Monday 23 April 2018

108. डाकघर- रवीन्द्रनाथ टैगोर

एक बच्चे की करणामयी कथा।
डाकघर- रवीन्द्रनाथ टैगोर, लघु नटक, संवेदनशील रचना, पठनीय।
रवीन्द्रनाथ टैगोर को पढने का अर्थ है भावना के समुद्र में बह जाना, मानवीय संवेदना को छू जाना।  
प्रकाशक लिखता है- रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियाँ एवं नाटक विशेष रूप से कला, शिल्प, शब्द- सौन्दर्य, सभी दृष्टियों से अनुपम एवं महत्वपूर्ण हैं। रवीन्द्रनाथ टैगोर की कहानियाँ एवं‌ नाटक वास्तव में जिसने नहीं पढे उसने कुछ नहीं पढा। 
            रवीन्द्रनाथ टैगौर द्वारा रचित 'डाकघर' एक लघु नाटक है। डाकघर एक नन्हें बच्चे की कहानी है। एक‌ नन्हा बच्चा 'अमल' जो किसी रोग से ग्रस्त है। वैद्य जी ने उसे कमरे से भी बाहर निकले को मना किया है। उसकी रक्षा का एकमात्र उपाय है उसे किसी तरह शरत्ऋतु की धूप और हवा से बचाकर घर में बंद रखना। (पृष्ठ-10)
          अमल घर में, कमरे में कैद है। खिड़की से वह आते-जाते लोगों को देखता है, उनसे बातें करता है।‌ कितनी विवशता है। बच्चा सबको देखता है, उसका मन भी खेलने को होता है, घूमने को होता है लेकिन वह मजबूर है। बस अपना दर्द समेटे बैठा है। कमरा ही उसकी दुनियां है। लेकिन कमरे से बाहर एक और दुनियां है अमल उसी दुनियां को जीना चाहता है।    
           बच्चों का मन बहुत कल्पनाशील होता है। अमल भी बाहर की दुनियां की बाते सुन- सुन कर अपनी एक काल्पनिक दुनियां बना लेता है।
          एक ऐसे दुनियां जिसमें शास्त्र पढे पण्डित नहीं होंगे, उसमें तो दही बेचने वाला होगा, घूमने वाले होंगे, डाकिया होगा, भिखारी होगा, पहाड़ पर जाने वाले होंगे। अमल कभी डाकिया बनना चाहता है, कभी दहीवाला, कभी भिखारी तो कभी कुछ-कभी कुछ।
            नाटक में रोचक प्रसंग और मोड़ तब आता है जब अमल के घर के सामने  राजा का डाकघर खुलता है। अमल स्वयं को उसी डाकघर से जोड़ लेता है। उसकी काल्पनिक दुनियां में डाकघर एक नया पात्र है। अमल को लगता है एक दिन उसको राजा का पत्र आयेगा और डाकिया उसे देकर जायेगा। मेरे नाम‌ की चिट्ठी आयेगी तो वे मुझे पहचान कर दे जायेँगे।(पृष्ठ-29)
            गांव में एक तथाकथित चौधरी है जो एक बीमार बच्चे के दर्द को न महसूस कर राजा को बच्चे की शिकायत कर देता है।
- क्या अमल का रोग सही हुआ?
-  क्या अमल को राजा की चिट्ठी आयी?
-  गाँव के चौधरी ने क्या किया?
नाटक का आरम्भ बहुत रोचक ढंग से होता है। माधवदत्त जी अमल के अभिभावक हैं और एक है वैद्य जी। दोनों के संवाद बहुत रोचक हैं।
माधवदत्त- बड़ी मुसीबत में पड़ गया। जब वह नहीं था, तब नहीं ही था, किसी बात की चिंता ही न थी। अब न जाने कहाँ से आकर उसने मेरा घर घेर लिया है; उसके चले जाने से मेरा घर फिर घर ही नहीं रह जाएगा। वैद्यजी, आप क्या समझते हैं उसे? (पृष्ठ-07)
      वैद्य जी प्रत्येक बात पर शास्त्रों की चर्चा करते हैं जो माधव की समझ से बाहर है।
शास्त्रों में लिखा है, 
- 'पैत्तिकान् सन्निपातजान कफवातसमुद्भवात'। (पृष्ठ-07)
- 'अपस्मारे ज्वरे काशे कामलाया हलीमके'(पृष्ठ-08)
- 'पवने तपने चैव'(पृष्ठ-08)
एक और मार्मिक संवाद देखें।
तुम्हें क्या हुआ है बाबू?
मुझे नहीं मालूम। मैं पढा लिखा नहीं हूँ न।(पृष्ठ-15)
         नाटक के सभी पात्र, चाहे उनका किरदार कम ही क्यों न हो, पर सभी प्रभावी हैं। 
         नाटक शुरू से अंत तक बहुत ही रोचक है और इसका समापन सहृदय की आँखों में आँसू ले आयेगा।
निष्कर्ष:-
          सहृदय पाठक के लिए यह लघु नाटक मन के अंदर तक उतरने की क्षमता रखता है।‌ नाटक का कलेरव चाहे छोटा हो लेकिन उसकी संवेदना बहुत गहरी है। 
               यह लघु नाटक कम पृष्ठों में बहुत कुछ कह जाता है। पठनीय रचना है, अवश्य पढें।
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किताब- डाकघर (लघु नाटक)
लेखक- रवीन्द्रनाथ टैगोर
प्रकाशक- रमन बुक सेंटर, मथुरा(UP)
पृष्ठ- 50
मूल्य- 75₹

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