Thursday 9 September 2021

457. हेरोइन- एस. सी. बेदी

एस.सी. बेदी का अंतिम उपन्यास
हेरोइन- एस.सी. बेदी
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में अगर किसी ने बाल साहित्य लिख कर ख्याति अर्जित की है तो वह एकमात्र न है -एस. सी. बेदी(सुभाषचन्द्र बेदी)
    ऐसा माना जाता है इन्होंने 1500 के लगभग बाल उपन्यास लिखे हैं। इनके प्रसिद्ध पात्र 'राजन-इकबाल' तो पाठक भूल नहीं सकते।
     बदलते दौर के साथ जब जासूसी उपन्यास साहित्य गर्द में चला गया तो एस.सी.बेदी जी भी लेखन से दूर हो गये। 
हेरोइन- एस.सी. बेदी, www.sahityadesh.blogspot.com
   एक लंबे समय पश्चात 'सूरज पॉकेट बुक्स' के संस्थापक शुभानंद जी ने 'राजन-इकबाल रिबोर्न सीरीज' आरम्भ की, जो पाठकों को एस. सी. बेदी की याद दिलाती थी। सूरज पॉकेट बुक्स के प्रयास से एक बार पुन: बेदी जी ने कलम उठाई और अपने प्रिय पात्रों पर लेखन आरम्भ किया। हालांकि इस द्वितीय पारी में वे कुल छह ही उपन्यास लिख पाये और दिनांक 31.10.2019 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। इस समय उनका अंतिम उपन्यास 'हेरोइन' प्रकाशन की कतार में था।
'हेरोइन' वर्तमान समय में युवा वर्ग को अपनी चपेट में ले लेने वाले खतरनाक और जानलेवा नशे पर आधारित 'राजन-इकबाल' सीरीज का उपन्यास है।    उपन्यास का आरम्भ राजन और शोभा के एक सेमिनार में आगमन से होता है।
शोभा व राजन भी सेमिनार में पहुंच गए थे । वहाँ काफी भीड़ थी।
वहीं सेमिनार में...
स्टेज पर तरह-तरह की अनाउंसमेंट हो रही थी । नए प्रोजेक्ट डी.पौ. की तारीफ़ हो रही थी। तभी सामने मौजूद लड़की लड़खड़ाई और गिर पड़ी। कई लोग उधर दौड़े। उनमें राजन व शोभा भी थे।
एक दृश्य और देखिये...
राजन ने धीमे स्वर में पूछा – “कैसी हो नीलम?” 
“तुम आ गये राजन?” 
“हाँ !” 
“मैं तो मौत का इंतज़ार कर रही थी। अब जीने की कुछ उम्मीद बंधी है।” 
“हुआ क्या ?” 
“मैं ड्रग्स लेती थी – हेरोइन।” 
“सबसे खतरनाक – जानलेवा।”

    जब राजन और शोभा ने देखा की वर्तमान युवा पीढी नशे की गिरफ्त में है और इनका भविष्य खत्म होने जा रहा है, तभी उन्होंने तय कर लिया की वे इस के इस घिनौने व्यापारियों का अंत करके रहेंगे।
    राजन-शोभा, इकबाल और सलमा मिल कर एक प्लान बनाते है की आखिर इन नशे के व्यापारियों तक कैसा पहुंचा जाये और कैसे इनको खत्म किया जाये।
   इसी क्रम में वे उन क्षेत्रों की ओर निकलते हैं जहाँ नशेड़ी लोगों के होने की संभावना प्रबल है।
     इसी क्रम में इनकी मुलाकात कुछ ऐसे लोगों से होती है जो युवाओं में नशे की डिलीवरी करते हैं, लेकिन उनके पीछे किन लोगों का हाथ है यह कोई नहीं बता पाता।
   वहीं उपन्यास में दो और महत्वपूर्ण पात्र हैं देवदत्त और मोहिनी जो राजन-इकबाल' के मददगार बनते हैं। 
     बेदी जी के आरम्भिक उपन्यासों में 'देवदत्त-मोहिनी' नहीं होते थे, यह शायद बाद में सर्जित पात्र हैं। देवदत्त-मोहिनी दोनों काम अच्छा करते हैं लेकिन‌ इनका तरीका कुछ अलग है और हथियार भी।
      सभी मिल कर अंततः उन लोगों का पता लगाते हैं जो युवाओं को नशे का आदि बनाते हैं। 
  हालांकि उपन्यास के कुछ पृष्ठों पश्चात यह तय सा हो जाता है कि अंतिम खलनायक कौन है और नशे का व्यापार कौन करता है। 
  उपन्यास में हास्य को प्रधानता देने के चक्कर में कहीं-कहीं तो यह लगता है हम कहानी में हास्य नहीं हास्य मे कहानी पढ रहे हैं।
  अगर उपन्यास के संपादन में कुछ और मेहनत की जाती तो यह उपन्यास प्रशंसनीय होता।
एक दृष्टि लेखक के शब्दों पर-
     'हेरोइन' एक यादगार उपन्यास है । इसे पढ़कर आप न सर्फ रोमांचित होंगे बल्कि खूब हसेंगे और आश्चर्यचकित भी होंगे । एक ऐसा गैंग देश में आ जाता है, जो हेरोइन जैसे नशे से हमारी युवा पीढ़ी को बर्बाद करके देश को कमजोर बनाना चाहता है । इस विदेशी गैंग को बर्बाद करने व तबाह करने के लिये हमारी जासूस मंडली मैदान में उतरती है – राजन, इकबाल, सलमा, शोभा, मोहिनी व देवदत्त । फिर शुरू होती है भयंकर तबाही । कदम-कदम पर रोमांच, सस्पेंस व मारधाड़ । कहानी के साथ ही हास्य का पिटारा भी खुलता है ।
  उपन्यास एक अच्छे विषय पर लिखा गया है। हालांकि कथा के स्तर कुछ कमजोर है। उपन्यास में हास्य को प्रमुखता देने के चक्कर में मूल कथा गौण सी हो जाती है।
फिर भी एस. सी. बेदी जी के अंतिम उपन्यास की दृष्टि से एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- हेरोइन
लेखक-    एस.सी. बेदी
प्रकाशक-  सूरज पॉकेट बुक्स

1 comment:

  1. उपन्यास पढ़ने की कोशिश की थी लेकिन उस वक्त पढ़ नहीं पाया था। दोबारा एक बार फिर कोशिश करूँगा पढ़ने की।

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