Sunday 19 February 2023

555. बदमाशों की बस्ती- वेदप्रकाश काम्बोज

कोटाम्बू के खतरनाक बदमाशों की कथा
बदमाशों की बस्ती- वेदप्रकाश काम्बोज

विजय दबे पांव रघुनाथ के पलंग के पास आया इस समय उसके हाथ में एक बड़ा सा गुब्बारा था जो कि हवा भरी होने के कारण और भी बड़ा हो गया था। वह रघुनाथ के पलंग के सिराहने आया, खड़ा हो गया और कुछ करना ही चाहता था कि तभी रैना ने रसोई घर की ओर वाले द्वार से प्रवेश किया। (उपन्यास प्रथम पृष्ठ से)

    यह दृश्य है वेदप्रकाश काम्बोज द्वारा रचित उपन्यास 'बदमाशों की बस्ती' का। प्रस्तुत उपन्यास एक्शन-रोमांच से परिपूर्ण एक रोचक रचना है।        

बदमाशों की बस्ती- वेदप्रकाश काम्बोज
     बदमाशों की बस्ती ये विजय-रघुनाथ सीरीज का एक मशहूर उपन्यास है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए आपको 'वेस्टर्न-क्लासिक्स' की याद बरबस ही आ जाएगी। एक्शन के साथ मजेदार घटनाओं से भरपूर नॉवल। साथ में है आशा, अशरफ और पवन। 'नीलम जासूस कार्यालय' की स्थापना लाला श्री सत्यपाल वार्ष्णेय ने आज से 60 साल पहले की थी। ये 1960 के दशक की एक बहुत मशहूर प्रकाशन संस्था रही है। इस संस्था ने कई दिग्गज उपन्यासकारों और लेखकों के शुरुआती दौर के उपन्यास प्रकाशित किए। इस संस्था से एक ‘नीलम जासूस’और ‘राजेश’ नाम की मासिक पत्रिकाएँ निकलती थीं। नीलम जासूस मुख्यत: श्री वेद प्रकाश काम्बोज के और राजेश में जनप्रिय ओम प्रकाश शर्मा जी के उपन्यास निकलते थे। इसके अलावा श्री सत्यपाल वार्ष्णेय ने एक फिल्मी मैगजीन —‘फिल्म अप्सरा’ भी निकली थी, जोकि बेहद मशहूर हुई। सुनहरे दौर के क्लासिक उपन्यासों को पुनः प्रकशन के उद्देश्य से नीलम जासूस ने दो शृंखलाएँ 'सत्य-वेद'और 'सत्य-ओम’ शुरू की हैं।
(अंतिम आवरण पृष्ठ से)

   'बदमाशों की बस्ती' नीलम जासूस कार्यालय द्वारा प्रस्तुत 'सत्य-वेद' शृंखला का प्रथम उपन्यास है।
  भारतीय  सीक्रेट सर्विस का श्रेष्ठ जासूस विजय अपने मित्र पुलिस सुपरि... रघुनाथ से उसके घर पर मिलकर आया तो आते वक्त उसे उसका एक पुराना मित्र किशोर मिल गया।
'यार विजय मेरा एक काम कर देगा?'
'एक छोड़ दो काम बताओ मेरी बूढ़ी जान।'
"तुम कोटाम्बू तो जा ही रहे हो अपने साथ एक बक्स भी लेते जाओ।'
'क्या मतलब?'
'मतलब यह है कि तुम रिवाल्वरों का एक बक्स ले जाओ और इसे मोश जे. एंड के. लिमिटेड को दे देना।'

      अंततः विजय ने वह रिवाल्वरों का डिब्बा कोटाम्बू पहुंचाना स्वीकार कर लिया। विजय को नहीं पता था कि कोटाम्बू एक अलग ही दुनिया है, एक ऐसी दुनिया जहाँ इंग्लिश गुण्डे निवास करते हैं और कोटाम्बू को 'बदमाशों की बस्ती' कहा जाता है।
   'बदमाशों की बस्ती' कहा जाने वाला कोटाम्बू शहर बहुत ही अजीब है। शहर से दूर एक सुनसान रेल्वे स्टेशन एकमात्र माध्यम है वहाँ पहुंचने का लेकिन वहाँ भी आदिवासी लोगों का खतरा हर पल रहता है।
   कोटाम्बू में विजय की मुलाकात रोशी से होती है जो विजय को कोटाम्बू शहर के विषय में बताती है-
-'यह एक बहुत ही अजीब शहर है। यहां के समस्त निवासी योरोपियन टाइप के है सबकी पोशाकें भी लगभग एक सी हैं। ऐसा क्यों है मैं स्वयं नहीं जानती यहां के निवासी मौत से नहीं डरते वे केवल मुझसे या कैनिथ से डरते हैं। इस शहर में हम दो पार्टियां ही सबसे मालदार हैं। हम दोनों एक दूसरे के शत्रु हैं।'
  कोटाम्बू भारत में बसा एक अनोखा शहर है क्योंकि यहाँ यूरोपीय सभ्यता के लोग रहते हैं और वह भी सारे के सारे बदमाश लोग। उनका पहनावा भी यूरोपियन बदमाशों की तरह इसलिए उनको 'इंग्लिश गुण्डें' कहा गया और सब घोड़ों पर यात्रा करते हैं।
     कोटाम्बू शहर के दो प्रसिद्ध गुण्डे हैं रोशी और कैनिथ। दोनों परस्पर दुश्मन हैं। कैनिथ के एक गुर्गे स्मिथ से विजय की भिड़ंत हो जाती है।
    कैनिथ से बच कर भागता विजय एक आदिवासी कबीले में पहुंच जाता और कबीले का सरदार अपनी पुत्री की शादी विजय से करना चाहता है।
    उपन्यास के शेष घटनाक्रम में विजय का कबीले से निकलना, राजनगर पहुंचना और पुनः कोटाम्बू में जाकर कैनिथ से संघर्ष करना आदि हैं।
    उपन्यास कलवेर में छोटा है और कथास्तर पर भी सामान्य है। कहीं कोई विशेष ट्विस्ट या स्मरणीय घटनाक्रम नहीं है। उपन्यास में विजय के कारनामे पढे जा सकते हैं।
  उपन्यास में विजय और आदिवासी कबीले का प्रसंग हास्यजनक है।
   उपन्यास में मध्याह्न पश्चात भारतीय सीक्रेट सर्विस की पूरी टीम उपस्थित है पर उनका वार्तालाप अन्य उपन्यासों से बहुत भिन्न महसूस होता है, विशेष कर विजय के साथ।
      उपन्यास विशेष तौर पर हाॅलीवुड टाइप के गुण्ड़ों को आधार बनाकर लिखा गया और लेखक महोदय उन्हीं के अनुसार एक पूरा शहर दिखाया और उनकी वैसी ही वेशभूषा दर्शायी है।

   एक बार का दृश्य देखें, जहां कथित इंग्लिश गुण्डों की वेशभूषा का वर्णन है-

     जितनी भी मेजें भरी हुई थीं उन सब पर ऐसे व्यक्ति बैठे हुए थे जिनके शरीर पर वस्त्र अवश्य अच्छे थे लेकिन मुख से गुन्डापन झलक रहा था। यह देखने में बिल्कुल इंग्लिश गुन्डे लगते थे। सिर पर रखी हुई फैल्ट हैट का अगला भाग आगे की ओर झुका हुआ गला में रेशमी रूमाल, चार खाने की कमीज सिर पर उन्होंने चमड़े की जैकेट पहनी हुई थी जिसकी जिप आधी खुली हुई और आधी बन्द थी। कसी हुई गाढ़े रंग की पैंट जिसके पहुंचे पिंडलियों के साथ कसे हुए थे। पैंट के पहुंचों पर जुराब चढ़ी हुई थी और जूतों के तस्मे बड़ी बेतरतीबी से बन्द किये गये थे। कमर पर एक ढीली सी पेटी थी जिसके दोनों ओर दो रिवाल्वरों के खोल लटक रहे थे और उनके सम्बन्ध में विजय का ख्याल था कि वह अवश्य भरे हुए होंगे।
               उन इंग्लिश गुन्डों के आगे शराब के पैग रखे थे और वह बड़ी लापरवाही के साथ सिगरेट का धुआ उड़ा रहे थे और थोड़ी-थोड़ी देर बाद हल्की-हल्की सी चुस्की लगा लेते थे।

लेकिन कथा स्तर पर उपन्यास कमजोर होने के कारण प्रभाव स्थापित नहीं कत पाता। एक तरफ हाॅलीवुड टाइप के गुण्डे तो दिखाये हैं पर वार्तालाप और कथा भारतीय परिवेश की ही है।
   अगर उपन्यास में कथा और संवाद स्तर पर अतिरिक्त परिश्रम किया जाता तो यह हाॅलीवुड टाइप का एक अच्छा कथानक हो सकता था।

उपन्यास-  बदमाशों की बस्ती
लेखक-    वेदप्रकाश काम्बोज
प्रकाशक- नीलम जासूस कार्यालय

अन्य महत्वपूर्ण लिंक
साक्षात्कार- वेदप्रकाश काम्बोज
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1 comment:

  1. रोचक। उपन्यास मैंने भी पढ़ा था। मेरे विचार: बदमाशों की बस्ती

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