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Thursday, 3 November 2022

542. ब्लैकमेल- संतोष पाठक

तलाश ब्लैकमेलर और हत्यारे की
ब्लैकमेल- संतोष पाठक

'सुकन्या श्रीवास्तव!’ - मैंने सिगरेट का एक गहरा कश खींचा - पालीवाल प्रोडक्शन हाउस की मार्केटिंग हैड। एक ऐसी लड़की जो सात साल पहले मर्डर चार्ज में चार महीने की सजा भुगत चुकी थी। जो अपने बॉस के बेटे के साथ शादी करने जा रही थी। ऐसी लड़की को कोई ब्लैकमेल कर रहा था। और ऐसे ग्राउंड पर कर रहा था, जो शादी वाला मामला न आ फंसा होता तो सुकन्या एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल चुकी होती। पुलिस में कंप्लेन भी दर्ज करा देती तो कोई बड़ी बात नहीं होती। मगर अभी ब्लैकमेलर के हाथों की कठपुतली बनना उसकी मजबूरी थी। (किंडल से)
     उपन्यासकार संतोष पाठक वर्तमान में उपन्यास साहित्य का वह ज्वलंत सितारा है जिसका प्रकाश निरंतर फैल रहा है। जिस तरह से संतोष पाठक जी लेखन कर रहे हैं, उपन्यास प्रकाशित कर रहे हैं वह स्वयं में एक कीर्तिमान है।
   वर्तमान उपन्यास साहित्य में मर्डर मिस्ट्री लेखन छाया हुआ है। प्रस्तुत उपन्यास भी मर्डर मिस्ट्री रचना है,जिसका आधार चाहे 'ब्लैकमेल' दिखायी देता है, पर ऐसा है नहीं।
  कहानी है प्राइवेट डिटेक्टिव विक्रांत गोखले की। जिसके पास एक कन्या आती है अपना केस लेकर।
“मैं डॉक्टर हूं मैडम और आप पेशेंट हैं। मर्ज छिपायेंगी तो निदान कैसे कर पाऊंगा? उन हालात में क्या बीमारी बढ़ती नही चली जायेगी?”
“नहीं छिपाने की कोई मंशा नहीं है, वरना मैं यहां आती ही क्यों?”
“दैट्स गुड, बताइये प्रॉब्लम क्या है?”
“मुझे कोई ब्लैकमेल कर रहा है।”
            यह लड़की है सुकन्या श्रीवास्तव। जो की एक प्राइवेट फर्म में काम करती है और उसकी शादी उसी फर्म के मालिक के बेटे से होने जा रही है। और कन्या सुकन्या श्रीवास्तव को डर था कहीं ब्लैकमेलर उसका अतीत उसके होने वाले ससुराल वर्ग के सामने न खोल दे। इसलिए वह चाहती थी डिटेक्टिव विक्रांत गोखले उस ब्लैकमेलर का पता लगाये।
     और डिटेक्टिव विक्रांत गोखले ने भी यह केस स्वीकार कर लिया। और फिर आरम्भ हुयी  उस कथित अज्ञात ब्लैकमेलर की खोज।
पर यह क्या?
अभी ढंग से इन्वेस्टिगेशन भी आरम्भ नहीं हुयी और एक कत्ल भी आरम्भ हो गये।
विक्रांत गोखले ने क्या कहा- मेरे साथ ऐसा कोई पहली बार नहीं हो रहा था जब एक मामूली सा केस लगातार उलझता चला जा रहा हो। अभी ब्लैकमेलिंग वाले इस केस की ही बात करूं तो चौबीस घंटे भी नहीं बीते थे और एक मर्डर तथा दूसरा नियर मर्डर की वारदात घटित हो चुकी थी। आगे कोई और भी दुनिया से निकल लेता तो कम से कम मेरे लिए कोई आश्चर्य वाली बात नहीं होती।
     और फिर तो जैसे-जैसे विक्रांत गोखले की जाँच आगे बढती गयी तो एक के बाद एक कत्ल होते गये। ब्लैकमेलर कहानी एक अच्छी खासी मर्डर मिस्ट्री में बदल गयी।
    सीधा सादा केस खामख्वाह ही उलझा जा रहा था। कोई सिर पैर समझ में नहीं आ रहा था। कोई ढंग का सस्पेक्ट तक नहीं था पूरी कहानी में, जबकि कत्ल तीन हो चुके थे। कौन था कातिल? मुझे जवाब नहीं सूझा।
लाश देखकर तो मेरी सारी कैलकुलेशन ही खराब हो गयी। कहां तो मैं उसे ब्लैकमेलर और हत्यारा दोनों समझ रहा था और कहां अब वह खुद कत्ल हो गया था।

   लेकिन अंततः स्वयं मरते-मरते बचा विक्रांत गोखले इस रहस्य को सुलझा लेता है और वास्तविक अपराधी को कानून के रखवाले लेडी सिंघम और एस आई नरेश चौहान के हवाले कर देता है।
     कहानी चाहे एक ब्लैकमेल के केस आरम्भ होती है परंतु यह एक शुद्ध मर्डर मिस्ट्री है। सुकन्या मुख्य पात्र है जो इस कहानी का आरम्भ करती है। जिसे ब्लैकमेलर की तलाश है। और इस कार्य के लिए वह डिटेक्टिव विक्रांत गोखले की सहायता लेती है।
   सुकन्या की शादी अपने बाॅस के पुत्र अनिकेल पालीवाल से होने जा रही है। अनिकेल पालीवाल की‌ पूर्व गर्लफ्रेंड अंकिता सबरवाल भी उसी बिल्डिंग में रहती है जहाँ सुकन्या श्रीवास्तव रहती है।
   अंकिता सबरवाल का एक खास दोस्त है अरबाज। अरबाज वह पात्र है जो हर किसी की जन्म कुण्डली बनाकर तैयार रखता है। जिसके बारे में एक पात्र ने कहा था- पिद्दी भर का छोकरा और सबकी जिंदगी में घुसा पड़ा है।
उपन्यास का यह पात्र प्रभावशाली है, पर इसकी भूमिका कम ही है। 
  वहीं अंकिता सबरवाल के कुछ और दोस्त हैं आनंद मलिक, रजत शुक्ला, सुनील भारद्वाज। जिनमें से रजत शुक्ला और सुनील भारद्वाज तो अनिकेल पालीवाल की फर्म में सुकन्या श्रीवास्तव के साथ काम करते हैं। लेकिन जब विक्रांत गोखले इन्वेस्टिगेशन पर निकलता है तो अंकिता सबरवाल और उसके दोस्तों की जिंदगी के कुछ काले पृष्ठ सामने आने लगते हैं। लेकिन वहीं सुकन्या श्रीवास्तव का कहना है की वह स्वयं तो इस शहर की है नहीं, तथा अंकिता और उसके दोस्तों की गत जिंदगी से उसका कोई भी संबंध नहीं, फिर वे लोग उसे ब्लैकमेल क्यों करेंगे।
     लेकिन जब विक्रांत गोखले की जाँच आगे बढती है और शक की सुई जिस पर अटकती वह भी एक दिन लाश में बदल जाता है।
  एक तरफ तो विक्रांत गोखले को ब्लैकमेलर का पता लगाना और दूसरी तरफ उस अज्ञात हत्यारे का भी।
  उपन्यास में कुछ बातें बहुत रोचक लगी।
-एक तो अरबाज का किरदार। छोरा है भी अजीब पात्र। हर कहीं घुसा हुआ है।
- द्वितीय एक दृश्य
-  जब विक्रांत गोखले पहली बार रजत शुक्ला से मिलने जाता है। वाह क्या दृश्य है, क्या लिखा है। बहुत ही हास्यजनक दृश्य है वह।
  उपन्यास के आरम्भ में संतोष पाठक जी द्वारा लिखा गया एक लेखकीय है। इस उपन्यास का, उपन्यास जगत का एक रोचक अंश है यह। जी हाँ, उपन्यास जगत का। हिन्दी जासूस उपन्यास साहित्य में ऐसे आर्टिकल/ लेखकीय की कमी है, और इस कमी को लेखक महोदय ने पूर्ण किया है।
   लेखकीय का अर्थ है आप रचना संबंधित जानकारी शेयर करना, चर्चा करना न की जासूसी उपन्यास में 'गाजर- मूली' के मूल्य पर चर्चा करना।
    'हिंदी साहित्य का इतिहास' (आचार्य रामचंद्र शुक्ल) का जन्म ऐसे ही हुआ है, जो आज हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर है।
      
     अब उपन्यास के कमजोर पक्ष पर चर्चा-
उपन्यास का कथानक बिलकुल सामान्य है, कुछ भी नयापन नहीं है। साधारण सी मर्डर मिस्ट्री है। हाँ, लेखन महोदय ने कहीं भी नीरसता महसूस नहीं होने दी।
उपन्यास का आरम्भ वही परम्परागत ढंग से होता है।
विक्रांत गोखले का अपने आॅफिस में प्रवेश। महिला सेक्रेटरी के साथ नोकझोक। सेक्रेटरी द्वारा एक खूबसूरत लड़की के फोन आने का जिक्र करना, उस पर चुटकी लेना। फिर उसी फोन वाली लड़की का प्रवेश। उस द्वारा केस पर चर्चा करना इत्यादि।
  यह एक औसत  उपन्यास है, जिसे एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास-    ब्लैकमेल
लेखक  -    संतोष पाठक
फॉर्मेट-      eBook on kindle
संतोष पाठक जी के अन्य उपन्यासों की समीक्षाएं

4 comments:

  1. Wah bhut khub shandar review👍

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  2. बढ़िया लिखा

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  3. शानदार समीक्षा।

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  4. रोचक लेख। उपन्यास के प्रति उत्सुकता जगाता है। लेखकीय की परिभाषा से सहमत नहीं। लेखकीय लेखक का पाठक के साथ संवाद होता है। वह संवाद किसी भी विषय पर हो सकता है। उसका उपन्यास से जुड़ा होना कोई जरूरी नहीं है। अगर लेखक कुछ रोचक जानकारी अपने पाठकों से इस बाबत साझा करना चाहे तो उसमें बुराई भी नहीं है क्योंकि पाठक के पास उसे पढ़ने न पढ़ने का विकल्प होता ही है।

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