Wednesday 27 May 2020

322. मर्डर इन लाॅकडाउन- संतोष पाठक

सिगरेट की लत से कत्ल तक का किस्सा
मर्डर इन लाॅकडाउन- संतोष पाठक, मर्डर मिस्ट्री उपन्यास

"....हम सबको किस्मत के आगे आखिरकार घुटने टेकने ही पड़ते हैं। जरा खुद के बारे में ही सोच कर देखो। लॉकडाउन नहीं होता तो तुम यूं पुलिस से डरकर उस बिल्डिंग में नहीं घुसे होते, जहां ना सिर्फ एक कत्ल होने वाला था, बल्कि उस कत्ल में तुम गर्दन तक लपेटे में आने वाले थे। जबकि तुम्हारी किसी से कोई अदावत नहीं थी, किसी ने तुम्हें बलि का बकरा बनने के लिए वहां पहुंचने को मजबूर नहीं किया था। मगर तुम पहुंचे, क्योंकि तुम्हारी किस्मत में वही बदा था।‘‘
       यह दृश्य है संतोष पाठक जी के मई 2020 में प्रकाशित उपन्यास 'मर्डर इन लाॅक डाउन' का। यह एक तेज रफ्तार मर्डर मिस्ट्री है।
      एक सिगरेट की लत- कोरोना वायरस के चलते दिनांक 22.03.2020 को सम्पूर्ण देश में जनता कर्फ्यू था। जनता बाहर नहीं निकल सकती थी, सड़कों पर पुलिस थी। लेकिन, इसे सिगरट की लत थी, सिगरेट के बिना वह स्वयं को अधूरा सा महसूस करता था। पुलिस से डरता, सिगरेट लेने वह बाहर निकला, और एक कत्ल के इल्जाम में पुलिस ने उसे पकड़ लिया। "लॉकडाउन में सिगरेट की खोज में निकलने की इतनी बड़ी सजा? तुम तो तरस खाने के काबिल लगने लगे हो।‘‘ (उपन्यास अंश)  


- क्या यह उसकी किस्मत थी?
- क्या यह कोई सोची समझी साजिश थी?
- क्या वह सिगरेट के बहाने कत्ल करने गया था?
- किसका कत्ल हुआ और क्यों हुआ?


लोकप्रिय जासूसी उपन्यास साहित्य में ऐसे बहुत कम (नाममात्र) ही उपन्यास होंगे जो वर्तमान परिस्थितियों को आधार बना कर लिखे गये हों। परिस्थितियाँ तो दूर उपन्यास में समयकाल का अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता। लेकिन संतोष पाठक जी द्वारा लिखा गया 'मर्डर इन लाॅकडाउन' अपने शीर्षक में ही एक समय विशेष को समेटे हुये है।
           प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है। अतुल जोशी नामक एक गारमेंटस व्यापारी का उसी के फ्लैट में कत्ल कर दिया जाया है। और उसके कत्ल के इल्जाम में प्राइवेट डिटेक्टिव विक्रांत गोखले को गिरफ्तार कर लिया जाता है। क्योंकि हर सबूत उसके खिलाफ है।
‘‘हर बात, हर सबूत तुम्हारे खिलाफ है - उसका लहजा सख्त हो उठा - ‘कातिल रिवाल्वर‘ तुम्हारे कब्जे में पाई गई, घटनास्थल पर दिखाई दिये तुम इकलौते ऐसे शख्स थे जिसका मुकाम उस बिल्डिंग में नहीं था। कत्ल करने के बाद तुम्हारा मौका-ए-वारदात से भागना और उस कोशिश में ........... कोई ऐसी बात नहीं है जो समझ में ना आ सके। उस बात से साफ पता चलता है कि कत्ल के बाद तुम पर बौखलाहट, पकड़े जाने का खौफ किस कदर हावी था। नहीं मिस्टर डिटेक्टिव तुम बच नहीं सकते! रही बात कत्ल के मोटिव की, तो आखिरकार तो हम उसे ढ़ूढ कर ही रहेंगे। ....।"
लेकिन विक्रांत गोखले स्वयं को निर्दोष मानता है। उसकी एक रट ही रह है। -‘‘मैंने कत्ल नहीं किया।‘‘ .....पुरजोर लहजे में बोला।
          सस्पेंश से भरपूर उपन्यास 'मर्डर इन लाॅकडाउन' पढते वक्त रोमांच खूब जागता है। कैसे एक छोटी सी घटना एक बड़ा रूप ले लेती है, कैसे सिगरेट पीने की चाहता आदमी को अपराधी की श्रेणी में ले जाती है।
        उपन्यास की कहानी रोचक और तेज रफ्तार है। जहाँ एक तरफ लाॅक डाउन जैसी स्थिति है, वहीं पाठक यह भी सोचता है कि जब कोई घर से बाहर नहीं निकल सकता तो डिटेक्टिव महोदय खोजबीन कैसे करेंगे और उस पर भी लेडी सिंघम गरिमा देशपाण्डे जो किसी की बात तक नहीं सुनती।
लेकिन जहाँ चाह वहाँ राह निकल ही आती है, और जब जान पर बनती है तो आदमी अपनी जान बचाने के लिए कुछ न कुछ तो करता ही यही कुछ फिर डिटेक्टर विक्रांत गोखले ने किया।
        यह पढना काफी रोचक रहा कि उसने कातिल को कैसे ढूंढ निकाला। कैसे उसने उन सबूतों को निराधार साबित किया जो उसके खिलाफ थे।
उपन्यास का हर एक पात्र अपने आप में अनोखा है। वह चाहे विक्रांत गोखले हो, गरिमा पाण्डे हो, चाहे फिर मृतक अतुल जोशी हो।

         हर उपन्यास में कुछ न कुछ नया मिल ही जाता है। एक अच्छा लेखक वह है जो समसामयिक घटनाओं को अपने उपन्यास में स्थान दे। संतोष पाठक जी में अपने उपन्यास में कई जगह वर्तमान विसंगतियों को उजागर किया है।
वर्तमान मीडिया पर एक घटना के माध्यम से कहा है-
"....जिसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया था, जो जलती आग में लगातार घी डाले जा रहा था।"
पुलिस की कार्यशैली पर एक व्यंग्य देखें- स्वयं पुलिस अधिकारी की जुबान से-
- "...कातिल साबित करना और खजूर के पेड़ पर आलू उगाना हमारे लिए एक ही बात होती।"
और स्मरणीय संवाद भी उदाहरण स्वरुप पढ लीजिएगा-
- ‘‘डरना अच्छी बात है। डरा हुआ आदमी अलर्ट रहता है। क्या पता मौत कब किस दरवाजे से दस्तक दे दे।"
- कुत्ता हमें देखकर भौंकता है तो जवाब में हम खुद भी भौं-भौं करना नहीं शुरू कर देते। अलबत्ता उसकी तरफ से इतने चौकन्ने जरूर हो जाते हैं कि अगर वह हमें काट खाने की कोशिश करता दिखाई दे तो उसे जमकर एक लात मार सकें।
मर्डर मिस्ट्री आधारित यह एक तेज रफ्तार उपन्यास है। हर एक पात्र संदिग्ध नजर आता है और हर एक पात्र निर्दोष भी नजर आता है। अब शक की सुई सब पर घूमती है यह किस पर ठहरती है यह रोमांच उपन्यास पढने को मजबूर करता है।
उपन्यास दिलचस्प और पठनीय है। भरपूर मनोरंजन में सक्षम है।

उपन्यास -  मर्डर इन लाॅकडाउन
लेखक-      संतोष पाठक
प्रकाशक-   थ्रिल वर्ल्ड
फॉर्मेट-     ebook on kindle

लिंक-      मर्डर इन लाॅकडाउन,संतोष पाठक

1 comment:

  1. पाठक जी जिस हिसाब से एक के बाद एक कृतियाँ ला रहे हैं उससे लगता है कि हिन्दी अपराध साहित्य का बी भविष्य काफी अच्छा है। लेख उपन्यास पढ़ने की इच्छा मन में जगाता है। मौका मिलते ही जरूर पढूँगा।

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