Thursday 1 September 2022

531. गुनाह बेलज्जत - संतोष पाठक

वह अपराध कोई काम नहीं आया
गुनाह बेलज्जत - संतोष पाठक

- एक बड़ा बिजनेसमैन, जिसपर अपनी बीवी कि हत्या का इल्जाम था।
- एक बेरोजगार युवक जो अपनी गर्ल फ्रेंड के जरिये करोड़पति बनने के सपने देख रहा था।
- एक लड़की जो अपने मन कि भड़ास निकालने के लिए झूठ पर झूठ बोले जा रही थी।
- एक सब इंस्पेक्टर जो अपने एस.एच.ओ. की निगाहों में अव्वल दर्जे का गधा था।
- एक परिवार जिसमें कोई किसी का सगा नहीं था।
- ऐसे नकारा और बदनीयत लोगों का जब केस में दखल बना तो मामला सुलझने कि बजाय निरंतर उलझता ही चला गया।
'गुनाह बेलज्जत'
- एक ऐसी मर्डर मिस्ट्री जिसने पूरे पुलिस डिपार्टमेंट को हिलाकर रख दिया। 
            लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में श्रीमान संतोष पाठक जी वर्तमान में उपन्यास लेखन में तीव्र गति से लेखन करने वाले लेखक हैं। कभी - कभी तो पाठक एक उपन्यास पढ नहीं पाता और नया उपन्यास पाठकों के समक्ष आ जाता है और हर उपन्यास उतना ही रोचक और पठनीय होता है जितना की पूर्ववत उपन्यास। इन दिनों मैंने संतोष पाठक जी के दो उपन्यास पढे हैं और एक नया उपन्यास प्रकाशित भी हो गया।
        कहते हैं अपराध के मुख्य कारण 'जर, जोरु और जमीं' होते हैं, लेकिन इसके अतिरिक्त और बहुत से कारण अपराध के हो सकते हैं। 'बहुत से' कारणों में से एक कारण इस उपन्यास में उपस्थित है। यहाँ अपराधी ने अपराध तो किया लेकिन उसका 'गुनाह बेलज्जत' श्रेणी में आ गया।      यह अपराध कथा है बिजनेस मैन अखिल अग्निहोत्री की। जिस पर अपनी बीवी के कत्ल का आरोप है। स्वयं अखिल अग्निहोत्री स्वीकार करता है गोली उसी ने ही चलाई थी, पर पुलिस को इस कहानी में कहीं न कहीं कोई ट्विस्ट नजर आता है क्योंकि अखिल अग्निहोत्री द्वारा गोली चलाने का कारण पुलिस की दृष्टि में सही नहीं।
   इस केस की जिम्मेदारी दी जाती है सब इंस्पेक्टर सुदीप दयाल को। सब इंस्पेक्टर सुदीप दयाल 35 साल का गठे बदन वाला कद्दावर युवक था, जो 10 साल पहले दिल्ली पुलिस में सीधा सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर बहाल हुआ था, और अभी भी सब इंस्पेक्टर ही था।
        पुलिस विभाग की नजर में संदीप दयाल एक गैरजिम्मेदार, नालायक और गधा किस्म का आदमी है जिस से कोई भी केस हैण्डल नहीं होता। इन्हीं उपाधियों को हटाने के लिए सुदीप दयाल 'ईशा अग्निहोत्री हत्याकांड' को हल करने की जिम्मेदार लेता है। और उसका मुँहलगा हवलदार काशीराम उसका साथ देता है। कारण- हवलदार काशीराम, जो अक्सर उसकी जी हजूरी में लगा रहता था। इसलिए नहीं कि दयाल उसका सीनियर था, या उसके लिए मन में कोई सम्मान था, बल्कि इसलिए क्योंकि दयाल अपनी तकरीबन तंख्वाह खाने पीने पर उड़ा दिया करता था, जिसमें काशीराम का बड़ा शेयर होता था।
     जहाँ बिजनेस मैन अखिल अग्निहोत्री गोली चलाने की बात करता है वहीं वह स्वयं को बेगुनाह भी मानता है। इसलिए वह अपने पत्रकार मित्र आशीष गौतम को बुलाता है। जो की 'खबरदार' नामक एक समाचार पत्र चलाता है।
   अब एक तरफ पुलिस की इंवेस्टीगेशन है और दूसरी तरफ पत्रकार आशीष गौतम की। तथ्य है ईशा की हत्या के केस को सुलझाना।
    इसी दौरान एक और कत्ल हो जाता है और पुलिस को मिले सबूत अखिल अग्निहोत्री के खिलाफ ही जाते हैं। लेकिन अखिल अग्निहोत्री यहाँ भी स्वयं को बेगुनाह बताता है।
   तो फिर यहाँ दो- दो कत्ल हो गये, यह किसने किये? यह प्रश्न पुलिस और पत्रकार आशीष गौतम के लिए गंभीर प्रश्न था।
जहाँ आशीष गौतम को इस मर्डर केस को हल करना था वहीं सुदीप दयाल को स्वयं पर लगे आक्षेप हटाने थे और स्वयं की तरक्की के रास्ते खोलने थे, इसलिए उसे 'येन केन' इस केस को हल करना ही था।
  
         आशीष गौतम पत्रकार का है। पत्रकारिता के प्रति उसके विचार पठनीय है। वर्तमान पत्रकारिता कितनी दूषित हो गयी है, यह किसी से भी छिपा हुआ नहीं है। वास्तव में पत्रकारिता तो सत्य को सामने लाने की एक पहल है, इसी पहल के चलते आशीष गौतम 'ईशा अग्निहोत्री हत्याकांड' को हल करता है।
  “एक बात हमेशा याद रखना दोस्तों कि पत्रकार होना एक ऑनर है और पत्रकारिता एक मुहिम है, ऐसी मुहिम जो लोकतंत्र के चार स्तंभो में से एक है। यानि लोकतंत्र को कायम रखना है तो चारों का मजबूती से अपनी जगह पर डटे रहना बहुत जरूरी है, एक स्तंभ भी इधर से उधर हुआ तो लोकतंत्र रूपी इमारत भरभरा कर ढह जायेगी। अब बाकी तीनों पर सीधा तो हमारा कोई अख्तियार है नहीं, मगर लगाम कसने की कोशिश तो हम कर ही सकते हैं, बल्कि करते हैं। इसलिए हम निष्पक्ष पत्रकारिता में यकीन रखते हैं, ईमानदारी से खबरें छापते हैं, क्योंकि हम खबरदार हैं। जोर से बोलो कि हम खबरदार हैं।”

          और अंत में आशीष गौतम के अपराधी के प्रति कहे गये शब्द भी देख लीजिएगा- “चाल अच्छी चली थी ........, मगर अपराध कर के बच निकलना आसान काम नहीं होता, देख लीजिए आपके गुनाहों का घड़ा आखिरकार तो फूट ही गया।"

    सत्य है, अपराधी स्वयं को चाहे कितना भी तेज तर्रार माने लेकिन अंततः वह पकड़ा ही जाता है।
  उपन्यास में पारिवारिक जीवन का अच्छा चित्रण मिलता है। जहाँ परस्पर अविश्वास, पारिवारिक धोखा आदि का बहुत अच्छे से वर्णन है।
    अखिल अग्निहोत्री के परिवार की बात करें तो वहाँ धन तो है पर परस्पर प्रेम का अभाव स्पष्ट दिखाई देता है। अखिल अग्निहोत्री के जेल चले जाने के पश्चात उसका परिवार जिस ढंग से दर्शाया गया है, उसके चाचा प्रकाश अग्निहोत्री का व्यवहार आदि खत्म होती संवेदनशीलता के उदाहरण है।

   उपन्यास के शीर्षक की बात करें तो शीर्षक उपन्यास के साथ पूर्णतः न्याय करता है। गुनाह बेलज्जत- जिस वजह से कत्ल किया, वह किसी काम नहीं आया।
एक रोचक कथन-
- रिश्ते और दोस्ती दोनों बराबरी में ही अच्छे लगते हैं।

संतोष पाठक द्वारा लिखित 'गुनाह बेलज्जत' एक मर्डर मिस्ट्री आधारित रचना है। उपन्यास में कुल दो कत्ल और पुलिस और पत्रकार की इंवेस्टीगेशन दिखायी गयी है। उपन्यास का अंत वास्तव में चौंकाने वाला है।

उपन्यास -  गुनाह बेलज्जत
लेखक -     संतोष पाठक
श्रेणी -       मर्डर मिस्ट्री
शृंखला-    आशीष गौतम सीरीज

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1 comment:

  1. उपन्यास के प्रति उत्सुतकता जगाता आलेख। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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