Thursday 1 February 2018

96. बसेरा- कुशवाहा कांत

एक प्रेम कहानी, एक दर्द कहानी।
बसेरा- कुशवाहा कांत, सामाजिक उपन्यास, पठनीय।
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कुशवाहा कांत का उपन्यास बसेरा दो युवा दिलों की प्रेम कहानी है। जो अपना प्रेम 'बसेरा' बसाना चाहते हैं। प्रेम और उसमें आयी परेशानियां, गलतफहमियां और संघर्ष की कहानी है 'बसेरा'।
        एक थी शमीम। जी हाँ! उसका नाम था शमीम, फूल सी कोमल, चन्द्रमा सी उज्ज्वल, मधु सी मिठास भरी एवं मदिरा सी मादक थी वह। यौवन मद से परिपूर्ण उसका ललितांग शरीर देखने वाले पर गजब ढाता था। (पृष्ठ-03) 
         एक था मिस्टर जयंत। सेठ केशवदास का एकलौता पुत्र, जिसे शमीम से प्यार हो जाता है।
एक थे सेठ केशव दास। शहर के सबसे बङे रईस एवं सेठ थे। बङी-बङी जगहों में उनकी पहुंच थी, दूर-दूर तक उनका नाम था, मगर जरा वे क्रोधी स्वभाव के थे। (पृष्ठ-12)
  मिस्टर जयंत को शमीम से प्यार था और यह प्यार सेठ केशवदास को रास नहीं आया। और वह जयंत को समझाते भी हैं  "मैं नहीं चाहता कि तू अपना पवित्र धर्म छोङकर, अन्य धर्मावलम्बियों के संपर्क में रहे।" (पृष्ठ-42)
"मैं हिन्दू हूँ,  समाज का नायक हूँ, दुनियाँ की आँखों में आँखों में प्रतिष्ठित हूँ- मैं कैसे सह सकता हूँ कि मेरा बेटा एक यवन दुहिता का पाणिग्रहण करे। (पृष्ठ-112)
  इस बात का डर शमीम को भी होता है, इसलिए तो वह जयंत से कहती है- "मेरे सनम‌....मुझे धोखा  न करना...।"- (पृष्ठ-43)
लेकिन जयंत को अपने प्यार पर विश्वास है, वह शमीम को विश्वास दिलाता है, -" नहीं, नहीं शमीम। उस अंधेरे में ही हमारे प्रेम की ज्योति रास्ता दिखायेगी। हताश होने की बात नहीं।"(पृष्ठ-49)
      लेकिन इस प्रेम कहानी में एक पात्र और भी है, और वह है शिराज।  जो शमीम से कहता है -"मैं देख रहा हूँ कि आपके दिल में उस आवारा जयंत के लिए मुहब्बत पैदा होती जा रही है- यह आगे चलकर खतरनाक साबित होगी।"(पृष्ठ-52)
शमीम भी स्पष्ट कह देती है- "मुहब्बत में तकलीफ और खतरनाक बातों के लिए जगह नहीं है‌ मिस्टर शिराज।"-(पृष्ठ-52)
और एक थे जलालुद्दीन मिर्जा। शमीम के पिता। सेठ केशवदास के परम मित्र। जिनके लिए दोस्ती प्रथम है। दोस्त कितना प्यारा अलफाज है..जान देकर भी खरीद लेने लायक है यह चीज। (पृष्ठ-83).  
दुनिया की कोई भी ताकत मुझे केशव के खिलाफ नहीं ले जा सकती। मैं अपने सारे आराम की कुर्बानी कर सकता हूँ, उस दोस्त के लिए। (पृष्ठ- 83)
    जयंत और समीम का प्यार सेठ केशवदास को रास नहीं आता। दोनों के बीच धर्म और समाज की एक मजबूत दीवार आ जाती है। मजबूरन उसे एक ऐसा कदम उठाना पङता है और वह जा पहुंचता है मिसेज वर्मा तक। मगर मिसेज वर्मा का चरित्र जयंत के लिए अगम था, दुर्भेद्य था, वह समझ ही नहीं पाता था कि यह स्त्री क्या है। (पृष्ठ-84)
- क्या जयंत और समीम मिल पाये?
- क्या हुआ केशवदास के हिंदुत्व का?
- कैसी रही केशवदास और मिर्जा की दोस्ती?
- क्या भूमिका रही शिराज की?
- क्या अंत हुआ इस प्रेम कहानी का?
- कौन थी मिसेज वर्मा?
               इन प्रश्नों के उत्तर तो कुशवाहा कांत का उपन्यास बसेरा ही दे सकता है।
   ‌यकीन मानें है प्रेम कहानी अन्य प्रेम कहानियाँ से कुछ अलग है और इसका समापन तो सहृदय पाठक को भावुक कर देगा।
भाषा-
अगर उपन्यास की भाषा शैली की बात करें तो इसकी भाषा शैली में जहाँ एक तरफ संस्कृतनिष्ठ शब्द प्रयुक्त हुये हैं वहीं आंग्ल भाषा के शब्द भी प्रयुक्त हुये हैं। जहाँ-जहां संस्कृत शब्दावली का प्रयोग किया गया है वहाँ -वहाँ भाषा शैली में निखार आ गया है-
- मानो साक्षात धवल-चन्द्र, व्योम मार्ग भूलकर इस भूखण्ड पर देदीप्यमान हो उठा हो।
- यह शस्यश्यामलता भूमि शुन्याकार आकाश मण्डल का चुम्बन करती है - वहीं, क्षितिज कर उस पार। (पृष्ठ-81)
कथन-
उपन्यास के कथन पाठक के हृदय को प्रभावित करने वाले हैं।
- औरतों के दिल की गहराई तक पहुंचना ..ताकत से बाहर की बात है। (पृष्ठ-41)
     कुशवाहा कांत का उपन्यास बसेरा एक प्रेम कहानी है। दो युवा हृदय जो प्रेम में मस्त हैं लेकिन समाज के बँधन इस प्रेम को स्वीकार नहीं ।
  उपन्यास बहुत ही रोचक और पठनीय है। पाठक के हृदय को छू लेने वाली मार्मिक रचना है।   
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उपन्यास- बसेरा
लेखक- कुशवाहा कांत
प्रकाशक- डायमण्ड पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-    141
मूल्य-

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