Friday 1 May 2020

305. दस जून की रात- संतोष पाठक

विशाल सक्सेना उर्फ पनौती का पहला कारनामा
दस जून की रात- संतोष पाठक, मर्डर मिस्ट्री


एक ऐसी रात जो किसी जलजले से कम नहीं थी। जिसने कई लोगों को खून के आंसू रोने पर मजबूर कर दिया। कुछ को मौत की नींद सुला दिया, तो कईयों को काल कोठरी के पीछे पहुंचा दिया! और इतने भयंकर बवाल की मुख्तसर सी वजह ये बनी कि पुलिस ने एक डेड बाॅडी की शिनाख्त के लिए विशाल सक्सेना उर्फ ‘पनौती‘ को काॅल कर लिया था
    
ये कहानी है दस जून की रात की। विशाल सक्सेना उर्फ पनौती को पुलिस की काॅल आयी की उसे एक लाश की पहचा‌न करनी है और कुछ ना नुकर के पश्चात उसे उस लाश के पास पहुंचना ही पड़ा आखिर पुलिस के आगे किसकी चलती है। लेकिन विशाल सक्सेना ने उस लड़की की को पहचाने से पूर्णतः मना कर दिया। 

वो एसआई सतपाल के पास वापिस लौटा।
“पहचाना!”
“नहीं, मैंने ताजिंदगी इसकी सूरत नहीं देखी।”

यह सच भी था। विशाल उस लड़की से पूर्णतः अपरिचित था।
लेकिन ईमानदार सब इंस्पेक्टर सतपाल को यह अच्छा न लगा की एक लड़की मारी गयी और उसके कातिल का पता न लगे। - वो फितरतन एक ईमानदार पुलिस वाला था जो ये बात बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था कि कत्ल की वारदात पर लीपापोती करके उसे हिट ऐंड रन का केस बना दिया जाए

     यह भी एक संयोग था की विशाल सक्सेना न चाहते हुए भी इस केस से इन्वाॅल्व हो गया। और जब दोनों इस केस की तहकीकात करने निकले तो गयी सफेद चेहरे दागदार निकले।
       10 जून 2018, एक लड़की खामखाह मारी गई, गलती बच्चों से ज्यादा उन अभिभावकों की होती है जो बच्चों को लाड़-प्यार देने के चक्कर में ये भूल जाते हैं कि उसका बुरा खामियाजा खुद उनके बच्चों को भी भुगतना प़ड़ सकता है। सब ताकत का खेल है, जिसके हाथ लाठी होती है वो उसका इस्तेमाल करने से बाज नहीं आता। 

पुलिस, नेता, अपराधी और आमजन की भूमिका पर लिखा गया यह उपन्यास एक निर्मम सत्य का उद्घाटन करता है।

वे कौन लोग थे और उस लड़की का कत्ल क्यों किया। विशाल सक्सेना का आखिर उस लड़की से क्या संबंध निकला आदि जिज्ञासु प्रश्नों का उत्तर उपन्यास पढने पर ही मिलेगा।
      विशाल सक्सेना एक अमलस्त किरदार है। अपनी मस्ती में रहने वाला, बेपरवाह लेकिन तब तक जब तक सब सही चल रहा होता है अगर किसी ने उसे गाली, कानून विरुद्ध काम किया तो पता नहीं कब वह क्या कर जाये। शायद उसे भी पता नहीं होगा। 
       एक यादगार पात्र है।  विशाल सक्सेना 
 लोग चाहे उसे पनौती कहें मैं तो उसे अलमस्त कहूंगा बस यह फक्कड़ या मलंग किस्म से थोड़ा सा अलग है। 
और वह खुद के विषय में क्या कहता है यह भी पढ लीजिएगा- “विशाल सक्सेना!” - वो चहकता हुआ बोला - “मेरे दोस्त, मेरे अजीज प्यार से मुझे पनौती कह कर पुकारते हैं। पनौती का मतलब तो समझते ही होंगे आप! ऐसा शख्स जिसके कदम पड़ते ही बने बनाये काम बिगड़ने लगते हैं। सामने वाले पर मुसीबतों के पहाड़ टूटने लगते हैं।
      हां, एक बात से उसे बहुत गुस्सा आता है और वह है गाली। गाली उस से सहन नहीं होती और फिर गाली देने वाले का जो हश्र होता है, वह तो खैर आप उपन्यास पढकर ही आनंद उठा सकते हैं।
- “गाली नहीं देना, किसी को भी मत देना, कभी मत देना।”
- “मैंने तेरा क्या बिगाड़ा था?”
“गाली दी थी, ये उसकी सजा है"

        यह उपन्यास मात्र एक काल्पनिक कथा भर नहीं है। एक पुलिस और राजनीति की उस विद्रूपता का चेहरा प्रस्तुत करता है जो इतना भयानक है कि आम जन बिना किसी गलती के भी अपनी गलती स्वीकार कर ले। 
जहाँ पुलिस आमजन की रक्षा के लिए है और नेता जनता की सेवा के लिए लेकिन जब यही दोनों भ्रष्ट हो जाते तो जनता/ देश का क्या होगा।
      “वर्दी पहनते ही तुम्हारी तरह ज्यादातर पुलिसवाले खुद को छुट्टा सांड समझने लगते हैं, उन्हें लगता है कि सरकार ने उन्हें निचले तबके के लोगों - जैसे कि रेहड़ी वाले, पटरी वाले, रिक्शा वाले, दिहाड़ी वाले - को सींग मारने का, उन्हें बेवजह हलकान करने का लाइसेंस दे दिया है। निचला तबका इसलिए क्योंकि उससे ऊपर के लोगों से बात करने में भी तुम लोगों को पसीने छूट जाते हैं।"

कहने को यह एक कहानी भर है लेकिन यह उपन्यास एक कड़वा सत्य है। गरल का वह कड़वा घूंट जिसकी कल्पना मात्र से सिहरन होती है।
      काल्पनिक उपन्यास का काल्पनिक नायक चाहे इस संघर्ष से जीत जाता है लेकिन उसके साथ जो बीतती है वह सब कल्पना में भी डरावनी है।
       लेकिन वह यह सुकून है कि इस में एस. आई. सतपाल सिंह और कमिश्नर जैसे कुछ ईमानदार आदमी भी उपस्थित है।
उपन्यास में कुछ स्मरणीय संवाद हैं लेकिन एक पंक्ति जो मुझे विशेष लगी यहाँ प्रस्तुत है।
- अपराधी किसी का रिश्तेदार नहीं होता।

       कहानी में छोटे-छोटे छेद नजर आते हैं और कुछ घटनाएं भी संयोग के ज्यादा नजदीक हैं और कुछ संयोग से थोड़ा सा आगे हैं और कुछ प्रश्नों के उत्तर भी गायब हैं। लेकिन आप उपन्यास को कथा नायक विशाल सक्सेना उर्फ पनौती तथा एक तेज रफ्तार थ्रिलर की दृष्टि से पढे तो यह उपन्यास आपके यादगार उपन्यासों में शामिल होगा।
मैं धन्यवाद देता हूँ लेखक को एक यादगार उपन्यास के लिए और धन्यवाद हरियाणा निवासी मित्र राममेहर को जिन्होंने 
'CATCH ME IF YOU CAN: PANAUTI IS ON THE WAY' (vishal saxena Book 2) उपन्यास से पहले 'दस जून की रात' उपन्यास पढने का सुझाव दिया।

'दस जून की रात' एक तेज रफ्तार थ्रिलर है। उफनती नदी सा कथानक और अलमस्त कथानायक दोनों मिलकर पाठक को समय चक्कर से दूर मनोरंजन की उस अदभुत दुनिया में‌ ले जाते हैं।

उपन्यास- दस जून की रात
लेखक-    संतोष पाठक
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ. -       266
प्रकाशन तिथि- 15 Feb 2019

No comments:

Post a Comment

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...