कत्ल की सौगात- राहुल
उसने बड़े शांतिपूर्वक वह छोटी-सी चीज उठाई और नौजवान धीरज की छाती पर दाग दी।
'यह है मेरा जवाब-कत्ल की सौगात ।'
धीरज चीख मारकर गिरा। दो-चार बार हाथ-पांव हिलाए और दम तोड़ दिया ।
नीरज ने आतंकित स्वर में कहा- 'यह तुमने क्या किया, बड़े भाई ।'
'सौगात उठाओ और यहां से चलते बनो।' एम. के. ने जवाब दिया-'फर्श मैं खुद साफ कर लूंगा। लाश को तुम ठिकाने लगा देना। जाओ, मेरा मुंह क्या देख रहे हो ? आज भी मैं तुम्हारा बॉस हूं-सीमा को तुमसे पाने के लिए मैंने तुम्हारी दुश्मन सिंडीकेट के कत्ल का तोहफा तुम्हें दिया था। वह तुम्हें बहुत पसंद आया था। यह तोहफा पसंद नहीं आया ?' -(कत्ल की सौगात (राहुल) उपन्यास में से)
इन दिनों राहुल का यह मेरे द्वारा पढे जाने वाला द्वितीय उपन्यास है। इस से पूर्व मैंने राहुल का एक थ्रिलर उपन्यास 'टाॅप सीक्रेट' पढा हो कथानक के स्तर पर मुझे बहुत रोचक लगा था।
प्रस्तुत उपन्यास का लेखन भी 'टाॅप सीक्रेट' उपन्यास जैसा ही है पर कहानी बिलकुल अलग है।
कहानी आरम्भ होती है एक युवती से।
चांदनी रात भी इतनी भयानक हो सकती है, सीमा ने सपने में भी नहीं सोचा था। भागते-भागते उसकी सांस फूल गई थी और शरीर का अंग-अंग बकावट से इस तरह टूटने लगा था कि उसे लगा वह अगले ही पल धमाके से बम की तरह फट जाएगी और उसका अंग-अंग पत्थरों की तरह नीचे घाटी में लुढ़कता हुआ अपना अस्तित्व खो देगा।
"हे भगवान... " सीमा पीड़ा और दुःख से पसीने में नहाई हुई आकाश पर चमकते चांद को देखकर चीख पड़ी- "अरे रक्षा करो। भगवान... मुझे इन राक्षसों से बचाओ...।'
तभी उसे ठोकर लगी और वह औंधे मुंह गिरी। अगर वह अनायास हाथ न टिका देती तो उसका चेहरा चट्टान से टकराकर कीमा बन जाता।
ठीक उसी पल एक गोली सनसनाती आई और उसके सिर के बालों को जलाती हुई निकल गयी । (उपन्यास अंश)
यह लड़की है सीमा जो अपने दुश्मनों से बचती हुयी एक पहाड़ी पर बने मकान में शरण लेती है। जहां एक वृद्ध व्यक्ति मनमोहन निवाहै।रता है। जो की बहुत ही सनकी किस्म का नजर आता है।
सीमा ने कंपकंपाती आवाज में मनमोहन को संबोधित करना चाहा-'बाबा..!'तो यह है वृद्ध मनमोहन और युवा सीमा की रोचक बातें। लेकिन थोड़ी नोकझोक के पश्चात मनमोहन अपने पास सीमा को ठहरने की इजाजत दे ही देता लेकिन वह शीघ्र ही उसे इस काॅटेज से बाहर निकलने पर रोक लगा देता है और फिर सीमा के सौन्दर्य की प्रशंसा, कभी उसका आशिक नजर आता है, कही कुछ तो कभी कुछ ।
'बाबा होगा तेरा बाप !!' मनमोहन ने सीमा के कुछ कहने से पहले ही भड़ककर उसकी बात काट दी-'मैं तुझे बाबा नजर आता हूं ? अभी तो मैं जवान हूं।'
'इस वीरान पहाड़ी पर तुम्हें देखकर मुझे जिन्दगी की उम्मीद हुई है।' सीमा ने याचना की।
तो...।'
'भगवान के लिए मुझे अंदर ले जाकर कहीं छुपा दो।'
'हां... हां, यह घर मैंने तेरे ही लिए बनवाया है कि तू अपने किसी आशिक को ठिकाने लगाकर यहां छुपने के लिए आ सके।'
'मैंने किसी को ठिकाने नहीं लगाया है...'
'तो क्या आंख-मिचौली खेलने आई है।'
'यह बात नहीं...' सीमा ने पीछे मुड़कर देखा। 'चलती-फिरती नजर आ । मेरा घर इसलिए नहीं है कि यहां आधी रात को धमा-चौकड़ी मचाई जाए।'
फिर कहानी आगे बढती है तो स्थानीय 'गुण्डा दल' सिंडिकेट से जा मिलती है। यही सिंडिकेट सीमा को खत्म करना चाहता है और सनकी वृद्ध मनमोहन सिंडिकेट से सीमा को बचाने के लिए संघर्ष करता नजर आता है। और संघर्ष भी क्या अपने अंदाज में वह सिंडिकेट को भी धमका देता है यहाँ तक की वह सिंडिकेट को 'कत्ल की सौगात' भी दे देता है।
लेकिन कह कहानी शीघ्र की मनमोहन के उन दिनों में (प्लेशबैक) पहुँच जाती है जब मनमोहन अपने समय का सुप्रसिद्ध वकील मदन कुमार होता था और अपनी पत्नी सुषमा के साथ अच्छी ख्यातिप्राप्त जिंदगी जीता था। लेकिन एक घटना ने उसकी जिंदगी ही बदल दी थी।
उपन्यास का अधिकांश भाग मदन कुमार की जीवनी पर ही बीतता है और वह मदन कुमार से 'एम. के. मित्तल' कैसे बनता है और फिर 'एक. के.' से मनमोहन कुमार ।
उपन्यास में कुछ रोचक प्रसंग हैं जो मदन कुमार के जीनियस होने के प्रमाण हैं। जैसे पैट्रोल पम्प पर हुयी चोरी का पर्दाफाश करना।
वहीं राजा सुरजीत सिंह का का प्रसंग उसके जीवन को ही बदल कर रख देता है।
एक प्रसंग है जो कथा का महत्वपूर्ण भाग है वह है उसके इंस्पेक्टर दोस्त जगदीश, मामा श्यामलाल और मेमेरे भाई कैप्टन गिरीश का प्रसंग। कैसे मदन कुमार अपने बुद्धिबल से कैप्टन गिरीश को एक झूठे कत्ल के केस से बचता है और वास्तविक अपराधी को सामने लाता है। चाहे मदन कुमार ने गिरीश को बचा लिया और अपराधी को सामने ला दिया पर यही केस उसके जीवन को बदल देता है। उसकी परिवार को उस से छीन लेता है।
तो यह कहानी है एक वकील और उसके जीवन में आने वाले तूफान की जिसने उसका जीवन ही बदल दिया।
उपन्यास में मनमोहन का चरित्र बहुत ही रोचक और सनकी दर्शया गया है। वह चाहे वृद्ध है लेकिन स्वयं को नौजवान समझता है आशिक मिजाज भी । वहीं जब उपन्यास के अंत में मनमोहन के कारनामे सुनने को मिलते हैं तो आश्चर्य भी होता है।
उपन्यास में सिंडिकेट का मुख्य है सेठ नीरज कुमार जो मनमोहन को 'बड़ा भाई' कहता है। लेकिन सेठ नीरज कौन है, वह सिंडिकेट का मुख्य कैसे बना कहीं कुछ स्पष्ट नहीं है।
उपन्यास में मनमोहन के कुछ खतरनाक काम सिर्फ सुनने नो मिलते हैं, अगर कुछ उनके विषय में लिखा जाता तो ज्यादा रोचक लगता।
सुषमा की मृत्यु का प्रसंग पाठक को भावुक करने वाला है। उपन्यास के अंत में मनमोहन का प्रसंग भी ऐसा ही है। लेखक चाहता तो अंतिम घटनाचक्र को बदल सकता था ।
पूरे उपन्यास में आप मुख्य खलपात्र (Villain) को ढूंढने की कोशिश कर सकते हैं। हालांकि मध्य भाग के पश्चात यह स्पष्ट होने लग जाता है, लेकिन कारण सामने नहीं था । वहीं मनमोहन अंतिम समय तक मुख्य विलेन की इज्जत करता नजर आता है।
'कत्ल की सौगात' एक सामान्य घटनाक्रम वाला उपन्यास है। एक बार पढा जा सकता है, उसमें कुछ भी विशिष्ट नहीं है। अंत थोड़ा भावुक कर सकता है।।
उपन्यास- कत्ल की सौगात
लेखक- राहुल
प्रकाशक- डायमण्ड पॉकेट बुक्स, दिल्ली
पृष्ठ- 234
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