Tuesday 11 July 2023

569. वह कौन था- कर्नल रंजीत

किस्सा चार सौ साल पुराने अभिशाप का
वह कौन था- कर्नल रंजीत

हिंदी जासूसी साहित्य में कर्नल रंजीत का एक अलग ही अंदाज रहा है। इब्ने सफी के बाद कर्नल रंजीत ने ही वह लोकप्रियता प्राप्त की और अपना एक विशेष अंदाज बनाया था।
कर्नल रंजीत cornol ranjeet novel pdf

     कर्नल रंजीत के उपन्यासों का नायक मेजर बलवंत है और उसके साथ उसके साथी और प्रिय कुत्ता क्रोकोडायल होता है।
  प्रस्तुत उपन्यास 'वह कौन था' एक रहस्य कथा है, जिसमेम एक जमींदार परिवार की कथा,कहां लगभग चार सौ साल से एक रहस्य बराबर चल रहा है और वह रहस्य है 'ठाकुर' की उपाधि प्राप्त व्यक्ति की हत्या का होना और यह पिछ्ले चार सौ साल से हो रहा है। क्या यह संभव था? अगर संभव था तो कैसे?
   नमस्ते, मैं गुरप्रीत सिंह, श्रीगंगानगर, राजस्थान से पाठक मित्रों के लिए लेकर उपस्थित हूँ कर्नल रंजीत के उपन्यास 'वह कौन था' की समीक्षा।
      प्रसिद्ध जासूस मेजर बलवंत अपने मित्र विनोद मल्होत्रा (परमाणु रिएक्टर की एक इकाई के प्रभारी) के साथ घर पर बातचीत में व्यस्त था। तभी वहाँ एक व्यक्ति अपनी व्यथा के साथ उपस्थित होता है-
उसने तपाक से हाथ मिलाने के बाद स्वयं ही अपना परिचय दिया -"मैं ठाकुर हिम्मतसिह हूं। यहां से पचहत्तर मील की दूरी पर मेरी जागीर है। चार गांव साथ-साथ मिले हुए हैं और में उनका मालिक हूँ, और जिस गाँव में मेरी हवेली है उसका नाम विक्रमगढ़ है। मैं मेजर बलवन्त से मिलना चाहता हूं।
"फर्माइए, मैं हाजिर हूं।” मेजर ने उसे कुर्सी पर बैठने का संकेत करते हुए कहा ।

    तो विक्रमगढ के ठाकुर हिम्मत सिंह ने उसके परिवार पर एक अभिशाप है जो चार सौ साल से उनके परिवार का पीछा कर रहा है। और अभिशाप यह है की उनके परिवार के बड़े सदस्य की हत्या हो जाती है। कुछ माह पूर्व ठाकुर हिम्मत सिंह के बड़े भाई की हत्या कर दी गयी और अब हवेली में एकमात्र वही बड़े सदस्य है और उन्हीं के पास ठाकुर की उपाधि है‌।
  ठाकुर साहब ने एक और रोचक बात बताई-
"...जब हमारे खानदान में से किसी की मौत आती है, तो गिद्ध की चीख सुनाई देती है,  हो सकता है अभिशाप और गिद्ध में कोई सम्बन्ध हो ।”
"मैं जानना चाहता हूं कि आपके खानदान को यह शाप किसने और क्यों दिया था ?" मेजर ने पूछा ।

       तो इस तरह अपनी जान बचाने और इस रहस्य को सुलझाने के लिए ठाकुर हिम्मत सिंह मेजर बलवंत की‌ मदद चाहते हैं। और मेजर बलवंत इस मदद के लिए तैयार हो जाता है।
       मेजर बलवंत अपने मित्र विनोद मल्होत्रा और सहयोगी सोनिया तथा अशोक के साथ ठाकुर की हवेली जा पहुंचते हैं। उस हवेली में ठाकुर के साथ उसका विश्वसनीय नौकर नंदू बाबा रहता है।
    यहाँ से मेजर अपने साथियों के साथ ठाकुर के बड़े भाई की मृत्यु वाली जगह, जंगल से अन्वेषण आरम्भ करता है। तीन माह पूर्व हुयी उस हत्या का रहस्य जल्द ही खुल जाता है लेकिन हत्यारा कौन है यह स्पष्ट नहीं होता।
    हवेली के आसपास कोई ज्यादा घना क्षेत्र नहीं दर्शाया गया। नजदीक में एक 'यजनीक प्रोविजन स्टोर'है, जहाँ मिस्टर यजनिक और उसकी बहन मृदुला रहते हैं। हवेली से कुछ दूर ठाकुर साहब की प्रेमिका प्रमिला चौहान और उसके बाप की जागीर है।
    यहाँ एक हल्का सा ट्विस्ट यह भी चलता है कि प्रमिला चौहान को संशय होता है ठाकुर साहब का रुझान मृदुला की ओर है, जबकि ठाकुर साहब अपने मौत के डर से परेशान हैं।
   जैसे ही मेजर बलवंत की खोज आगे बढती है वैसे ही ठाकुर हिम्मत सिंह पर हमले भी बढ जाये हैं। वहीं जंगल में गिद्ध भी चिल्लाने लगता है। एक- दो बार कुछ संदिग्ध मेजर के हाथ आते- आते बच जाते हैं। एक-दो बार तो रात को हवेली में भी अज्ञात लोग घुस जाते हैं, जो वहाँ से कुछ कागजात चुराना चाहते हैं।
    वहीं हमलों का रुख ठाकुर से घूम कर उसकी प्रेयसी प्रमिला और उसके बाप तक भी पहुंच जाता है लेकिन बहुत कुछ चाहकर भी मेजर असली अपराधी तक नहीं पहुंच पाता।
   हाँ, अंत में अपराधी को समाने आना ही होता है और यहाँ भी अपराधी सामने आता है लेकिन वह एक कार दुर्घटना के चलते सामने आता न की मेजर के बुद्धिकौशल से।
  'वह कौन था' एक थ्रिलर और रहस्य से परिपूर्ण उपन्यास है। जिसका आरम्भ ही पाठक को प्रभावित करने लग जाता है। लेकिन उपन्यास का अंत उनका अच्छा प्रतीत नहीं होता। हाँ,उपन्यास की घटनाएं काफी रोचक हैं। जैसे गिद्ध का चिल्लाना, रणयोद्धाओं के कपड़े पहन कर हमला करना, सुरंगों में अपराधियों का गायब हो जाना, कुछ रहस्यमयी लोगों का होना जैसे प्रसंग पाठक को प्रभावित करते हैं।
  सब से ज्यादा यह बात प्रभावित करती है की चार सौ साल तक कोई कैसे एक ही परिवार का शत्रु हो सकता है, कोई कैसे चार सौ साल तक एक ही परिवार के बड़े सदस्य का कत्ल कर रहा है, जैसे किसी की मृत्यु से पूर्व गिद्ध चिल्लाता है।
  बात करें उपन्यास के शीर्षक की 'वह कौन था' तो यह शीर्षक उपन्यास के अनुसार कोई ज्यादा प्रासंगिक नहीं है।
  उपन्यास में ठाकुर विक्रम सिंह और उसका नौकर नंदू बाबा ही हवेली में‌ दो मुख्य व्यक्ति हैं। हवेली के एक बंद कमरे में से कोई चोर महत्वपूर्ण कागज चुराना चाहता है। पता नहीं वह रात को 'राजा-महाराजों के रणभूमि में पहनने वाले वस्त्र' पहन कर रात को क्यों चोरी करना चाहता है जबकि वह चोर दिन में भी उस से ज्यादा आसानी से वह चोरी कर सकता है।
मेजर बलवंत के चरित्र की बात करें तो वह एक तेज दिमाग व्यक्ति है और हर कठिन कार्य को सहजता से हल कर लेता है।  प्रस्तुत उपन्यास में ऐसे कई घटनाक्रम है जो मेजर बलवंत हल करता है।
    उपन्यास में कहीं-कहीं मेजर की बुद्धि, कार्यशीलता का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।
एक जगह मेजर अपने साथी को कहता है कि जाओ सड़क पर देखकर आओ किसी आदमी,कार या घोड़े के निशान तो नहीं।
उसका साथी आकर उत्तर देता है वहाँ किसी तरह के कोई निशान नहीं तब मेजर बलवंत का उत्तर था, वह आदमी चालाक था, घोड़ा दूर बांध कर आया था।
   जब यह कन्फर्म ही नहीं की वह अज्ञात व्यक्ति किस पर सवार होकर आया या पैदल आया, तब घोड़ा दूर बांधने वाली बात ‌निरर्थक प्रतीत होती है।
ऐसे एक दो और भी घटनाक्रम है।
उपन्यास का समापन थोड़ा निराशा प्रदान करता है। क्योंकि उपन्यास के अंत में जो घटित होता है उसमें मेजर बलवंत का कोई योगदान नहीं था, वह मात्र एक दुर्घटना थी।
अगर आप कर्नल रंजीत के उपन्यास पसंद करते हैं तो यह उपन्यास काफी रोचक और मनोरंजक है। एक अनोखे रहस्य में‌ लिपटी उपन्यास की कहानी पाठक को प्रथम पृष्ठ से ही प्रभावित कर लेती है।‌

उपन्यास- वह कौन था
लेखक -   कर्नल रंजीत
पृष्ठ-        150
प्रकाशक-  अभिनव पॉकेट बुक्स

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