Saturday 12 May 2018

111. सौ करोङ डाॅलर के हीरे- विश्व मोहन विराग

सौ करोङ डाॅलर के हीरों के लिए हुयी जंग
सौ करोङ डाॅलर के हीरे- विश्व मोहन विराग, थ्रिलर उपन्यास, औसत।
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            अमेरिका के एक व्यापारी त्रिलोचन सिंह की भारत के राजा के साथ सौ करोङ डॉलर के हीरों‌ की एक डील थी। उस डील का भारत से अमेरिका लाने की जिम्मेदारी अमेरिका के एक प्राइवेट जासूस विलियम डफी पर थी।
           लेकिन उन हीरों पर नजर भारत और अमेरिका के माफिया की भी थी। सौ करोङ डॉलर के हीरों को लेकर एक ऐसा तूफान उठा जिसमे कई माफिया अपनी जान से हाथ धो बैठे।
           एक तरफ का अमेरिका का बिग बाॅस लाकोसा दि नोस्ट्रा और भारत में‌ थे महादेव और उसके साथ कैलाश कावस काकङे (ट्रिपल K) और उनका विरोधी  बाबू खान। क्या इनसे बचकर विलियम डफी हीरों को अमेरिका ले जा सका।
          उपन्यास की शुरुआत बहुत जबरदस्त तरीके से होती है। अमेरिका की धरती से और वहाँ के खतरनाक अपराधियों से लेकिन कुछ समय पश्चात ही कहानी अपनी लय से उतर जाती है। भारत में आने के पश्चात कहानी बहुत ही धीमी हो जाती है और अपने मुख्य कथानक से इतर भटकती‌ महसूस होती है।
            जासूस विलियम डफी को बहुत मजबूत बताया गया है लेकिन पूरे उपन्यास में वह कहीं‌ भी अपनी मजबूत छाप छोङता नजर नहीं आता। लेखक महोदय ने आरम्भ में विलियम की प्रशंसा की खूब की है लेकिन बाद में उसे कहीं भी स्थापित न कर पाये।
                    मार्था जो की विलियम की सहयोगी होती है, वह बहुत सी परिस्थितियों में‌ फंसती है, जिसका हल्का सा आभास विलियम डफी को अवश्य होता है लेकिन‌ सत्य का उसे पता नहीं चलता और इसी वजह से वह मात पर मात खाता है।
                  लेखक ने उपन्यास की जतनी अच्छी शुरुआत की थी उतना अच्छा कथानक आगे प्रस्तुत न कर सके।
  उपन्यास की कहानी अमेरिका, भारत से होते हुए नेपाल तक फैली हुयी है। उपन्यास का अंत जो नेपाल में दर्शाया गया है वह कुछ हद तक उपन्यास को संभाल‌ लेता है लेकिन मार्था का अंत पाठक को निराश कर सकता है।
   शुरु से अंत तक परेशानियां सहन करती मार्था अंत में इन परेशानियां से मुक्त हो जाती है।‌     जिस प्रकार का विलियम डफी का चित्रण आरम्भ में दर्शाया गया था उसके अनुसार लगता नहीं था की मार्था का अंत इतना भयानक होगा।
      निष्कर्ष-
   उपन्यास की कहानी है भारत से अमेरिका को हीरों‌ की डिलीवर की जिसमें क ई खलनायक इन हीरों‌ को लूटना चाहते हैं। इनकी रक्षा का दायित्व अमेरिकी जासूस विलियम डफी पर होता है।
       विलियम डफी अपने उद्देश्य में‌ कैसे कामयाब होता है बस यही पठनीय है।
  लेखक कुछ मेहनत से उपन्यास को‌ कसावट दे सकता था‌ लेकि‌न ऐसा कर न पाया।
         उपन्यास एक बार पढा जा सकता है लेकिन स्मरणीय नहीं होगा।

        विश्व मोहन विराग जी का एक और उपन्यास 'मरघट' मेरे पास उपस्थित है। समय मिलने पर उसे भी पढकर देखा जायेगा की लेखन ने कैसा लिखा है।
  
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उपन्यास- सौ करोङ डॉलर के हीरे
लेखक- विश्व मोहन विराग
प्रकाशक- रजत पॉकेट बुक्स- मेरठ
पृष्ठ-223
मूल्य-20₹

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