Thursday, 27 February 2025

भयंकर जाल- ओमप्रकाश शर्मा

 राजेश सीरीज का प्रथम उपन्यास
भयंकर जाल - ओमप्रकाश शर्मा 

केन्द्रीय खुफिया विभाग के कार्यालय में आज भीषण एवं भयपूर्ण खामोशी छाई हुई थी।
चीफ आफ स्टाफ श्री नायडू आज कार्यालय में आये हुये थे।
पूरे खुफिया विभाग के कर्मचारियों में श्री नायडू एक सख्त और हृदयहीन अफसर के रूप में विख्यात हैं। नये और पुराने... सभी कर्मचारी इस श्यामवर्ण बूढ़े, पतले-दुबले आदमी के कारण आज भयभीत-से अपने काम में लगे हुए थे।
- 'मिस्टर राजेश, साहब ने आपको बुलाया है।' चपरासी ने आकर कहा।
राजेश चैंक पड़ा... इर्द-गिर्द बैठे कर्मचारी अज्ञात भय से व्हिवल हो सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से राजेश को निहारने लगे।
नवयुवक राजेश की नियुक्ति अभी डेढ़ महीने पूर्व ही केन्द्रीय खुफिया विभाग में हुई थी। पढ़ाई समाप्त करके तीन साल उसने इस काम की ट्रेनिंग ली थी, ये सही है कि ट्रेनिंग के बाद की परीक्षा में उसने प्रथम श्रेणी प्राप्त की थी, किन्तु केन्द्रीय खुफिया विभाग में उसे स्थान मिल जायेगा इसकी तो कल्पना भी उसने न की थी।

Wednesday, 26 February 2025

बेगम का खजाना- ओमप्रकाश शर्मा- जनप्रिय

आओ जाने खजाने के रहस्य को...
बेगम का खजाना- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

सदियों पुराना खजाना जब सामने आता है तो उसे हथियाने के लिए लोग किस कदर एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं और कैसे प्रसिद्ध जासूस 'बेगम के खजाने' का रहस्य खोजते हैं और अपराधी को बेनकाब करते है यह पठनीय और रोचक है।
आज प्रस्तुत है एक रोचक उपन्यास की समीक्षा । इस समीक्षा का आरम्भ हम उपन्यास के प्रथम पृष्ठ के दृश्य से करते हैं।

केन्द्रीय खुफिया विभाग के चीफ आफ स्टाफ मिस्टर चक्रवर्ती तेजी से सीनियर जासूस राजेश के कमरे में दाखिल हुए।
- 'राजेश?'
-'हूँ।'
इस समय राजेश लाखों गुना बड़ा दिखाने वाले यंत्र से एक खून में काम आई पिस्तौल का निरीक्षण कर रहे थे। आमतौर से मिस्टर चक्रवर्ती इस प्रकार से किसी व्यक्ति के पास नहीं आया करते हैं... फलस्वरूप अपने काम में लगे राजेश यही समझे कि कोई विभाग का साधारण कर्मचारी होगा। केवल 'हूँ' कह कर वह आँख यंत्र से लगाए रहे।
- 'भई राजेश, मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं?'
अबकी बार राजेश ने दृष्टि उठा कर चीफ आफ स्टाफ को देखा।

Thursday, 20 February 2025

सुनहरे बाल नीली आँखें- ओमप्रकाश शर्मा

कहानी एक गायब हुये बच्चे की
 सुनहरे बाल नीली आँखें- ओमप्रकाश शर्मा


लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के सितारे ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास का पुनः प्रकाशन होना एक सराहनीय कार्य है । उनके पाठक के लिए एक अनमोल उपहार है । जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी जासूसी उपन्यास होते हुये भी अपनी जासूसी कहानियों में मानवीय मूल्यों को महत्व देते थे । 
इनका प्रसिद्ध पात्र राजेश अपने मानवीय मूल्यों के कारण ही अन्य जासूसी कथा पात्रिं से एक अलग पहचान स्थापित कर पाया है । प्रस्तुत उपन्यास उन्हीं राजेश महोदय का है ।
यह कहानी एक एक ऐसी युवती की जो अत्यंत सुंदर थी । जिसके बाल सुनहरे और आँखें नीली थी । जिसे देखकर हर कोई उस पर मोहित हो जाता था और यही खूबसूरती उसके जीवन के लिए अभिशाप सिद्ध हुयी और उस पर आरोप था एक बच्चे को चुराने का।

Tuesday, 18 February 2025

627. मुरझाये फूल फिर खिले- ओमप्रकाश शर्मा

अंधविश्वास से टकराते एक युवक की कहानी
मुरझाये फूल फिर खिले- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा

नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2025 और यहाँ से खरीदी गयी किताबों में से दो किताबें जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की हैं। एक 'पी कहां' और दूसरी 'मुरझाये फूल फिर खिले' । दोनों ही सामाजिक उपन्यास हैं, भावना प्रधान ।
'पी कहां' पढने के बाद 'मुरझाये फूल फिर खिले' पढना आरम्भ किया । यह उपन्यास अपने नाम को सार्थक करता हुआ एक भाव प्रधान उपन्यास है, जिसे पढते-पढते आँखें नम हो ही जाती हैं । समाज फैले अंधविश्वास को बहुत अच्छे से रेखांकित किया गया और उसका सामना भी जिस ढंग से किया गया है वह प्रशंसनीय है।

Monday, 17 February 2025

626. पी कहां- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय

एक प्रेम कथा
पी कहां- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा 

पुस्तक प्रेमियों के महाकुंभ 'नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला- 2025' में दो दिवस का भ्रमण हम चार साथियों ने किया और काफी संख्या में पुस्तकें भी लेकर आये । जहाँ मेरा यह तृतीय पुस्तक मेला था वहीं अन्य तीन साथी पहली बार ही आये थे, हालांकि इनमे से एक पुस्तक प्रेमी भी न था ।
गुरप्रीत सिंह, अंकित , सुनील भादू, राजेन्द्र कुमार, ओम सिहाग

पुस्तक समीक्षा से पहले थोड़ी सी बात पुस्तक मेले की । मैं गुरप्रीत सिंह अपने साथी ओम सिहाग (अध्यापक) अंकित (बैंककर्मी) और राजेन्द्र सहारण के साथ दो दिवस तक मेले में रहा । ओम सिहाग को साहित्य पढने में काफी रूचि है, वहीं अंकित को अंग्रेजी प्रेरणादायी पुस्तकें अच्छी लगती हैं और राजेन्द्र को बस साथ घूमना था, और घूमा भी । जहाँ राजेन्द्र और ओम मेरे ही गांव से हैं वहीं अंकित हरियाणा (ऐलनाबाद ) से है। हम चार साथियों के अतिरिक्त मेले में सुनील भादू (हरियाणा) और संदीप जुयाल (दिल्ली) का भी अच्छा साथ रहा ।

  राजस्थान से एक बुर्जग पाठक हैं, उनकी इच्छा पर जनप्रिय ओमप्रकाश शर्मा जी के दो उपन्यास 'पी कहां' और ' मुरझाये फूल फिर खिले' तथा एक उपन्यास कमलेश्वर का 'काली आंधी' लिया था। हालांकि बुजुर्ग महोदय दत्त भारती के अच्छे प्रशंसक हैं लेकिन दत्त भारती जी के इच्छित उपन्यास मेले में नहीं मिले ।

अब बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'पी कहां' की ।
कौन जाने पावस ऋतु में 'पी कहां' पुकारने वाले पपीहे की व्यथा क्या होती है।
कौन जाने... और कैसे जाने !
सागर वह जो अपनी गहराई सदा छुपाये रखे। दीपक वह जो जले... तिल तिल जलने पर भी जिसके उर अन्तर में अंधेरा रहे।
अपना अपना भाग्य ही तो है।
पपीहा वह जो पावस में, तब जबकि सूर्य के प्रकाश को दल बादल उमड़-घुमड़ कर अंधकार में बदल दे... पुकारे... 'पी कहां'।