Sunday 4 July 2021

442. वो बेगुनाह थी- मोहन मौर्य

                           एक रोचक थ्रिलर
          वो बेगुनाह थी- मोहन मौर्य

लोकप्रिय जासूसी साहित्य में वर्तमान समय में हर लेखक जब मर्डर मिस्ट्री को मील का पत्थर मान चुका है उस समय में एक थ्रिलर उपन्यास का आना सावन की प्रथम बरसात की फुहार की तरह है।
      हम बात कर रहे हैं मोहन मौर्य जी के उपन्यास 'वो बेगुनाह थी' की। यह एक थ्रिलर उपन्यास है हालांकि उपन्यास में मर्डर होता है पर वह मूल कथा नहीं है। वैसे मोहन‌ मौर्य का उपन्यास साहित्य में‌ पदार्पण 'एक हसीन कत्ल' नामक मर्डर मिस्ट्री से ही हुआ था। 
   अब बात करते हैं उपन्यास जे कथानक की।
  यह कहानी है एक युवा की जो हैदराबाद में जो काम करता है और एक लड़की की 'मैं बेगुनाह हूँ' की मार्मिक पुकार पर उसे बेगुनाह साबित करने के अभियान पर निकल पड़ता है।
      मेरा नाम राहुल है, राहुल वर्मा । मूलतः मैं दिल्ली से हूँ और एक एमएनसी में जॉब कर रहा हूँ । फिलहाल जॉब के सिलसिले में वर्तमान में हैदराबाद मेरा रैन बसेरा है । मैं अपने परिवार के साथ हैदराबाद के कुकटपल्ली क्षेत्र की न्यूयार्क टाइम्स टाउनशिप की बिल्डिंग नंबर 7 के फ्लैट नंबर 304 में रहता हूँ।
    राहुल वर्मा के पडोसी में दो लड़कियाँ रहती हैं। जिस में से एक खूबसूरत लड़की का नाम है रश्मि माथुर।      रश्मि माथुर 22 वर्षीय खूबसूरत लड़की, जो हैदराबाद की आई टी कंपनी में 22 लाख के पैकेज पर कार्यरत थी । पुलिस ने उसे ड्रग्स सप्लाई के इल्जाम में गिरफ्तार किया था, पर उसका कहना था कि वो बेगुनाह है और उसे किसी ने फंसाया है । पुलिस को उसकी इस थ्योरी पर बिल्कुल भी विश्वास नहीं था । तब उसे बेगुनाह साबित करने निकला एक 38 वर्षीय आई टी कंपनी में ही कार्यरत राहुल वर्मा, जो जासूसी उपन्यास पढ़ते-पढ़ते खुद को भी जासूस समझने लगा था । क्या वो उसे बेगुनाह साबित जारने मे सफल हुआ या खुद किसी मुसीबत के गले जा लगा ?
   तो यह है उपन्यास का मूल कथानक।
   - रश्मि माथुर क्या सच में ड्रग्स डीलर थी?
   - क्या रश्मि माथुर को किसी ने फंसाया था?
   - क्या राहुल वर्मा उसे बेगुनाह साबित कर पाया?
   - क्या थी हकीकत क्या था अफसाना?

यह जानने के लिए पढें यह रोचक उपन्यास।
  रश्मि माथुर को जब बेगुनाह साबित करने के लिए राहुल वर्मा जासूस बनता है तो उसके सामने कई नये रहस्यों आते हैं।
    उसे समझ में नहीं आता की क्या सही है और क्या गलत। क्योंकि रश्मि माथुर के मित्र भी उसका साथ छोड़ देते हैं। लेकिन राहुल वर्मा के तो एक ही जिद्द थी रश्मि माथुर को बेगुनाह साबित कर अपनी अंकशायिनी बनाना।
   इसी चक्कर में वह असली ड्रग्स डीलर से टकरा बैठता है। और ऐसी कई घटनाओं में वह मात खाता है।
   उपन्यास का समापन पाठक को प्रभावित करने में पूर्णतः सक्षम है। जो रोचक और बेहतरीन है।

उपन्यास प्रथम पुरुष में लिखा गया है। कथानायक के माध्यम से कथा आगे प्रगती करती है।।
        उपन्यास का कथानक हैदराबाद पर केन्द्रित है तो यह भी तय की वहाँ की भाषा तेलुगू का वर्णन तो होगा ही।
  मेरे विचार से किस उपन्यास में प्रथम समय तेलुगू का प्रयोग हुआ है। बहुत सी उपन्यासों में अंग्रेजी, पंजाबी और राजस्थानी- हरियाणवी किरदार और बोली तो दिखाई जाती है, पर तेलुगू पहली बार।
    हालांकि मुझे तेलुगू संवाद समझ में तो नहीं आये पर उनका भाव  इतना रोचक है कि जबरन होंठों‌ पर हँसी थिरक उठती है।। हालांकि तेलुगू उपन्यास नायक भी नहीं समझ पाता।
  उदाहरण देखें-
मैं उसके सामने जाकर खड़ा हुआ । उसने नजरे उठाकर मेरी तरफ देखा और बोला, “कूरचोंडी सर। चेपण्डी, नेनु मीकू ये विधामुगा सहायामु चेयागालानु।”
‘उफ़्फ़ ! लगता है इस लड़की के चक्कर में तेलुगू सिखनी ही पड़ेगी।’ चेपण्डी के अलावा उसका एक भी शब्द मेरे पल्ले नहीं पड़ा था और मैं पागलों की तरह उसके सामने खड़ा रहा।

एक और उदाहरण देखें-
“सर्वानंद ! लॉकअप लो उन्ना रश्मि माथुर डग्गरी इतनिनी तीसुकु वेल्लु।” सब-इंस्पेक्टर ने उसे क्या कहा ये तो पता नहीं, पर इतना मैं समझ गया था कि उसने उसे मुझे लॉकअप में बंद रश्मि माथुर से मिलवाने के लिए बोला है।
    ये संवाद बहुत रोचक हैं।
    उपन्यास में कथा नायक को लम्पट‌ किस्म का दिखाने की भरपूर कोशिश की गयी है। कथानायक जासूसी उपन्यासों का शौकीन है और उसे लगता है जासूस को खूबसूरत लड़कियां मिल जाती हैं। हालांकि कथा नायक शादीशुदा है। बस वह इसी चक्कर में लड़की को बचाने की कोशिश करता है कि वह खूबसूरत लड़की उसकी अंकशायिनी बन जाये।
     लेखक ने ऐसे एक दो लम्पट नायकों को वर्णन भी किया है।
यह उपन्यास एक ऐसी खूबसूरत नौजवान युवती के बारे में है जो हैदराबाद की एक आईटी कंपनी में अच्छे-खासे पैकेज पर कार्यरत है और ड्रग्स सप्लाई के इल्जाम में पुलिस द्वारा गिरफ्तार है । राहुल वर्मा जो एक आई टी कंपनी में कार्यरत है, जो जासूसी उपन्यास पढ़कर खुद को किसी जासूस से कम नहीं मानता, उसका कहना था कि ‘वो बेगुनाह थी’ और किसी अपने की साजिश का शिकार थी । वह उसे बेगुनाह साबित करने के लिए अपने कदम उठाता है । अब वह उसे बेगुनाह साबित कर पाता है या फिर खुद किसी मुसीबत में जा फँसता है, ये जानने के लिए आपको उपन्यास पढ़ना होगा।

एक खूबसूरत जाल पर आधारित एक बिलकुल अलग तरह की कहानी है।

उपन्यास का अंत आपको एक अलग ही अहसास करवाता है।
धन्यवाद
- गुरप्रीत सिंह
श्री गंगानगर, राजस्थान
www.svnlibrary.blogspot.com

उपन्यास- वो बेगुनाह थी
लेखक-    मोहन मौर्य
प्रकाशक-  सूरज पॉकेट बुक्स
फॉर्मेट-     Ebook on kindle

5 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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    1. इंतजार रहेगा विकास जी

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  2. गुरुप्रीत जी धन्यवाद 🙏🙏

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  3. रोचक लग रहा है...पढ़ने का प्रयास रहेगा..

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