Wednesday 8 September 2021

456. अंतरिक्ष में विस्फोट- जयंत विष्णु लारळीकर

प्रकृति के एक रोचक रहस्य की कथा
अंतरिक्ष में विस्फोट- जयंत विष्णु नारळीकर, वैज्ञानिक उपन्यास

हमारे विद्यालय के 'सरस्वती पुस्तकालय' में एक रोचक वैज्ञानिक उपन्यास मुझे मिला। जो मुझे बहुत रोचक लगा।
कथा शुरु होती है सम्राट हर्षवर्धन के काल से। स्थानेश्वर के बौद्ध विहार के आचार्य भिक्खु सारिपुत्त की, तारों और नक्षत्रों से भरे आकाश के निरीक्षण में, गहरी रूचि है। एक रात, उनका प्रिय शिष्य रोहित उनके घर दौड़ा-दौडा़ आता है और आकाश में घटित एक अलौकिक दृश्य के साक्ष्य के बारे में बताता है।  भिक्खु सारिपुत इस घटना को विशेष महत्व देते हैं और उसकी सूचना राजा तक पहुँचा देते हैं। राजकीय संरक्षण और रोहित के सहयोग से सारिपुत्त इन अभिलेखों में सारे विवरण लिखकर, काल पात्र के रूप में जमीन में गड़वा देते हैं। अचानक, बीसवीं सदी में, तेरह सौ साल के बाद वही अभिलेख प्राच्यविद्या विशेषज्ञ तात्या  साहेब और नक्षत्रविज्ञानी अविनाश नेने को प्राप्त होते हैं। सारे विश्व और इसके  प्राणियों के अस्तित्व के लिए उनका बड़ा महत्व है। क्या सारिपुत्त ऐसे किसी संभावित संकट का पूर्वानुमान था?
उपन्यास का अंतिम भाग उन पूर्व घटनाओं से संबंधित है जो सदियों बाद घटित होती हैं।  

सृष्टि में कोई भी घटना घटित होती है उसका प्रभाव अवश्य परिलक्षित होता है। वह प्रभाव हो सकता है वर्तमान में दृष्टिगत न हो, पर भविष्य में उसका कहीं न कहीं कोई न कोई प्रभाव अवश्य होगा। अरबों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष में होने वाली घटना का प्रभाव भी पृथ्वी पर होता है पर उसका प्रभाव पृथ्वी पर पहुंचने में कितना समय लगेगा उसका आंकलन करना  संभव नहीं है।

प्रस्तुत कथा तीन भागों में विभक्त है। प्रथम भाग 632 ई. का है। द्वितीय भाग सन् 1996 से संबंध रखता है और कथा का अंतिम भाग सन्  2710 से संबंध रखता है।
   सन् 632 में अंतरिक्ष में  एक घटना घटित होती है  यह समय सम्राट हर्षवर्धन का समय है। बौद्धकाल है।
    इसी समय में एक विद्वान हुये आचार्य भिक्खु सारिपुत्त, जो की अंतरिक्ष विज्ञान के ज्ञाता थे। उनके समय में अंतरिक्ष में एक तारे का विस्फोट होता है। उनका प्रिय शिष्य रोहित इस घटना को लिपीबद्ध करता है।
  आचार्य सारिपुत्त का कहना है की सुदूर अंतरिक्ष में हुये इस विस्फोट का पृथ्वी पर भी प्रभाव होगा, पर यह कब और कितना होगा यह कहना अभी संभव नहीं है।

सन् 1996.
    युग बदला, परिस्थितियां बदली हैं। आधुनिक विज्ञान का प्रचार प्रसार हुआ। इसी समय कुछ वैज्ञानिकों को हर्षकालिन कुछ अवशेष मिलते हैं। जिनमें अंतरिक्ष में हुए एक विस्फोट का वर्णन भी है। वैज्ञानिकों का मानना है की उस विस्फोट का प्रभाव पृथ्वी पर अवश्य होगा। लेकिन..."विज्ञान और प्रौद्योगिकी की प्रगति से मानव लापरवाह बनता जा रहा है।"- अविनाश बोला,-"प्रकृति पृथ्वी तक सीमित नहीं है...असीम अंतरिक्ष में‌ कितनी प्रचण्ड शक्ति छुपी हुयी है, इस बात को मानव भूल रहा है...आज हम लापरवाह हो रहे हैं, हो ही गये हैं। अगली पीढी हमें अवश्य जिम्मेदार ठहरायेगी।"(पृष्ठ-72)
सन् 2710.
एक बात पुन: मनुष्य वहीं आ गया जहां से उसने अपने जीवन आरम्भ किया था।
इस अंतिम खण्ड में एक बाबा है जो अपने बच्चों को मनुष्य के विकास और विनाश की कहानी बताते हैं।
  प्रस्तुत कथा एक विज्ञान पर आधारित एक रोचक कथा है। मनुष्य विज्ञान का प्रयोग कैसे करता है। वर्तमान में चाहे हम स्वयं को प्रकृति विजेता मानते हो पर वास्तव में प्रकृति में क्या घटित हो रहा है इसका पता लगाना संभव नहीं है। अरबों प्रकाश वर्ष दूर घटित किसी घटना का पृथ्वी पर क्या प्रभाव होगा,कब होगा और कितना होगा कुछ कहा नहीं जा सकता।
हमने प्रकृति पर विजय पाई है यह हमार निरा दम्भ था। इस तारका विस्फोट ने मानव को यह जता दिया है। (पृष्ठ-86) अंतरिक्ष में सदियों पूर्व हुये एक विस्फोट ने कैसे मानव के व्यर्थ और दंभ पूर्ण विकास को खत्म‌ कर दिया। 
   यहाँ आधुनिक विज्ञान का प्राचीन विज्ञान के साथ बहुत तार्किक ढंग से सबद्ध किया गया है। हमारी प्राचीन विज्ञान कला को इस रचना में अच्छे ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
  यह रचना विशेष कर बच्चों के लिए बहुत रोचक है, क्योंकि उनकी जिज्ञासा बुद्धि इसे रहस्यों को जानने के लिए उत्सुक रहती है।
उपन्यास-    अंतरिक्ष में विस्फोट
लेखक-      जयंत विष्णु नारळीकर
अनुवाद  -   सुरेखा पाणंदीकर
प्रकाशक-   साहित्य अकादेमी
पृष्ठ -          92
मूल्य-        75₹
www.sahitya-akademi.gov.in

1 comment:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। इसे पढ़ने की कोशिश रहेगी।

    ReplyDelete

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...