Wednesday 13 January 2021

412. आठ दिन- सुरेन्द्र मोहन पाठक

ठग आदमी जब जासूस बना
आठ दिन - सुरेन्द्र मोहन पाठक

विकास गुप्ता सीरीज
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का नाम सम्मान से लिया जाता है। उनके द्वारा लिखित उपन्यास और रचित पात्र उपन्यास पाठकों के लिए एक उपहार की तहर हैं जिसे वे सजों कर रखते हैं।
     उनके चर्चित पात्र हैं पत्रकार सुनील, प्राइवेट जासूस सुधीर कोहली, विमल और जीता। इसके अतिरिक्त ऐसे भी पात्र रचे हैं जिन पर एक दो उपन्यास लिखे गये हैं। ऐसा ही एक पात्र है विकास गुप्ता।
  विकास गुप्ता के पर तक पाठक जी ने तीन उपन्यास लिखे हैं, 'धोखाधड़ी','बारह सवाल' और 'आठ दिन'
   मैंने इन दिनों सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित उपन्यास 'आठ दिन' यह विकास गुप्ता सीरीज का  तीसरा उपन्यास है।
    उपन्यास विकास गुप्ता नामक युवक और उनके साथी शबनम सेठी और मनोहर लाल पर आधारित है। तीनों पेशेवर ठग है। लेकिन एक बार गलती से विकास गुप्ता संयोग से एक कत्ल का गवाह बन बैठा और यही संयोग उसके दुर्दिन ले आया।। 
युवक का नाम विकास गुप्ता था और वो एक पेशेवर ठग और कॉनमैन था । ठगी ही उसकी रोजी रोटी का जरिया था और उसकी अमूमन हमेशा कामयाबी में सबसे बड़ा हाथ उसके आकर्षक व्यक्तित्व का और उसकी अक्ल और सूझबूझ का था । उसकी सूरत और रखरखाव को देखकर कभी कोई सपने में नहीं सोच सकता था कि वो ठग था, जो सोचता यही सोचता कि कोई प्रोफेसर था या इंजीनियर था या बिजनेस एग्जीक्यूटिव था।    मुख्य पात्र एक ठग है और उसके कुछ नियम हैं, असूल हैं। वह अपने नियमों के अंतर्गत ही अपने काम को अंजाम देता है। - विकास प्रोफेशनल कॉनमैन, पेशेवर ठग था लेकिन फिर भी ऐसा ठग नहीं था जिसने अपनी आत्मा शैतान के पास गिरवी रखी हुई हो । ठगी में भी उसके कुछ उसूल थे जिन पर वो हमेशा खरा उतरता था । उसने कभी किसी ऐसे आदमी को नहीं ठगा था, ठगे जाने के बाद जिसकी जिंदगी किसी ट्रेजेडी का शिकार हो सकती हो । अमूमन उसने ऐसे लोगों को ठगा था जो कि खुद - ढके छुपे या प्रत्यक्ष ठग थे।
     इस बार भी वह अपने साथी शबनम सेठी और मनोहर लाल के साथ ऐसे ही एक काम को सफलतापूर्वक संपन्न करता है। लेकिन एक दुर्योग से वह एक कत्ल का गवाह बन जाता है। यही घटना आगे विकसित होती है।
     विकास गुप्ता और शबनम सेठी मिलकर उसे लाश का पता लगाने की कोशिश करते हैं लेकिन लाश का कहीं पता नहीं चलता दूसरी तरफ कातिल भी चश्मदीद गवाह विकास गुप्ता को खत्म करना चाहता है।
     यही कहानी धीरे-धीरे नये मोड़ लेती है। और कुछ अन्य पात्र इसमें शामिल होते जाते हैं। एक ठगी और कत्ल का गवाह विकास गुप्ता स्वयं यह पता लगाना चाहता है की कत्ल करने वाला और मरने वाला कौन था।
    इंस्पेक्टर जिले की तरफ से भी उसे छूट है की वह इस सत्य का पता लगाये। और जब वह सत्य के करीब पहुंचने की कोशिश करता है तो विकास और शबनम के पीछे कुछ अज्ञात हत्यारे पड़ जाते हैं। और इसी चक्कर में तीन कत्ल और सामने आते हैं। कुल चार कत्लों की कहानी है।
  वहीं इनकी ठगी का शिकार पुखराज रहेजा भी इनके तलाश में होता है।
कुछ संयोग और कुछ परिश्रम और दुर्योग से पुखराज रहेजा का संबंध हर घटना से जुड़ने लगता है।
    उपन्यास में विकास गुप्ता के साथी मनोहर का चित्रण बहुत रोचक है और वह वास्तव में एक तीव्र बुद्धि का ठग भी है उसकी कार्यशैली हास्य और दिलचस्प है।
  शबनम का भी किरदार देख लें-युवती का नाम शबनम था । वो आयु में लगभग सत्ताइस बरस की थी और निहायत खूबसूरत थी । उसकी पसंदीदा ड्रैस लो कट स्लीवलैस ब्लाउज और शिफौन की साड़ी थी लेकिन वो कोई भी ड्रैस क्यों न पहने हो उसे देखकर कोई ये नहीं कह सकता था कि मनोहर लाल और विकास गुप्ता की तरह उसका पसंदीदा कारोबार भी ठगी था । अभी कुछ अरसा पहले तक वो मनोहर लाल की पक्की चेली थी लेकिन पिछले दिनों विशालगढ में फैले ठगी के बड़े व्यापक घोटालों के दौरान वो विकास गुप्ता के इतने करीब आ गयी थी कि उसने मनोहर लाल से अपनी सालों पुरानी जुगलबंदी तोड़ ली थी और विकास गुप्ता की होकर रह गयी थी।
    हां उपन्यास में कुछ और रोचक है तो वह है महिलाएं पात्र। उपन्यास में महिलाएं पात्र केन्द्र में हैं। वह चाहे पुखराज रहेजा की पत्नी सुनंदा, पेट्रोल पंप मालिक सतीश चावला की पत्नी आलोका हो या विधायक की पत्नी उदिता अटवाल हो। 
विकास गुप्ता और उसके साथी ठग हैं। पाठक जी ने भी विकास गुप्ता को एक ठग रूप में स्थापित करने की कोशिश की है, यह कोशिश इस उपन्यास के आरम्भ में दृष्टिगोचर भी होती है। लेकिन शीघ्र ही उपन्यास ठगी की कथा से हटकर एक मर्डर मिस्ट्री कथा में परिवर्तित हो जाता है।

उपन्यास के आरम्भ के पृष्ठों में जिस तरह से 'बाल की खाल' निकालने का प्रयत्न किया गया है वह पाठक को नीरसता से भर देता है।
पता नहीं क्यों एक ठग को जबरन जासूस बनाने की कोशिश की गयी है और उपन्यास के अंत तो वह अपने कार्ड तक प्रिंट करवा लेते हैं।
   लोकप्रिय साहित्य में कहानियों में विविधता नहीं है। पाठक जी के पास एक अच्छा मौका था जब वे उपन्यास साहित्य में एक ठग को स्थापित कर सकते थे। पर पता नहीं क्यों वे एक नया रास्ता बनाने की जगह अपने पुराने अंदाज मर्डर मिस्ट्री पर लौट आये।
अंत अच्छा तो सब अच्छा की तर्ज पर उपन्यास अच्छा साबित होता है। क्लाइमैक्स आते-आते पन्यास रफ्तार और पाठक पर पकड़ स्थापित कर ही लेता है।
उपन्यास- आठ  दिन
लेखक-   सुरेन्द्र मोहन पाठक
फॉर्मेट- eBook on Guggurnaut

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