Thursday 5 April 2018

105. तीन इक्के- गुलशन नंदा

सुनहरे सपनों से दर्द तक तक सामाजिक कथा।
तीन इक्के- गुलशन नंदा, सामाजिक उपन्यास, रोचक, पठनीय।
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     साधना अभी काॅलेज से अपनी शिक्षा समाप्त करके निकली है। अन्य लङकियों की तरह उसके मन में भी नये सपने, नयी उमंग है। समाज को कुछ नया कर दिखाने की। अपनी प्रतिभा के दम पर एक नयी इबारत निकले की।
               लेकिन अभी साधना के सपनों ने उडान भी नहीं भरी थी की उसका सामना पडोसी आंटी ‌के घर दिल्ली से आये प्रकाश से हो जाता है। शायद मैं एक भेंट में प्रकाश पर छा जाना चाहती थी। ब्याह का संबंध हो या हो, मैं उसके मस्तिष्क पट पर एक ऐसा चित्र अंकित करना चाहती थी जो उसे सदा मेरी याद दिलाता रहे। (पृष्ठ-31)
मुलाकात से प्यार और प्यार से यह रिश्ता शादी तक पहुंच जाता है।
      
     दोनों परिवार आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से संपन्न हैं। साधना को एक नयी प्यार की दुनिया मिलती है। लेकिन यह स्वप्न कुछ समय पश्चात ही खण्डित हो जाते हैं जब उसके समक्ष प्रकाश का एक नया रूप आता है।
       साधना के दिव्यस्वप्न टूट जाते हैं। लेकिन साधना जैसी शिक्षित लङकी हार नहीं मानती वह परिस्थितियों को अपने पक्ष में करने की हर संभव कोशिश करती है।
  
         उपन्यास में मूलतः इस बात पर ध्यान केन्द्रित है की कैसे एक लङकी अपने संसार को बचाने की कोशिश करती है।
   
  उपन्यास समाज के कई पक्षों का सहज ही चित्रण कर डालता है। पाठक जैसे जैसे कहानी में आगे बढता है उसे समाज/ व्यक्ति के कई रूप नजर आते हैं।  यह हमारे समाज की वास्तविकता को भी रेखांकित नरता है।
- साधना  और उसकी सहेलियों का शिक्षा पश्चात अपने पैरों पर खङा होने की चर्चा लेकिन साधना के माध्यम से यह भी दर्शाया गया है कई बार शिक्षण के पश्चात सपने पूर्ण नहीं होते।
- लङकी की जल्द शादी की कोशिश करना।
- प्रकाश जैसे व्यक्ति जो किसी भी लङकी को बहला सकते हैं।
- साधना की आंटी जैसे औरत जो साधना को भी सत्यता नहीं बताती।
- मिस्टर कपूर जैसे दोहरे चरित्र के आदमी ।
लेकिन समाज में बुराई है तो अच्छाई भी है। इसका चित्रण कई व्यक्तियों के द्वारा किया गया है।
साधना- जो प्रत्येक परिस्थिति का सामान मजबूती से करती है।
जाॅनी ड्राइवर- सरल हृदय के व्यक्ति ।
प्रकाश के पिता- जो अपनी बहू को बेटी के समान मानते हैं।
      उपन्यास में समाज की कई  बुराईयों का भी चित्रण है।     आजकल सोशल पार्टी के नाम पर लोग असामाजिक कार्य करते हैं। इनका विरोध साधना के माध्यम से दर्शाया गया है।
"तुम इतना पढ-लिखकर भी इन सोशल पार्टियों को बुरा कहती हो।"
"वह पार्टी या सभा, जहाँ मानव अपना चरित्र खो दे, सोशल(Social) नहीं कहलाती।" (पृष्ठ-43)
 
उन लोगों का भी चित्रण उपन्यास में है जो पहले जो लाङ- प्यार में अपनी संतान का व्यवहार खराब कर लेते हैं और फिर पश्चात करते हैं।
मुझे आज भली प्रकार उनकी विवशता का ध्यान हया। लाङ और प्यार से वह अपने बेटे को बिगाङ तो चुके थे ही, अब उसे सुधारने के लिए वह उसे कोई कठोर शब्द भी न कह सकते थे। (पृष्ठ-64)
संवाद और भाषा शैली -
                                 उपन्यास एक सामान्य कथा है इसमें कोई विशेष प्रभावी संवाद का प्रयोग नहीं है। और न ही ऐसी कोई कथा की मांग दृष्टिगत होती है। फिर भी यह एक अच्छा उपन्यास है और इसकी भाषा शैली सहज और सरल है।
फिर भी दो उदाहरण उपन्यास के संपूर्ण वातावरण को चित्रित करने में सक्षम है।
"कभी-कभी अनजान राही ठोकर लगने पर  अपने मार्ग से विचलित हो जाते हैं।" (पृष्ठ-66)
"हर वह स्थान जहाँ आप मेरे संग हैं, मेरे लिए हनीमून का स्थान है, हर वह मार्ग धरती का टुकङा जहाँ क्षण भर भी आप रुककर बात करते हैं, मेरी ओर देखकर मुस्कुराते हैं, मेरे लिए पवित्र स्थान बन जाता है...और आपका हर श्वास जिसमें मेरी याद रची है, मेरे लिए मधुर गीत है....यही मेरा ऐश्वर्य है।"-(पृष्ठ- 68)
उपन्यास शीर्षक-     
                       उपन्यास का शीर्षक तीन इक्के क्यों है। यह मुझे समझ में नहीं आया। साधना और प्रकाश के अतिरिक्त अन्य कोई भी प्रभावी पात्र नहीं है। जिसके आधार पर उपन्यास का नाम ती‌न इक्के रखा जाये।
     हालांकि उपन्यास में दो जगह ताश के खेल में तीन इक्के अवश्य आते हैं। जहाँ हार जीत में समर्पण अवश्य होता है।
शायद यही आधार उपन्यास के नामकरण में होगा।
निष्कर्ष-
    ‌‌‌       गुलशन नंदा का उपन्यास तीन इक्के एक पारिवारिक रचना है जो पाठक को सहज ही आकृष्ट करती है। भारतीय समाज में जो सामान्य परिस्थितियाँ होती है उन्हीं पर यह उपन्यास आधारित है।
      उपन्यास पाठक को आरम्भ से अंत तक अपने में बांधे रखता है। रचना छोटी सी है, प्रवाह तीव्र है इसलिए पाठक कहीं भी मानसिक थकान महसूस नहीं करता।
      उपन्यास पठनीय और रोचक है। सामाजिक उपन्यासों के पाठकों के अलावा अन्य पाठकों को भी उपन्यास पसंद आयेगा।
धन्यवाद।
- गुरप्रीत सिंह
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उपन्यास- तीन इक्के
लेखक- गुलशन नंदा
प्रकाशक- अशोक पॉकेट बुक्स- दिल्ली
वर्ष- 
पृष्ठ-
मूल्य

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