कत्ल की सौगात- राहुल
उसने बड़े शांतिपूर्वक वह छोटी-सी चीज उठाई और नौजवान धीरज की छाती पर दाग दी।
'यह है मेरा जवाब-कत्ल की सौगात ।'
धीरज चीख मारकर गिरा। दो-चार बार हाथ-पांव हिलाए और दम तोड़ दिया ।
नीरज ने आतंकित स्वर में कहा- 'यह तुमने क्या किया, बड़े भाई ।'
'सौगात उठाओ और यहां से चलते बनो।' एम. के. ने जवाब दिया-'फर्श मैं खुद साफ कर लूंगा। लाश को तुम ठिकाने लगा देना। जाओ, मेरा मुंह क्या देख रहे हो ? आज भी मैं तुम्हारा बॉस हूं-सीमा को तुमसे पाने के लिए मैंने तुम्हारी दुश्मन सिंडीकेट के कत्ल का तोहफा तुम्हें दिया था। वह तुम्हें बहुत पसंद आया था। यह तोहफा पसंद नहीं आया ?' -(कत्ल की सौगात (राहुल) उपन्यास में से)
इन दिनों राहुल का यह मेरे द्वारा पढे जाने वाला द्वितीय उपन्यास है। इस से पूर्व मैंने राहुल का एक थ्रिलर उपन्यास 'टाॅप सीक्रेट' पढा हो कथानक के स्तर पर मुझे बहुत रोचक लगा था।
प्रस्तुत उपन्यास का लेखन भी 'टाॅप सीक्रेट' उपन्यास जैसा ही है पर कहानी बिलकुल अलग है।
कहानी आरम्भ होती है एक युवती से।
चांदनी रात भी इतनी भयानक हो सकती है, सीमा ने सपने में भी नहीं सोचा था। भागते-भागते उसकी सांस फूल गई थी और शरीर का अंग-अंग बकावट से इस तरह टूटने लगा था कि उसे लगा वह अगले ही पल धमाके से बम की तरह फट जाएगी और उसका अंग-अंग पत्थरों की तरह नीचे घाटी में लुढ़कता हुआ अपना अस्तित्व खो देगा।