Friday 25 February 2022

507. बाली - देवेन्द्र पाण्डेय

आखिर भारत पर इतने आक्रमण क्यों होते रहे हैं?
बाली- देवेन्द्र पाण्डेय

      एक भीषण आतंकवादी हमले के पश्चात कुछ निष्क्रिय संगठन पुनः सुप्तावस्था से बाहर गये और आरम्भ हो गयी भीषण नरसंहारों की एक अघोषित श्रृंखला, जिसने देश के साथ-साथ संपूर्ण विश्व को हिला कर रख दिया। इस श्रृंखला से एक रहस्यमयी योद्धा ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी जिसकी जड़े प्राचीन भारत की गाथाओं से जुड़ी हुयी थी, वह जिस उद्देश्य के लिए प्रतिबद्ध था उसने समूचे विश्व की धारणाओं एवं इतिहास के साथ-साथ वर्तमान और भविष्य तक को बदल कर रख दिया।
सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग तक छिपा हुआ एक रहस्य, एक ऐसी शक्ति, जो संपूर्ण विश्व के साथ-साथ एक समूचे युग को परिवर्तित करने की क्षमता रखती थी। जातियों-प्रजातियों के मध्य अस्तित्व की महीन सीमा रेखा के मिथकों को जिसने बिखेर कर रक दिया।
(उपन्यास के अंतिम आवरण पृष्ठ से)
         देवेन्द्र पाण्डेय वर्तमान युवा लेखकों में से एक प्रतिभावान लेखक हैं। 'इश्क बकलोल' के पश्चात जून 2019 में प्रकाशित 'बाली' उनकी द्वितीय रचना है। जो सत्य और कल्पना के रंग से रंगी गयी एक अद्भुत रचना है।
  भारतीय इतिहास और पौराणिक कथाओं को आधार बना कर लिखी गयी यह रचना स्वयं में बहुत कुछ समेटे हुये है।
   उपन्यास का मुख्य आधार है- आखिर भारतवर्ष पर इतने आक्रमण क्यों होते रहे हैं?
     लेखन ने इस विषय पर एक नया विचार प्रस्तुत किया है। कहते हैं अंतिम सत्य कुछ भी नहीं होता। जो आज सत्य है वह कल असत्य भी हो सकता है और आज का असत्य कल सत्य हो सकता है। 'बाली' उपन्यास में जो धारणा प्रस्तुत की गयी है, जो सकता यह बात भविष्य में सत्य हो साबित जाये की आखिर भारत पर इतने आक्रमण क्यों होते रहे हैं।
उपन्यास का कथानक वर्तमान और प्राचीन दो कथाओं को साथ लेकर चलता है। वर्तमान कथा का प्रतिनिधित्व 'बाली' करता है और प्राचीन का 'सुबाहु'।
   वर्तमान कहानी दिल्ली से आरम्भ होती है। जिसका शीघ्र सम्बन्ध वाराणसी (सन् 1993) से स्थापित हो जाता है। जहां देवदत्त है, उनका पुत्र अर्थव है, उनका मित्र मटुक और मटुक की पुत्री दीक्षा है।
    देवदत्त और मटुक प्राचीन भारत के सांस्कृतिक और शौर्य का प्रतिनिधित्व करने वाले पात्र हैं। इनके पास एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और वह जिम्मेदारी है 'प्राचीन काल से भारत पर हो रहे आक्रमण' के कारणों से संबंधित है।
      वहीं प्राचीन काल त्रेतायुग में सुबाहु नामक एक योद्धा का वर्णन है जो किन्हीं विशेष परिस्थितियों के चलते एक योद्धा बनता है।
सनातन काल से ही मनुष्य और राक्षस, सुर और असुर, सत्य और असत्य, अच्छाई और बुराई के मध्य संघर्ष चला आ रहा है। सुबाहु सत्य का पक्षधर है वह इस पृथ्वी से बुराई को खत्म करने का संकल्प लेता है। उसी के चलते वह एक संस्था का निर्माण भी करता है।
  समय बदला तो परिस्थितियाँ भी बदल गयी। आज भी मनुष्य रूप में असंख्य राक्षस इस धरा पर उपस्थित हैं। वह किसी भी रूप में हो सकते हैं, वहीं किसी भी रूप में मनुष्य का अहित कर सकते हैं।
"... वे हर क्षेत्र में है। वे इतिहास भी है, और साहित्यकार भी।" (पृष्ठ-207)
  वहीं राक्षस वर्ग का प्रतिनिधित्वकर्ता का कहना है- "अब समय आ गया है जब इस दुनिया को पता चलेगा यहाँ दूसरी भी जातियाँ है जो श्रेष्ठ और शक्तिशाली हैं, जो केवल राज करने के लिए ही जन्मे हैं। युगों से होते आते अत्याचार और अपमान का प्रतिशोध लेने का समय आ गया है। अब युद्ध नहीं होते, लेकिन अब वह समय निकट है जब महायुद्ध होगा और यह महायुद्ध ही इस सम्पूर्ण पृथ्वी का भविष्य निश्चित करेगा और इस भविष्य का नेतृत्व हम करेंगे। हम यानि दानव,राक्षस और दैत्य प्रजातियां। जिन्हें लुप्तप्राय, मिथक या किंवदंतियों का हिस्सा मानकर भूला दिया गया। (पृष्ठ-258)
       यह संघर्ष आज का नहीं युगों-युगों से चला रहा है। इसी संघर्ष को प्रस्तुत रचना में एक नयी अवधारणा के साथ प्रस्तुत किया गया है।
   लगभग 400 पृष्ठों पर फैले महाकथा के विषय में इस संक्षिप्त समीक्षा में कहना आसान काम नहीं है। इसलिए मैंने भी यहाँ बहुत कम लिखा है, ज्यादा लिखने का अर्थ है कथा की विषयवस्तु का चित्रण करना जो नये पाठक के लिए अच्छी बात नहीं। फिर भी मैं यही कहना चाहूंगा की अगर आप एक अलग तरह का, नयी अवधारणा वाला, प्राचीन भारतवर्ष, वर्तमान परिस्थितियों से संबंधित एक अच्छा कथानक पढना चाहते हैं तो यह रचना पढिये।
  प्रस्तुत उपन्यास में श्री रामचन्द्र जी का वर्णन मुझे बहुत रोचक लगा।
     उपन्यास के कमजोर पक्ष की बात करें तो वह है शाब्दिक अशुद्धियाँ, कहीं मुद्रण में कमी है तो कहीं लेखन  में भी शाब्दिक गलतियाँ है।
लेखक और प्रकाशक को इस और विशेष ध्यान देने की आवश्यक है।
  उपन्यास में एक्शन दृश्य बहुत ज्यादा हैं। हालांकि मुझे वह रोचक लगे पर फिर भी किसी उपन्यास में 70% एक्शन दृश्य पढने का मेरा प्रथन अवसर है।
उपन्यास में एक वर्ग विशेष को टारगेट किया गया है।  वर्तमान में चल रही सोशल मीडिया की अवधारणाओं को आधार बना कर वर्ग विशेष पर लेखक महोदय ने बहुत कुछ नकारात्मक लिखा है।
  अगर उक्त प्रसंगों को अलग रखकर उपन्यास पढे तो यह  एक अलग ही तरह का, एक नये विषय पर, नयी अवधारणाओं के साथ महत्वपूर्ण और मनोरंजन उपन्यास है।
उपन्यास- बाली
लेखक-   देवेन्द्र पाण्डेय
संस्करण- जून, 2019
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-  420
मूल्य-  440₹

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