऐसे गम्भीर मामले पर विचार करना होता ता प्रायः वह खाली पेट रहा करता था इसी कारण से आज भी उसने नाश्ता नहीं किया ।
प्रस्तुत उपन्यास का कथानक रोचक है। एक अजीब व्यक्ति रमेश, उसका उस से भी अजीब नेवला, कुएं का रहस्य, नाचती खोपड़िया, दीवारों से आवाजें इत्यादि घटनाएं उपन्यास को अत्यंत रोचकता प्रदान करती हैं।
  वहीं उपन्यास के अंत में बहुत से प्रश्न निरुत्तर रह जाते हैं, लेखक महोदय ने बहुत से प्रश्नों को प्रश्न ही रखा है।
     मनोरंजन की दृष्टि से उपन्यास पठनीय है, पाठक को नीरस प्रतीत नहीं होता।

उपन्यास- खून की बौछार
लेखक-    इब्ने सफी
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