Saturday 26 February 2022

508. जा चुडैल - देवेन्द्र पाण्डेय

एक असत्य घटना पर आधारित
जा चुडैल - देवेन्द्र पाण्डेय

अपनी नीरस और बोझिल जिंदगी से परेशान प्रीतम के पास दोस्त के नाम पर केवल केशव था, केशव जो अपनी ही अजीबोगरीब दुनिया में खोया रहता था। रोजमर्रा की इस बेमकसद जिंदगी में उन्हें किसी रोमांच की तलाश थी।
और एक दिन मुम्बई की बरसात में वह मिली। अजीब, रहस्यमय और बला की खूबसूरत।
लेकिन उनकी जिंदगी में आने वाली वह अकेली नही थी, उसके साथ आई थी कुछ अनचाही अनजानी मुसीबतें। वह कहते है ना इश्क का भूत सिर चढ़ कर बोलता है।
लेकिन यहां तो इश्क वाकई भूत बना हुआ था।
माईथोलॉजी, प्रेम, आदि जैसे विषयों पर लिखने वाले लेखक देवेन्द्र पाण्डेय इस बार लेकर आए हैं ‘हॉरर रोमांटिक कॉमेडी’ (Horror RomCom) नाम की विधा की हिन्दी की पहली पुस्तक।
  देवेन्द्र पाण्डेय एक प्रतिभावान लेखक हैं। देवेन्द्र जी के उपन्यासों की कहानियों में विविधता होती है। ऐसी ही एक विविधता वाला उपन्यास है 'जा चुडैल'।     यह कहानी है प्रीतम नामक एक मुम्बई के नौजवान की। और उपन्यास की पृष्ठभूमि है 'मुम्बई की बरसात'। अपने ऑफिस से लौटते प्रीतम को अँधेरा हो जाता है और दूसरी तरफ न थमने वाली खतरनाक बरसात जारी है। इसी तूफानी मौसम में प्रीतम की मुलाकात सोनल नामक एक खूबसूरत कन्या से होती है।
   इस तूफानी रात में दोनों एक दूसरे का सहारा बनते हैं। (?)  और दोनों ही चाहते हैं यह सहारा जीवनभर के लिए बना रहे।
       प्रीतम का एक दोस्त है केशव, पैरानॉर्मल इन्वेस्टिगेटर। जिसके साथ प्रीतम हर बात शेयर करता है। तो फिर भला सोनल की बात क्यों नहीं शेयर करेगा।
“क्या बात कर रहा है ? भाई तू तो छुपा रुस्तम निकल गया एकदम से, हमें देखो इतने सालों से कोई घास नहीं डाल रहा और तुम एक झटके में लड़की ले उड़े।” केशव ने समोसा भकोसते हुए कहा।
“अबे बकवास ना किया करो यार, ले उड़े क्या होता है ? जैसा तू समझ रहा है वैसा कुछ भी नहीं है। उस समय हालात ही ऐसे थे कि हमें साथ रहना पड़ा, मेरी जगह कोई और होता तो वह भी यही करता। लड़की थी यार, वह भी इस बरसात में अकेली, तो उसकी मदद करना अपना फर्ज बनता है।” मैंने सफाई देते हुए कहा।
(उपन्यास अंश)
   केशव का प्रिय विषय ही भूत- प्रेत है। वह हर बात, घटना को पारलौकिक दृष्टि से देखता है। - पारलौकिक विषयों पर आधारित नॉवेल्स और पुस्तकों का ढेर था उसके घर में। वह बाकायदा इन चीजों पर शोध कर रहा था।
     प्रीतम के अनुसार सोनल में कुछ 'अलग' था। वह अलग कभी-कभी प्रीतम‌ को अचंभित करता है, डराता है और रोमांचित करता है। लेकिन केशव का मानना है सोनल में कुछ पारलौकिक है, भूत-प्रेत है, चूडैल है।
   - अब सत्य क्या है?
यह जानना दोनों दोनों दोस्तों के लिए आवश्यक था।
   उपन्यास का मध्य पश्चात का भाग सोनल के गांव अनजानगंज से संबंध रखता है। सोनल के भाई हर्ष की शादी है जिसमे प्रीतम और केशव भी शामिल होते हैं।
जहाँ यह पता चलता है की प्रीतम और सो‌नल के प्रेम के मध्य एक चुडैल भी है। और अपने प्यार को बचाने के लिए प्रीतम को बोलना था -जा चुडैल।
  लेकिन कोई चुडैल इतनी आसानी से जाने के लिए आयी नहीं थी‌। और फिर वह चुडैल सोनल में ही क्यों आयी? अब आ ही गयी तो वापस कैसे जायेगी? इन प्रश्नों के उत्तर प्रीतम और केशव को तलाश करने थे और सोनल को चुडैल मुक्त करना था।
कहावत है ना प्यार का भूत जिसे चढ़े उसे छोड़ता नहीं, मेरे मामले में प्यार भी था और भूत भी । यह बात और थी कि भूतों का पूरा का पूरा कुनबा इसमें शामिल था ।
    यहीं से आरम्भ होता है प्रेत लोगों का उपन्यास में विशेष आगमन। कहते हैं लोहे को लोहा काटता है, उसी ढंग से प्रीतम और केशव आगे बढते हैं। और फिर अनजानगंज के अन्य भूत - प्रेतों से मिलते हैं।
    उपन्यास को थोड़ा हास्यजनक बनाने का प्रयास भी किया गया है। जैसे बीड़ी वाला भूत।
उपन्यास प्रथम पुरुष में है इसलिए उपन्यास की सारी घटनाएं कथानायक प्रीतम के माध्यम से ही पता चलती हैं।
     उपन्यास के कुछ दृश्य वास्तव में इतने रोचक हैं कि वह दहशत पैदा करते हैं।
                उसका चेहरा मेरे चेहरे के एकदम समीप था, उसने अपना मुंह खोला मैं भय से उसे देखते रहा और उसके बाद जो हुआ उसने मेरे छक्के छुड़ा दिए, उसके मुंह से एक विशालकाय अजगरनुमा कनखजूरा निकला, अपने सैकड़ों पैरों को लपलपाता हुआ वह विशालकाय कनखजूरा मेरे चेहरे के सामने आकर रुक गया, वह मात्र दो इंच की दूरी पर आकर रुका था, उसके पैरों के मध्य होती घिनौनी और डरावनी सरसराहट मेरे कानों में गूंज रही थी, मैंने आँखें बंद कर ली लेकिन कनखजूरे के पैरों को अपने चेहरे पर महसूस करते ही मेरी आँखें फट से खुली । और उसी के साथ वह कनखजूरा मेरे मुंह से आ चिपटा । अगर यह बुरा सपना था तो मैं चाहता था यह यही खत्म हो जाए, खत्म क्यों नहीं होता यह सपना, मैं छटपटा उठा और पुन: सैकड़ों हजारों कनखजूरों के मध्य जा गिरा, वे सभी मुझ पर टूट पड़े । मैं भयंकर रूप से चीखा, गला फाड़कर चीखा।

उपन्यास के कुछ रोचक दृश्यों का वर्णन है-
मुम्बई की बरसात का दृश्य देखें
यह बरसात मुम्बई के इतिहास की सबसे भयानक बरसात रही प्रीतम। हजार के आसपास लोग मारे गए और हजारों प्रभावित हुए। घायलों से अस्पताल भरे पड़े है, इमरजेंसी घोषित कर दी गई है, चारों ओर अफरातफरी का माहौल है, ऐसे में केवल सीरियस केसेज को ही अस्पताल प्राथमिकता दे रहे है।
    आजकल के प्रेम का रोचक वर्णन देखें‌
         लड़के होते ही पिघलने के लिए है । भले ही साले पिघल कर पानी बनकर किसी नाले में बह जायें लेकिन पिघलेंगे जरूर, लड़की ज़रा सा मुस्कुरा दे, जरा सा मना ले तो बाबू शोना छाप लौंडे लाइन पर आ ही जाते है, ओह ! क्या मैंने ‘बाबु-शोना’ छाप कहा ? नहीं मुझे कतई नहीं पिघलना था, मैं इस कैटेगरी से था ही नहीं।
एक रोचक कथन-
      जिगरी दोस्त पर भरोसा करने का यह सबसे बड़ा नुकसान होता है, आप ईमानदारी से सब बता देते है और फिर वह उन्हीं चीजों के लेकर आपका जिन्दगी भर मजाक उड़ाएगा
यह है एक 'अजब प्रेम की हाॅरर कहानी'।
जहाँ प्यार है, पर प्यार के बीच एक भूत है।
तो जब प्यार का भूत सिर चढा तो असली भूत कहां ठहरने वाला था।
   हाॅरर और हास्य के मिश्रण से सुसज्जित यह 'हाॅरर प्रेम कथा' पठनीय और रोचक है।
उपन्यास - जा चुडैल
लेखक  -   देवेन्द्र पाण्डेय
प्रकाशक - सूरज पॉकेट बुक्स, मुम्बई

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