आओ जाने खजाने के रहस्य को...
बेगम का खजाना- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
सदियों पुराना खजाना जब सामने आता है तो उसे हथियाने के लिए लोग किस कदर एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं और कैसे प्रसिद्ध जासूस 'बेगम के खजाने' का रहस्य खोजते हैं और अपराधी को बेनकाब करते है यह पठनीय और रोचक है।
आज प्रस्तुत है एक रोचक उपन्यास की समीक्षा । इस समीक्षा का आरम्भ हम उपन्यास के प्रथम पृष्ठ के दृश्य से करते हैं।
केन्द्रीय खुफिया विभाग के चीफ आफ स्टाफ मिस्टर चक्रवर्ती तेजी से सीनियर जासूस राजेश के कमरे में दाखिल हुए।
- 'राजेश?'
-'हूँ।'
इस समय राजेश लाखों गुना बड़ा दिखाने वाले यंत्र से एक खून में काम आई पिस्तौल का निरीक्षण कर रहे थे। आमतौर से मिस्टर चक्रवर्ती इस प्रकार से किसी व्यक्ति के पास नहीं आया करते हैं... फलस्वरूप अपने काम में लगे राजेश यही समझे कि कोई विभाग का साधारण कर्मचारी होगा। केवल 'हूँ' कह कर वह आँख यंत्र से लगाए रहे।
- 'भई राजेश, मुझे तुमसे कुछ बातें करनी हैं?'
अबकी बार राजेश ने दृष्टि उठा कर चीफ आफ स्टाफ को देखा।
-'चक्रवर्ती महाशय, बैठिए... खड़े क्यों हैं?' उठने का उपक्रम करते हुए उन्होंने कहा।
-'तुम बैठे रहो।' बैठते हुए चक्रवर्ती महाशय बोले- 'मैं केवल यह कहने आया था कि गृह विभाग द्वारा तुम्हें तुरन्त शिक्षा मन्त्रालय जाने की आज्ञा हुई है। यह काम किसी और को नहीं दिया जाएगा, तुम तुरन्त ही शिक्षा मन्त्रालय में जाकर वहाँ के मुख्य सैक्रेटरी मिस्टर जावेद से मिल लो।'
-'शिक्षा मन्त्रालय में मुझे बुलाया गया है...?' राजेश मुस्कराए-'खैर तो है मिस्टर चक्रवर्ती, क्या किसी स्कूल या कालेज में डकैती हो गई है अथवा कोई स्कूल का लड़का पढ़ाई छोड़ कर डाकू बन गया है...क्या बात है?'
चक्रवर्ती महाशय हँसे-'खूब रही, मजा रहेगा। यह सवाल तुम मिस्टर जावेद से ही जाकर पूछना।'
और केन्द्रीय खूफिया विभाग के आदर्शवादी जासूस राजेश जा पहुंचे मिस्टर जावेद के पास और वहां उन्हें पता चला कि अन्तिम मुगल सम्राट बहादुर शाह की छोटी बेग़म का खजाने का 1857 के विद्रोह में पण्डित दयाशंकर को सौंपा गया था और वह खजाना तीन पीढ़ियों तक सुरक्षित रहा और बेगम के आदेशानुसार पण्डित दयाशंकर के पौते वयोवृद्ध हरिशंकर वह करोड़ों का खजाना शिक्षा हेतु सरकार को सौंपना चाहते हैं। पण्डित हरिशंकर का छोटा सा परिवार है । उनकी एक पुत्री है शांता और जिसका रिश्ता एक कस्टम विभाग के अधिकारी के साथ हो चुका है और जल्द ही शादी होने वाली है। पण्डित हरिशंकर पुत्री की शादी और धरोहर के रूप में खजाने को सरकार को सौंप कर हर दायित्व से मुक्त होना चाहते हैं । लेकिन एक दिन वह गायब हो जाते हैं। खजाने ने नक्शे सहित ।
खुफिया सर्विस विभाग के वरिष्ठ जासूस राजेश और जयंत दोनों इस अभियान में जी जान से लगे हैं। कहानी जैसे जैसे आगे बढती है वैसे वैसे रोमांच के नये रंग भरती जाती हैं। यहां तक की राजेश- जयंत पर तो जानलेवा हमला तक हो जाता है। लेकिन दोनों जासूस कहां हार मानने वाले हैं। दोनों एक- एक कड़ी को जोड़ते चले जाते हैं।
कहानी चाहे दिल्ली से आरम्भ होती है लेकिन बाद मे यह मुम्बई की ओर घूम जाती है । मिस्टर राजेश भी तारा, नरेश और शांता के साथ जा पहुंचते हैं मुम्बई ।
राजेश को बम्बई आये आज तीसरा दिन था। सुबह ही वह तनिक वेश परिवर्तन करके होटल से निकल जाते और आधी रात हुए लौटते। फिर रिपोर्ट लिखते, और दोपहर तक सोने के आदी हमारे जासूस महाशय सुबह पाँच बजे उठ बैठते... घण्टों शीशे के सामने बैठे मेकअप करते और फिर नरेश को सावधान रहने का आदेश देकर घर से निकल जाते।
कहानी शीघ्र ही मुम्बई से लंदन की ओर घूम जाती है और अपने जासूस महोदय राजेश जा पहुंचते हैं लंदन । लंदन ही वह जगह है जहां से रहस्य का पटाक्षेप होता है और फिर सभी के सम्मुख वास्तविक अपराधी को प्रस्तुत किया जाता है।
उपन्यास में राजेश का मुम्बई प्रवास और वहां की प्रसिद्ध वेश्या रूपकिरण और उसकी बहन चन्द्रकिरण से मुलाकात काफी रोचक है। राजेश उनसे म्युज़िक टीचर के रूप में मिलता है ।
-'ओह... तो आप संगीत शिक्षक हैं!'
-'जी, यह हमारा खानदानी पेशा है। आपने लखनऊ के जनाब मकबूल हसन मरहूम का नाम तो सुना होगा। अपने जमाने के वह तानसेन समझे जाते थे। मैं उन्हीं का पोता हूँ। हिन्दुस्तानी रागों के अलावा मैं यूरोपियन संगीत भी सिखा सकता हूँ। चार साल इंगलैंड की म्युजिक एकेडमी में जाकर सर खपाया है। हिन्दुस्तान में मैं अकेला ही हूँ जिसे उस एकेडमी का डिप्लोमा पाने का फख्र हासिल है।'
लेखक महोदय ने कहानी में जो कल्पना के रंग भरे हैं वह प्रशंसनीय है। कैसे बेगम महल के खजाने के रहस्य को वर्तमान के साथ संबंध दर्शाया है । कैसे एक प्राचीन खजाने के लिए लोग एक दूसरे की जान लेने पर उतर आते हैं।
उपन्यास की कहानी अत्यंत रोचक है। उपन्यास का फैलाव और पात्र भी विस्तृत हैं। और सभी प्रभावित करते हैं। घटनाएं दिलचस्प हैं।
कहानी दिल्ली- मुम्बई और लंदन तक फैली हुयी है।
कहानी में नरेश नामक अनजान युवक की मदद करना राजेश का मानवीय पक्ष मजबूत करता है।

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