Sunday 25 July 2021

444. हाॅगकाॅग में हंगामा- सुरेन्द्र मोहन पाठक

सुनील का प्रथम अंतरराष्ट्रीय अभियान
हाॅगकाॅग में हंगामा- सुरेन्द्र मोहन पाठक,1966
सुनील सीरीज-06

सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन के सुपरिटेन्डेन्ट रामसिंह ने अपनी जेब से एक असाधारण लम्बाई का सिगार निकाला, दांत से ही उनका कोना काटा, सिगार को अपने मुंह के कोने में लगाकर उसने माचिस से सुलगाया और फिर एक बेहद लम्बा कश लेकर उसे होंठों से हटा लिया और अपने विशिष्ट ढंग से उसे अपने अंगूठे और पहली उंगली में नचाता हुआ सुनील से सम्बोधित हुआ - “आज तुमको मेरे साथ प्रतिरक्षा मन्त्रालय में चलना है।”
   यहाँ जाकर सुनील को पता चलता है की कुछ महत्वपूर्ण फाईल गायब हो गयी हैं। और विभाग का एक सामान्य सा कर्मचारी नरेश मारा गया है और उसकी जेब में कुछ गोपनीय कागज पाये गये हैं।
मिस्टर सुनील, नरेश देशद्रोही, नहीं हो सकता । वह चोरी नहीं कर सकता । वह तो अवश्य ही किसी बहुत बड़े कुचक्र का शिकार होकर जान दे बैठा है।” 
     सुनील को यह भी पता चलता है की उस कर्मचारी नरेश की पहुँच उन कागजों तक न थी।
- वह महत्वपूर्ण कागज/फाईल क्या थी?
- वह फाईल कैसे गायब हुयी?
- वह कागज किसने गायब किये?
- नरेश कैसे मारा गया?
- सुनील इस रहस्य जो कैसे सुलझाता है?
- आखिर प्रतिरक्षा विभाग सुनील की मदद क्यों लेता है?     सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा स्थापित सुनील चक्रवर्ती 'ब्लास्ट' नामक समाज पत्र में खोजी पत्रकार है। वह अपराधिक मामलों में लोगों की मदद करता है।
प्रस्तुत उपन्यास में प्रतिरक्षा विभाग उसकी मदद लेता है और विभाग यह भी चाहता की सारा मामला गोपनीय रहे और वह महत्वपूर्ण दस्तावेज सुरक्षित वापस आ जायें।
   जब सुनील इस केस की छानबीन करता है तो उसे पता चलता है की इस सारे मामले में कुछ विदेशी एजेंट सक्रिय हैं। सुनील अपनी सक्रियता से शीघ्र अपराधियों तक पहुँच भी जाता है लेकिन वह कागज नहीं पा सकता, क्योंकि वह कागज तब तक हाॅंगकाॅग पहुँच चुके थे।
     अब सुनील के पास एक ही रास्ता बचता है और वह है हाॅगकाॅग जाकर उन कागजों को प्राप्त करना, यह इतना आसान काम न था।
कहानी का द्वितीय भाग यहीं से आरम्भ होता है। सुनील यहाँ एक के बाद एक जाल में उलझता चला जाता है और देश के दुश्मनों से टकराता है। अनंतः वह अपने मिशन में कामयाब होता है।
    हाॅगकाॅग में सुनील का मददगार एक छोटा सा बच्चा मोहम्मद है जिसका उपनाम में किरदार बहुत अच्छा और प्रभावशाली है। देखा जाये तो इसी की सहायता से ही सुनील को इस अभियान में सफलता मिलती है।
अब चर्चा उपन्यास की कुछ और तथ्यों पर...
- पाठक जी के उपन्यासों में दरवाजे और खिड़की की झीरी वाले दृश्य अक्सर पढने को मिल जाते हैं।
कभी दरवाजा पूरा बंद नहीं होता, एक झीरी रह जाती है तो कभी खिड़की में भी झीरी रह जाती है।
“देखो, राम सिंह !” - सुनील राम सिंह का ध्यान खिड़की के दरवाजे की ओर आकर्षित करता हुआ बोला - “खिड़की के पल्ले पूरी तरह बन्द हो जाने के बाद भी इनमें थोड़ी सी झिरी रह जाती है । अगर कोई आदमी चाहे तो सड़क पर खड़ा होकर इस झिरी में से कमरे में बड़ी आसानी से झांक सकता है।”
 राम सिंह ने खिड़की देखी और फिर सहमति प्रकट की।
- उपन्यास में सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन के सुपरिटेन्डेन्ट रामसिंह को सिगार पीते हुये दिखाया गया था। और वह सिगार का कितना दीवाना है यह उसके कथन से देखें-
“राम सिंह की जिन्दगी के लिये सिगार इतना ही जरूरी है जितनी कि हवा।”
- उपन्यास में हाॅगकाॅग का एक दृश्य है जब सुनील पहली बार मिस चिन ली के फ्लैट पर जाता है और फिर वहाँ से मोहम्मद के फोन करने पर बाहर आता है।
वहीं आगे सुनील एक बार मिस चिन ली को कहता है
"फिर तुम ने बहाना बनाकर मुझे फ्लैट से बाहर भेज दिया और निश्चिंत होकर बैठ गयी।"
  वास्तव में मिस चिन ली ने उसे बाहर नहीं भेजा था, वह तो मोहम्मद के फोन करने पर बाहर निकला था।
-   इस उपन्यास में पहली बार सुनील की उम्र का वर्णन आया है।
“क्या उम्र है तुम्हारी, मिस्टर ?” - उसने पूछा । “सत्ताइस साल।”
- सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यासों में ऐसा करतब होता नहीं है, पर यह करतब पहली बार देखने‌ को मिला है।
उसी क्षण गोल्डस्मिथ की रिवाल्वर से भी गोली निकली और दोनों गोलियां रास्ते में टकरा गयी।
- यह पहला उपन्यास है जिसमें सुनील पहली बार विदेश में सक्रिय होता है।
- यह पहला उपन्यास है किसमें सुनील सेन्ट्रल ब्यूरो आफ इन्वेस्टिगेशन के सुपरिटेन्डेन्ट रामसिंह के लिए काम करता है।
- यह पहला उपन्यास है जहाँ सुनील पत्रकार की बजाय एक जासूस के रूप में नजर आता है।
- ब्लॉगर मित्र विकास नैनवाल ने एक प्रश्न किया था कि सुनील को प्रमीला के अतिरिक्त और कौन- कौन 'सोनू' कहता है, तो इसका एक उत्तर यह रहा-
“सुनील ! सोनू डियर ।” - राम सिंह बोला - “तुम थे कहां ? ...लेकिन ...लेकिन ...तुम्हारे चेहरे को क्या हुआ है ?”
- उपन्यास में प्रमिला, रमाकांत और इंस्पेक्टर प्रभुदयाल का कोई भूमिका नहीं है। हां, बस एक जगह नाम अवश्य आता है।
ब्लास्ट के चीफ एडीटर मलिक साहब तो इस बात पर बेहद नाराज हुये कि वह एकाएक ही एक सप्ताह भर कहां गायब रहा था । प्रमिला और रमाकान्त ने भी उसे खूब झाड़ पिलाई।
यह छोटा सा उपन्यास रहस्य और थ्रिलर से भरपूर है। अच्छा मनोरंजन उपन्यास है।
उपन्यास- हाॅगकाॅग में हंगामा
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन वर्ष- 1966
सुनील सीरीज-06

सुनील सीरीज के अन्य उपन्यासों की समीक्षा
01. पुराने गुनाह, नये गुनहगार
02. समुद्र में खून
03. होटल में खून
04. बदसूरत चेहरे
05. ब्लैकमेलर की हत्या
06. हाॅगकाॅग में हंगामा

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