Sunday 1 August 2021

447. मूर्ति की चोरी- सुरेन्द्र मोहन पाठक

मूर्ति की चोरी- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज-07

दीवान नाहर सिंह को पुरानी ऐतिहासिक महत्त्व की चीजें एकत्र करने का शौक था । अपने इस अभूतपूर्व कलेक्शन की नुमायश के वास्ते वो अनेक सुरक्षा इंतजामों के बीच अक्सर बड़ी-बड़ी पार्टियां देता था।  लेकिन उसके तमाम इंतजाम धरे-के-धरे रह गए जब एक रोज ऐसी ही पार्टी के बाद एक बुद्ध की मूर्ति गायब पाई गयी।

मूर्ति की चोरी- पाठक svnlibrary.blogspot.com
  हम एक बार फिर उपस्थित हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के सुनील सीरीज के सातवें उपन्यास 'मूर्ति की चोरी' के साथ। यह पाठक जी द्वारा लिखा गया सातवाँ उपन्यास है, जो चोरी और मर्डर पर आधारित है। उपन्यास का नायक 'ब्लास्ट' समाचार पत्र का खोजी पत्रकार सुनील चक्रवर्ती है, और साथ में सुनील का परम मित्र रमाकांत।
     राजनगर शहर का नाहर सिंह मूर्तियों का अच्छा संग्राहक तो था ही साथ ही साथ उसे मूर्तियों को मित्रों को दिखाने का शौक भी था। इसलिए वह अक्सर पार्टियाँ करता रहता था। और इसी तरह एक पार्टी में एक दुर्लभ बुद्ध की मूर्ति चोरी हो गयी।
- दीवान नाहरसिंह के विषय में उसने बहुत कुछ सुना था । वह लगभग पचपन वर्ष का लखपति आदमी था । प्रीमियर बिल्डिंग के नाम से जानी जाने वाली विशाल इमारत उसकी सम्पत्ति थी......
       नाहरसिंह को पुराने जमाने की ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं जमा करने का शौक था । अपने उसे शौक की खतिर उसने सारे विश्व का भ्रमण किया था और लाखों रुपए खर्च करके अपने घर में दुर्लभ वस्तुओं का एक म्यूजियम सा बना डाला था। 

   पहली बुद्ध की मूर्ति पर नाहर सिंह चुप रहा और जब द्वितीय समय उसने मूर्तियों की प्रदर्शनी वाली पार्टी रखी तो सुरक्षा की दृष्टि से उसने अपनी पत्नी नीला के कहने पर युथ क्लब के रमाकांत को निगरानी के लिए रख लिया।
  लेकिन शातिर चोर इस बार महात्मा बुद्ध की द्वितीय मूर्ति के साथ-साथ 'ब्लो गन' भी ले गया।
यह ब्लो गन क्या बला है ?”
“ब्लो गन एक प्रकार का घातक हथियार है जिसे दीवान चीन से लाया था । यह लगभग तीन फुट लम्बी और एक इंच व्यास की बांस की खोखली नली होती है । लोहे की गर्म सलाखों की सहायता से इसके भीतर का छेद इतना हमवार कर दिया जाता है कि वह भीतर से शीशे की तरह मुलायम और चमकदार बन जाता है । इस बांस की नली के भीतर एक स्प्रिंग होता है जिसमें लगभग तीन इन्च लम्बा एक तीर अटका दिया जाता है । इस तीर की डंडी लकड़ी की होती है और आगे का नोकीला भाग लोहे का । लोहे की यह नोंक एक घातक विष में डूबी हुई होती है । बांस की नली की दूसरी ओर से यदि फूंक मारी जाए तो स्प्रिंग एकदम रिलीज हो जाता है और तीर निकलकर शत्रु के शरीर में घुस जाता है ।
“और बुद्ध की मूर्ति ?”
“वह लगभग चार इंच के ताम्बे के घन में से गढी गई मूर्ति थी जिसमें महात्मा बुद्ध को आलथी-पालथी मारे ध्यान मग्न दिखाया गया था। महात्मा बुद्ध के तेज की व्याख्या के रूप में उस मूर्ति के माथ में एक हीरा जड़ा हुआ था। दीवान के पास इन मूर्तियों का जोड़ा था। एक मूर्ति पिछले महीने चोरी हो गई थी और एक अब उड़ गई है।”

    दीवान नाहर सिंह इसके‌ लिए जिम्मेदार मानता है रमाकांत को, क्योंकि उसकी निगरानी के दौरान चोरी हुयी थी।
    अब रमाकांत इस मामले में सुनील को याद करता है।
दीवान नाहरसिंह सुनील से बोला - “मेरी पत्नी ने तुम्हारे दोस्त की जागरुकता की बहुत तारीफ की थी और मैंने भी इसकी योग्यता का भरोसा करके मामला पुलिस के हाथ में नहीं सौंपा था फिर भी नतीजा तुम्हारे सामने है। मेरी दो अमूल्य वस्तुयें गायब हो गई हैं।”
“लेकिन डार्लिंग।” - नीला शहदभरे स्वर में बोली - “इसमें रमाकांत का क्या दोष है ?”

अब सुनील का काम था चोरी हुयी मूर्तियों और ब्लो गन को खोजना।
लेकिन एक दिन उस ब्लो गन से दीवान नाहर सिंह की उसी के घर में कोई हत्या कर देता है।
      लेकिन सुनील को कहीं न कहीं यह विश्वास था कि नाहर सिंह की हत्या और चोरी को अलग-अलग ढंग से अंजाम दिया गया है। और हत्यारा यह भी चाहता है की हत्या का आरोप किस अन्य पर लगे।
      अपने तीव्र दिमाग और वाक चातुर्य से सुनील इस चोरी और हत्या के प्रकरण को हल करता है।
     प्रस्तुत उपन्यास एक रोचक और दिलचस्प उपन्यास है। उपन्यास का आरम्भ जहां चोरी की घटना से आरम्भ होता है वहीं अंत मर्डर मिस्ट्री को हल करने पर। उपनाम में ब्लोगन जैसे चीनी हथियार का वर्णन भी पठनीय है।

उपन्यास- मूर्ति की चोरी
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक


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