रेत की दीवार- कर्नल रंजीत
जासूसी उपन्यासकार कर्नल रंजीत की कलम से निकली एक रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण कहानी जिसका संबंध सदियों पूर्व की एक ऐसी औरत से है जो वर्तमान में रक्त से कहानी लिख रही है। जिसका प्रेम और प्रतिशोध वासना और हत्याओं में बदल जाता है।
इस रोचक उपन्यास 'रेत की दीवार' का हम आरम्भ करते हैं उपन्यास के प्रथम अध्याय 'चार लाख' से । यह अध्याय एक ऐसे युवक का जिसके पास जैसे ही धन आता है उसी के साथ बिन बुलाये, घर बैठे मुसीबतें आनी आरम्भ हो जाती हैं। जैसे ऊंट चढे को कुत्ता खा गया, जैसे होम करते वक्त हाथ जल गये।
चार लाख रुपये
रांची के निकट पहुंचकर ट्रेन की गति धीमी हो गई थी। रेल-पटरी की मरम्मत हो रही थी।
पहले दर्जे के कम्पार्टमेण्ट में छब्बीस वर्ष का एक नवयुवक बाई सीट पर बैठा हुआ था। एक पुस्तक उसके घुटनों पर रखी हुई थी। वह पढ़ते-पढ़ते उकता गया था। अब वह सामने की सीट पर बैठे अधेड़ आयु के युगल को देख रहा था। वे सेव काटकर खा रहे थे।
इस रोचक उपन्यास 'रेत की दीवार' का हम आरम्भ करते हैं उपन्यास के प्रथम अध्याय 'चार लाख' से । यह अध्याय एक ऐसे युवक का जिसके पास जैसे ही धन आता है उसी के साथ बिन बुलाये, घर बैठे मुसीबतें आनी आरम्भ हो जाती हैं। जैसे ऊंट चढे को कुत्ता खा गया, जैसे होम करते वक्त हाथ जल गये।
रांची के निकट पहुंचकर ट्रेन की गति धीमी हो गई थी। रेल-पटरी की मरम्मत हो रही थी।
पहले दर्जे के कम्पार्टमेण्ट में छब्बीस वर्ष का एक नवयुवक बाई सीट पर बैठा हुआ था। एक पुस्तक उसके घुटनों पर रखी हुई थी। वह पढ़ते-पढ़ते उकता गया था। अब वह सामने की सीट पर बैठे अधेड़ आयु के युगल को देख रहा था। वे सेव काटकर खा रहे थे।



