Tuesday 3 August 2021

449. रिपोर्टर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

रिपोर्टर की हत्या- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
सुनील सीरीज-09, जून-1966

ब्लास्ट के होनहार पत्रकार राजेश को जब विशालगढ़ के एक प्रमुख उद्योगपति - जो कि नैशनल बैंक के डायरेक्टर और सिटी क्लब के प्रेसीडेंट होने के साथ साथ आगामी आम चुनावों में लोकसभा के उम्मीदवार भी थे - के एक लड़की के साथ शराब पीकर गाड़ी चलाने के अपराध में पकड़े जाने की एक्सक्लूसिव खबर मिली तो उसकी खुशी का कोई पारावार न रहा । काश कि वो जानता होता कि इस खबर को छपवाने की उसे बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। 

       राजनगर का एक बदनाम होटल है 'ज्यूल बाॅक्स' और ज्यूल बाक्स में एक डकैती के दौरान डकैत अलमारी में रखे कुछ महत्वपूर्ण कागज भी ले गये।

     ज्यूल बॉक्स का स्वामी राजपाल सुनील से मदद मांगने आता है- “तुम उन कागजों को मुझे वापिस दिलाने में मेरी सहायता कर सकते हो। सारा नगर जानता है कि तुम विलक्षण प्रतिभा के आदमी हो। केवल अपने मास्टर माइन्ड के दम से तुमने कई ऐसे केस सुलझाए हैं, जिन्हें पुलिस के जासूस सिर पटककर मर गये लेकिन सुलझा नहीं पाये। अगर तुम केवल इतना पता लगा दो कि डाकू कौन थे तो वे कागज मैं उनसे किसी भी कीमत पर वापिस खरीद लूंगा।”

    वहीं शहर में एक और घटना घटित होती है। विशालगढ के राजनेता उमाशंकर चोपड़ा, नेशनल बैंक का डायरेक्टर, सिटी क्लब का प्रेसीडेंन्ट, करोड़पति, इण्डियन चैम्बर आफ कामर्स के एडवाइजरी बोर्ड का मेम्बर, भावी एम पी और शराब के नशे में गाड़ी चलाते हुये राजनगर में पकड़े गये और जिसके साथ एक विदेशी लड़की भी थी।
    इस खबर को ब्लास्ट का रिपोर्टर राजेश कवर करता है और यह खबर समाचार पत्र ब्लास्ट के अतिरिक्त और कहीं प्रकाशित नहीं होती।
     कथित उमाशंकर अपने प्रभाव के चलते पुलिस से तो बच जाता है पर ब्लास्ट उसकी खबर छाप देता है।
बस यहीं गड़बड़ हो गयी। दूसरे दिन उमाशंकर ब्लास्ट के कार्यालय आ धमका और उसने कहा की ब्लास्ट में छपी खबर मिथ्या है। उसे पुलिस ने गिरफ्तार नहीं किया था।
  जब राजेश का उमा शंकर से सामना हुआ तो उसने भी स्वीकारा की यह वह उमांशकर नहीं है जो पुलिस की गिरफ्त में था। और उनके लिए यह हैरानीजनक बात थी की कल स्वयं को उमाशंकर स्थापित करने वाला व्यक्ति कौन था?
   उमाशंकर ने  ब्लास्ट में माफीनामा प्रकाशन के साथ आर्थिक दावा भी ब्लास्ट पर ठोकने का दबदबा दिखाया। ब्लास्ट ने माफीनामा प्रकाशन स्वीकार किया पर आर्थिक विषय नहीं ।
      सुनील और राय और ब्लास्ट के मालिक मलिक साहब के समझाने पर भी उमांशकर साहब न माने और धमकी देकर चले गये।
      मलिक साहब ने पत्रकार राजेश को मलिक साहब के पीछे लगाया ताकी उनके 'कच्चे-चिट्ठे' जाने जा सके। राजेश ने बहुत जल्द बहुत कुछ पता तो लगा लिया लेकिन एक दिन स्वयं राजेश मारा गया। एक 'पत्रकार की हत्या' हो गयी।
      अब सुनील का काम था इस हत्या की खोजबीन करना और कातिल तक पहुंचना क्योंकि यह ब्लास्ट के मान सम्मान की बात थी।
     सुनील को एक तरफ जहां राजेश के कातिल को ढूंढना था वहीं उसे ज्यूल बॉक्स डकैती में शामिल एक कटी उंगली वाले डकैत को भी ढूंढना था। दोनों काम आसान न थे।
      यहाँ सुनील को एक पूर्व अपराधी की मदद की जरूरत पड़ती है। फ्रैंक नामक पूर्व अपराधी के माध्यम से एक और नाम सामने आता है- जेबी।
    जेबी ! जंग बहादुर ! राजनगर का सब से खतरनाक दादा। नगर में हुए आधे अपराधों में जिस का हाथ होता था लेकिन फिर भी जिस पर पुलिस हाथ नहीं डाल पाती थी।"
   वहीं एक और विदेशी लड़की का जिक्र सुनील के सामने आता है।
   अपनी इन्वेस्टिगेशन के दौरान कई हादसों से होता हुआ अपने मित्र रमाकांत, CID कर राम‌सिंह की मदद लेता हुआ अनंतः सुनील असली अपराधियों तक पहुँच ही जाता है।
उपन्यास में राजपाल सुनील से मदद मांगने आता है और सुनील मना कर देता है क्योंकि राजपाल और ज्यूल बाॅक्स दोनों अपराध के केन्द्र हैं।
जब प्रमिला सुनील को मना करने का कारण पूछती है तो सुनील बहुत अच्छा उत्तर देता है।
“सवाल रुपयों का नहीं है पम्मी, सिद्धान्त का है। जासूसी मेरा पेशा नहीं, शौक है। मैं यह सब काम इसलिए करता हूँ क्योंकि मुझे एडवैन्चर पसन्द है। मुझे एक्साईटमैंट से लगाव है।"
होटल ज्यूल बाक्स का वर्णन सुनील के तृतीय उपन्यास 'होटल में खून' में भी है। जहाँ सुनील के आँखों के समक्ष एक कत्ल होता है। उसी होटल का मालिक रामपाल इस बार सुनील से मदद मांगने आता है।
    एक मर्डर मिस्ट्री और डकैती पर आधारित रहस्य में लिपटा यह उपन्यास रोचक और पठनीय है।
उपन्यास- रिपोर्टर की हत्या
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- जून,1966
सुनील सीरीज- 09

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