औरतों के व्यापारी।
सुल्तान नादिर खाँ- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
सुंदरता कभी-कभी अभिशाप बन जाती है।
और यासमीन के लिए तो सुंदरता अभिशाप बन ही गई थी। यह चीनी युवती कुछ वर्ष पहले शंघाई की सुंदरी कहलाती थी।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी का उपन्यास 'सुलतान नादिर खाँ' पढा। प्रथम दृष्टि में यह कोई ऐतिहासिक उपन्यास नजर आता है लेकिन यह न तो ऐतिहासिक उपन्यास है और न ही ऐतिहासिक पात्र है। यह पूर्णतः एक काल्पनिक और मनोरंजन की दृष्टि से लिखा गया रोचक उपन्यास है।
यह कहानी है यासमीन नामक एक स्त्री की। जो अति सुंदर है और यही सुंदरता उसके लिए अभिशाप बन जाती है। शंघाई की यासमीन कुछ षडयंत्रों से बच कर चीन छोड़कर भारत आती है। यहाँ वह जासूस राजेश और जगत से टकराती है। अजीब थी वह सुंदरी। पहले राजेश की प्रतिद्वंदी थी और फिर राजेश से प्रणय निवेदन कर बैठी।* (पृष्ठ-04)
लेकिन यासमीन का दुर्भाग्य यहा भी उसका पीछा नहीं छोड़ता। रजतपुरी में से कुछ अनजान लोगों ने उसे अपहृत करके अचेत अवस्था में यान पर चढा दिया....(पृष्ठ-04)
एक था कासिम।
"तो तुम हो कासिम।"
"कोई ऐतराज?"
"औरतों के व्यापारी..... शैतान। सुना है भले घर की औरतें तुम्हारे डर से बाहर नहीं निकलती?" (पृष्ठ-06)
कासिम स्वयं जे बारे में भी यही कहता है-
पहले में औरतों से घृणा करता था फिर औरतों का व्यापार करने लगा। (पृष्ठ-28)
कासिम मानवता का दुश्मन है।
कासिम यासमीन का भी तो दुश्मन है।
औरतों का व्यापारी और मानवता शत्रु एक दिन यासमीन का अपहरण करवा लेता है। और उसे पहुंचा देता है माण्डा के सुल्तान नादिर खाँ के पास। नादिर खाँ औरतों का रसिया। स्त्रियाँ अब उसके लिए भोग्य कम और खिलौना अधिक थी। (पृष्ठ-44)
नादिर खाँ के हरम में सौ से भी ज्यादा औरते हैं।
ऊंची दीवारों से घिरा हुआ यह शाही बेगमात का आवास गृह अच्छी खासी जेल के समान था। हर बेगम की अपनी एक कोठरी थी। बस एक कोठरी। (पृष्ठ-68)
और यासमीन की किस्मत उसे यहाँ ला पटकती है।
जासूस मित्र जगत, राजेश और जयंत भी मानवता के शत्रु का पीछा करते-करते माण्डा पहुंच जाते हैं। उनका साथ देते है जासूस ताऊ, ताऊ अर्थात काहिरा के भूत की तरह प्रसिद्ध जासूस इमामुद्दीन (पृष्ठ-35) और मांडा का क्रांतिकारी नसीर।
यहाँ से आरम्भ होता है एक रोचक खेल। यासमीन जहां कासिम को सबक सिखाना चाहती है वहीं वह सुल्तान की कैद से आजाद भी होना चाहती है। पर उसकी किस्मत- खूब थी यासमीन की किस्मत भी। आपदाओं के साथ, विपदाओं के साथ किस्मत आगे-आगे दौड़ रही थी और उसका भाग्योदय बार-बार पीछे रह कर चूक जाता था। (पृष्ठ-111)
नसीर एक क्रांतिकारी संगठन का प्रमुख है जो मांडा की जनता को लम्पट सुल्तान नादिर खाँ के राजतंत्र से मुक्त करवाना चाहता है।
जयंत, राजेश और जगत तीन तो कासिम का पीछा करते-करते मांडा आ पहुंचते हैं।
ताऊ इमामुद्दीन भी भारतीय जासूसों से आ मिलता है।
जब सभी मांडा में एकत्र होते हैं तो घात-प्रतिघात का खेल चलता है।
- कौन जीता और कौन हारा?
- किसने क्या चाल चली?
ऐसे अनेक रोचक घटनाओं, प्रश्नों और प्रसंगों को तो जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास 'सुल्तान नादिर खाँ' को पढकर ही जाना जा सकता है।
उपन्यास में मांडा अच्छा और रोचक वर्णन मिलता है। चाहे यह सब काल्पनिक है पर वहाँ का जो चित्रण है वह पाठकों को आकृष्ट करने में सक्षम नजर आता है। विशेषकर मांडा की सराय का घटनाक्रम।
उपन्यास का यह कथन मुझे सत्य के बहुत नजदीक लगा-
इंसान में इंसान का खून पीने की आदत पुरानी है और वह आदत मिट नहीं सकती। (पृष्ठ-113)
प्रस्तुत उपन्यास एक औरतों के व्यापारी और एक सुल्तान पर आधारित है। कैसे जासूस मित्र इन मुसीबतों से औरतों को बचाते हैं।
उपन्यास की सबसे बड़ी कमी है उसका अंत। उपन्यास में अंत का कहीं कुछ पता ही नहीं चलता। उपन्यास में सिर्फ एक या दो अतिरिक्त पृष्ठ जोड़ कर इसका बेहतरीन अंत दिखाया जा सकता था, पर पता नहीं ऐसा क्यों नहीं किया। उपन्यास का अगर आगे कोई भाग भी है तो उसका कहीं को वर्णन नहीं है।
ओमप्रकाश शर्मा जी का एक उपन्यास 'जगत और चंपा डकैत' पढा था उसमें भी यही समस्या थी। आधे-अधूरे कथानक के साथ उपन्यास समाप्त। कहानी का कहीं कोई उचित ढंग से समापन नहीं।
'सुल्तान नादिर खाँ' उपन्यास का कथानक बहुत अच्छा है, अंत की ओर अग्रसर भी है लेकिन कोई सार्थक अंत नजर नहीं आता।
फिर भी उपन्यास पठनीय और रोचक कहा जा सकता है। कहीं कोई बोरियत नहीं है।
*यासमीन के विषय में जानने के लिए राजेश सीरिज का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'शंघाई की सुंदरी' पढिये।
उपन्यास- सुल्तान नादिर खाँ
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा
आवरण- एम. ए. परवेज
प्रकाशक- आरती पॉकेट बुक्स
पृष्ठ - 116
मेरे द्वारा पढे गये ओमप्रकाश शर्मा जी के अन्य उपन्यास
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
सुल्तान नादिर खाँ- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
सुंदरता कभी-कभी अभिशाप बन जाती है।
और यासमीन के लिए तो सुंदरता अभिशाप बन ही गई थी। यह चीनी युवती कुछ वर्ष पहले शंघाई की सुंदरी कहलाती थी।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी का उपन्यास 'सुलतान नादिर खाँ' पढा। प्रथम दृष्टि में यह कोई ऐतिहासिक उपन्यास नजर आता है लेकिन यह न तो ऐतिहासिक उपन्यास है और न ही ऐतिहासिक पात्र है। यह पूर्णतः एक काल्पनिक और मनोरंजन की दृष्टि से लिखा गया रोचक उपन्यास है।
यह कहानी है यासमीन नामक एक स्त्री की। जो अति सुंदर है और यही सुंदरता उसके लिए अभिशाप बन जाती है। शंघाई की यासमीन कुछ षडयंत्रों से बच कर चीन छोड़कर भारत आती है। यहाँ वह जासूस राजेश और जगत से टकराती है। अजीब थी वह सुंदरी। पहले राजेश की प्रतिद्वंदी थी और फिर राजेश से प्रणय निवेदन कर बैठी।* (पृष्ठ-04)
लेकिन यासमीन का दुर्भाग्य यहा भी उसका पीछा नहीं छोड़ता। रजतपुरी में से कुछ अनजान लोगों ने उसे अपहृत करके अचेत अवस्था में यान पर चढा दिया....(पृष्ठ-04)
एक था कासिम।
"तो तुम हो कासिम।"
"कोई ऐतराज?"
"औरतों के व्यापारी..... शैतान। सुना है भले घर की औरतें तुम्हारे डर से बाहर नहीं निकलती?" (पृष्ठ-06)
कासिम स्वयं जे बारे में भी यही कहता है-
पहले में औरतों से घृणा करता था फिर औरतों का व्यापार करने लगा। (पृष्ठ-28)
कासिम मानवता का दुश्मन है।
कासिम यासमीन का भी तो दुश्मन है।
औरतों का व्यापारी और मानवता शत्रु एक दिन यासमीन का अपहरण करवा लेता है। और उसे पहुंचा देता है माण्डा के सुल्तान नादिर खाँ के पास। नादिर खाँ औरतों का रसिया। स्त्रियाँ अब उसके लिए भोग्य कम और खिलौना अधिक थी। (पृष्ठ-44)
नादिर खाँ के हरम में सौ से भी ज्यादा औरते हैं।
ऊंची दीवारों से घिरा हुआ यह शाही बेगमात का आवास गृह अच्छी खासी जेल के समान था। हर बेगम की अपनी एक कोठरी थी। बस एक कोठरी। (पृष्ठ-68)
और यासमीन की किस्मत उसे यहाँ ला पटकती है।
जासूस मित्र जगत, राजेश और जयंत भी मानवता के शत्रु का पीछा करते-करते माण्डा पहुंच जाते हैं। उनका साथ देते है जासूस ताऊ, ताऊ अर्थात काहिरा के भूत की तरह प्रसिद्ध जासूस इमामुद्दीन (पृष्ठ-35) और मांडा का क्रांतिकारी नसीर।
यहाँ से आरम्भ होता है एक रोचक खेल। यासमीन जहां कासिम को सबक सिखाना चाहती है वहीं वह सुल्तान की कैद से आजाद भी होना चाहती है। पर उसकी किस्मत- खूब थी यासमीन की किस्मत भी। आपदाओं के साथ, विपदाओं के साथ किस्मत आगे-आगे दौड़ रही थी और उसका भाग्योदय बार-बार पीछे रह कर चूक जाता था। (पृष्ठ-111)
नसीर एक क्रांतिकारी संगठन का प्रमुख है जो मांडा की जनता को लम्पट सुल्तान नादिर खाँ के राजतंत्र से मुक्त करवाना चाहता है।
जयंत, राजेश और जगत तीन तो कासिम का पीछा करते-करते मांडा आ पहुंचते हैं।
ताऊ इमामुद्दीन भी भारतीय जासूसों से आ मिलता है।
जब सभी मांडा में एकत्र होते हैं तो घात-प्रतिघात का खेल चलता है।
- कौन जीता और कौन हारा?
- किसने क्या चाल चली?
ऐसे अनेक रोचक घटनाओं, प्रश्नों और प्रसंगों को तो जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास 'सुल्तान नादिर खाँ' को पढकर ही जाना जा सकता है।
उपन्यास में मांडा अच्छा और रोचक वर्णन मिलता है। चाहे यह सब काल्पनिक है पर वहाँ का जो चित्रण है वह पाठकों को आकृष्ट करने में सक्षम नजर आता है। विशेषकर मांडा की सराय का घटनाक्रम।
उपन्यास का यह कथन मुझे सत्य के बहुत नजदीक लगा-
इंसान में इंसान का खून पीने की आदत पुरानी है और वह आदत मिट नहीं सकती। (पृष्ठ-113)
प्रस्तुत उपन्यास एक औरतों के व्यापारी और एक सुल्तान पर आधारित है। कैसे जासूस मित्र इन मुसीबतों से औरतों को बचाते हैं।
उपन्यास की सबसे बड़ी कमी है उसका अंत। उपन्यास में अंत का कहीं कुछ पता ही नहीं चलता। उपन्यास में सिर्फ एक या दो अतिरिक्त पृष्ठ जोड़ कर इसका बेहतरीन अंत दिखाया जा सकता था, पर पता नहीं ऐसा क्यों नहीं किया। उपन्यास का अगर आगे कोई भाग भी है तो उसका कहीं को वर्णन नहीं है।
ओमप्रकाश शर्मा जी का एक उपन्यास 'जगत और चंपा डकैत' पढा था उसमें भी यही समस्या थी। आधे-अधूरे कथानक के साथ उपन्यास समाप्त। कहानी का कहीं कोई उचित ढंग से समापन नहीं।
'सुल्तान नादिर खाँ' उपन्यास का कथानक बहुत अच्छा है, अंत की ओर अग्रसर भी है लेकिन कोई सार्थक अंत नजर नहीं आता।
फिर भी उपन्यास पठनीय और रोचक कहा जा सकता है। कहीं कोई बोरियत नहीं है।
*यासमीन के विषय में जानने के लिए राजेश सीरिज का पूर्व प्रकाशित उपन्यास 'शंघाई की सुंदरी' पढिये।
उपन्यास- सुल्तान नादिर खाँ
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा
आवरण- एम. ए. परवेज
प्रकाशक- आरती पॉकेट बुक्स
पृष्ठ - 116
मेरे द्वारा पढे गये ओमप्रकाश शर्मा जी के अन्य उपन्यास
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
सुल्तान नादिर खाँ- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा |
उपन्यास रोचक लग रहा है। मिलता है तो पढ़ता हूँ।
ReplyDeleteकहानी रोचक है,पर उपन्यास का कोई अंत नहीं है। शायद आगे कोई और भाग हो सकता है, हालांकि उपन्यास में कहीं भाग का वर्णन नहीं है।
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