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Wednesday, 26 September 2018

139. वंदे मातरम् - वेदप्रकाश शर्मा

नेताजी सुभाषचंद्र बोस की रहस्यमय मृत्यु आधारित

          वेदप्रकाश शर्मा का उपन्यास 'जय हिन्द' का द्वितीय भाग है 'वंदे मातरम'। मुझे लगे समय से इस उपन्यास की तलाश थी बहुत कोशिश के पश्चात संगरिया निवासी रतन लाल कूकणा जी ( हनुमानगढ, राजस्थान) से यह उपन्यास मिला।
                 मुझे वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास काफी रोचक लगते हैं। अगर आप उनके उपन्यासों को फिल्म की तरह पूर्णतः काल्पनिक रूप से लीजिएगा फिर देखिएगा की उनके उपन्यास कितने जबरदस्त होते हैं‌, इसलिए तो वेदप्रकाश शर्मा हिन्दी जासूसी साहित्य में सर्वाधिक चर्चित लेखक रहे हैं।
वेद जी के उपन्यास सामाजिक थ्रिलर होते थे,‌ उनकी कहानी बहुत अलग प्रकार की होती थी। वे उपन्यासों में प्रयोग ही इतने अच्छे करते थे की पाठक उनसे बंधा रह जाता था। जैसा की उन्होंने 'जय हिन्द' उपन्यास में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को प्रस्तुत किया। ऐसा ही प्रयोग उनके उपन्यास 'इंकलाब-जिंदाबाद' में है, कहां झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के पुत्र दामोदर को पेश किया है।
                 अब बात करते हैं उपन्यास 'वंदेमातरम' की। यह उपन्यास 'जय हिन्द' उपन्यास का द्वितीय और अंतिम भाग है। जय हिन्द उपन्यास वहाँ खत्म होता है जब सीक्रेट सर्विस के चीफ के समक्ष स्वयं नेताजी सुभाषचन्द्र प्रस्तुत होते हैं।

नेताजी जी का व्यक्तित्व हमेशा रहस्यमय रहा है।‌ विशेषकर उनके जीवन और मृत्यु को लेकर इतिहास असमंजस में हैं। इसी असमंजस को लेकर वेदप्रकाश जी ने एक काल्पनिक ऐतिहासिक उपन्यास रच दिया।

                उपन्यास का कथानक नेताजी जी के नये संगठन 'अखण्ड हिन्द फौज' की विध्वंसक गतिविधियों से आरम्भ होता है। अखण्ड हिन्द फौज और नेताजी से प्रेरित होकर असंख्य युवक इस फौज में शामिल हो जाते हैं। यहाँ तक की कुछ पुलिसवाले भी इस संगठन के सदस्य हैं।
वहीं दूसरी तरफ भारतीय सिक्रेट सर्विस के प्रमुख नेताजी के अस्तित्व को नकारते हैं। जहाँ जासूस विजय नेताजी को नकली मानता है वहीं जासूस विकास उनसे प्रभावित होता है।

- अखण्ड हिन्द फौज के सभी जवानों के दिमाग में यह बात ठूंसो कि ....स्टेडियम में जो सुभाष आ रहा है वह नकली है। (पृष्ठ-159)

- स्टेडियम में उस कथित नेताजी के पहुंचते ही उसे कत्ल कर दो।

- इस देश के महान सेनानी सुभाष के प्रगट होने को विदेशी एजेन्टों का षड्यंत्र बतायेंगे या उन्हें गोली मारेंगे।

- क्या नेताजी जिंदा हैं?
- तो क्या वास्तव में नेताजी जी नकली थे?
- क्या यह विदेशी लोगों का षड्यंत्र था?
- कौन लोग थे जो नेताजी का कत्ल करना चाहते थे?

इन सभी उलझे प्रश्नों के उत्तर तो 'वंदेमातरम' उपन्यास पढकर ही मिलेगा।

                'वंदेमातरम' उपन्यास एक काल्पनिक पर रोचक कथानक है। जिसमें नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को प्रस्तुत किया गया है। यहाँ एक तरफ यह विदेशी षड्यंत्र लगता है वहीं नेताजी के जीवित होने का अहसास भी होता है। लेखक ने बहुत कुशलता से एक अच्छे कथानक को रचा है जिसमें दिग्गज जासूस विजय-विकास भी उलझ कर रहे जाते हैं।
               उपन्यास में अंतर्राष्ट्रीय मुजरिम अलफांसे का किरदार भी अच्छा है। हालांकि अलफांसे को किरदार उपन्यासकारों में कम दिखाई देता है लेकिन वह अपनी जबरदस्त उपस्थित दर्शाता है।
'अलफांसे की चाल इसी को कहते हैं मिस्टर चीफ, आदमी सबकुछ समझते हुए भी उसमें फंसने के लिए मजबूर होता है। (पृष्ठ-113

                प्रस्तुत उपन्यास एक एक अलग प्रकार का अहसास करवाने वाला अच्छा व रोचक उपन्यास है। जो अपने अंदर कई रहस्य समेटे हुए है। पाठक पल-पल इस द्वंद्व से गुजरता है की क्या नेताजी सुभाषचंद्र बोस जीवित है या नहीं।


निष्कर्ष-
             'जय हिन्द' उपन्यास का द्वितीय भाग 'वंदेमातरम' नेताजी सुभाषचंद्र बोस के एक रहस्य मृत्यु को आधार बना कर रचा गया एक रोचक उपन्यास है। भारतीय जन मानस में नेताजी की मृत्यु को लेकर एक गहरा विरोधाभास है। यही विरोधाभास इस उपन्यास में एक सुखद अहसास करवाता है।
उपन्यास आदि से अंत तक रोचक और पठनीय है।


उपन्यास- वंदेमातरम
लेखक- वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- तुलसी पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 223

उपन्यास 'जय हिन्द' की समीक्षा जय हिन्द

2 comments:

  1. Well written, chander ke kayi novels bahut ache the, US samay ke hisaab se behad ache, thanks for this review
    Regards,
    Tarvinder Singh

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