Thursday 17 November 2022

543. उड़न छू- अनिल मोहन

आपका दिमाग भी हो जायेगा....
उड़न छू- अनिल मोहन

  पाठक मित्रों से सूचना मिली थी की अहमदाबाद में एक दो जगह लोकप्रिय उपन्यास मिलते हैं। काम से आबू रोड (राजस्थान) गया हुआ था। रविवार (13.11.2022) को समय निकाल कर अहमदाबाद भी जा पहुंचा। वहाँ गुजरी बाजार (साबरमती नदी के पास) और बैंक आॅफ बड़ौदा के सामने कुछ उपन्यास मिलते हैं। वहाँ से कुछ उपन्यास खरीदे, जिनमें से अनिल मोहन जी का उपन्यास 'उड़न छू' भी शामिल है।
   लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में एक समय तीन लेखक ही सक्रिय थे, या बाजार में जिनके उपन्यास बिकते थे। वेदप्रकाश शर्मा, सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक और अनिल मोहन । तीनों का लेखन पूर्णतः अलग-अलग तरह का था, तीनों के पाठक भी अलग-अलग नजर आने लगे।
आबू रोड़ से रायसिंहनगर,  यात्रा का साथी उपन्यास
  अनिल मोहन जी ने अपने कई पात्र खड़े किये हैं जिनमें से एक है अर्जुन भारद्वाज, जो एक प्राइवेट डिटेक्टिव है। (हालांकि इस उपन्यास में‌ अर्जुन का कोई परिचय नहीं दिया गया)
प्रस्तुत उपन्यास 'उड़न छू' अर्जुन भारद्वाज सीरीज का उपन्यास है। जिसमें उसके साथ इंग्लैंड का प्रसिद्ध जासूस बॉण्ड भी है- जेम्स बॉण्ड।- वो लम्बा, ऊँचा कद, नीली आँखें, लाल सुर्ख चेहरा, होंठ सिगरेट पीने की वजह से हल्के बैंगनी। (पृष्ठ-07)
  अब चर्चा कथानक पर-भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक विनायक अतरिषी जी ने नैनो 1000 टेक्नोलॉजी मिसाइल बनाने का प्रयोग किया है। उनके प्रयोग/ फार्मूले को प्राप्त करने के विभिन्न देशों के जासूस सक्रिय होते हैं। जिनमें मुख्यतः इंग्लैंड का जेम्स बॉण्ड है।  भारत में जेम्स बॉण्ड की टक्कर अर्जुन भारद्वाज से होती है और अर्जुन के साथ होता है इंस्पेक्टर ...सिंह राजपूत ।
हालांकि अनिल मोहन जी के उपन्यास 'कुएं का मेंढक' से उपन्यास 'उड़न छू' का विशेष संबद्ध है। क्योंकि 'कुएं का मेंढक' में अंतरिषी और अर्जुन इंग्लैंड में जेम्स बॉण्ड को गहरी मात देते हैं। उसी का बदला लेने के लिए इस बार बॉण्ड साहब एक चाल चलते हैं। यही चाल पूरे उपन्यास और पाठकों के दिमाग का दही कर देती है।
    बॉण्ड भारत में अर्जुन भारद्वाज, अतरिषी और अन्य देश के जासूसों का पत्र लिखकर एक फिल्म निर्माण की बात करता है, जिसका फिल्मांकन भारत में होना है। वहीं अतरिषी को लिखे पत्र में बॉण्ड यह भी लिखता है की वह इस फिल्म के माध्यम से उन्हें इंग्लैंड ले जायेगा। और फिल्म भी क्या थी, नकली फिल्म में असली घटनाएं होनी थी। जैसे कत्ल के दृश्य में वास्तविक कत्ल।  शेष उपन्यास में पाठक उपन्यास और फिल्म में ही उलझ कर रह जाता है।
    प्रस्तुत उपन्यास को मुख्यतः निम्नलिखित भागों में बांट सकते हैं।
प्रथम जेम्स बॉण्ड का इंग्लैंड में चित्रण। वहाँ की घटनाएं और बॉण्ड के कारनामे ।
द्वितीय भारत में बस काण्ड। जहाँ बस में बम लगा होता है और अर्जुन भारद्वाज और बॉण्ड बस को बचाते हैं।
तृतीय अर्जुन की प्रेमिका नीना का अपहरण।
और चौथा भाग अंटार्कटिका में संघर्ष
पांचवां- उपन्यास का क्लाइमैक्स, फिल्म का क्लाइमैक्स और दिमाग का दही। (हालांकि दिमाग का दही पूरे उपन्यास में ही होता है)
     पूरे उपन्यास में कहीं भी यह समझ में ही नहीं आता की कौनसा फिल्म का दृश्य है और कौनसा वास्तविक दृश्य है। जहाँ एक तरफ बात होती है की यह सब फिल्म के दृश्य हैं। हालांकि कहीं भी कैमरामैन, निर्माता, निर्देशक, कट- पैक अप जैसा कुछ नहीं। क्योंकि फिल्म बन नहीं रही बल्कि दर्शक सिनेमा घर में देख रहे हैं और पाठक उसे 'उड़न छू' के माध्यम से पढ रहे हैं।
    बस यही बात पाठक समझ नहीं पाता की किस दृश्य को फिल्म का माने और किस को वास्तविक। यही बात जब अमेरिकी राजदूत जेम्स बॉण्ड से कहता है की जो कत्ल तूने किये हैं उनका क्या होगा तो जेम्स बॉण्ड का उत्तर था मैं कह दूंगा यह फिल्म का दृश्य है।
"वाह! हम करें तो हकीकत...तुम करो तो फिल्म।"
(पृष्ठ-146) यह शब्द है अमेरिकी राजदूत डोनी पावेल के प्रति उत्तर में।
अरे भाई! कत्ल तो वास्तविकता में हुये हैं और तू कह देगा फिल्म का दृश्य है। जिन्होंने यह उपन्यास पढा है वह पाठक बताये की कब्बन मियां और उसके साथियों का कत्ल वास्तविक था या फिल्म का दृश्य?
   उपन्यास के कुछ और रोचक प्रसगों का वर्णन कर लेते हैं, जो समझ में ही नहीं आते। मानो जैसे लेखक ने मन बना लिया की इस बार तो सब ऐसा ही लिखना है जो पाठक की समझ में ही न आये।
एक दृश्य देखें-
'... का घुटना बॉण्ड को पड़ा और वह खुद ही पायलेट सीट से बाहर जा उड़ा। डायना भी साथ जा उड़ी।
आह...बाण्ड की चीख लंबी होती हवा में गूंज उठी। और इधर डायना के हाथ में बाहर की तरफ खुला दरवाजा आ गया और वो उसी पर ही दायें-बायें हिचकोले लेती झुलने लगी।
(पृष्ठ- 255)
     एक आदमी दरवाजे  से टकाराया और दरवाजा खुल गया।  ऐसे तो बस का दरवाजा भी नहीं खुलना और यह तो हवाई जहाज का है। खैर...
और यह डायना आखिर चीज क्या है? पता चले तो बताना। यह फिल्म की नायिका है, बॉण्ड की साथी या कुछ और?
    और सुनो बॉण्ड भाई, यह तुम्हारा इंग्लैंड नहीं है। यह भारत देश है भाई, यहाँ तुम्हारी बॉण्डगिरी नहीं चलेगी, यहाँ तो वही चलेगा जो लेखक चाहेगा।
   अच्छा, रुको पाठक मित्रो, यहाँ तो पात्र भी इतने स्वतंत्र हैं की कब क्या कर दें लेखक को भी नहीं पता। इतनी स्वतन्त्रता पहली बार किसी लेखक ने पात्रों को दी है।  अब अर्जुन को ही देख लो वह अंटार्कटिका जाता और साथ में नीना, राधा और विनायक अतरिषी को भी ले जाता। और तो और यह पात्र इतना स्वतंत्र है अपनी माँ सम्मान भाभी को भी शरीर की गर्मी दे देता है।
   फिर पैराशूट के भीतर ही राधा के जिस्म में गर्मी प्रदान करने लगा।(पृष्ठ-224)
      और तो और भाई तुम आप्रेशन के पश्चात अतरिषी का अंटार्कटिका क्यों ले गये। और तो और अपनी महबूबा को भी साथ लेकर घूम रहे हो। कब किस को भाभी को 'अंदर की गर्मी' दे देते हो पता ही नहीं चलता और साथ में कहते हो 'भाभी मेरी माँ' है। हमने जो भी किया वह परिस्थितिवश किया है। दूसरी तरफ तुम कहते हो हमें सब पहले से ही पता था कि आगे क्या होगा?
    और तो और  पूरे उपन्यास कहीं भी यह नहीं पता चलता की अर्जुन भारद्वाज है क्या? जिनको पहले से पता है उन पाठकों की बात नहीं कर रहा मैं।

उपन्यास साहित्य में अधिकांश लेखकों ने एक-दूसरे के पात्रों को लेकर उपन्यास लिखे हैं। लेकिन जब मैंने अर्जुन भारद्वाज को पढा तो सहसा मुझे नरेन्द्र नागपाल का 'अर्जुन नागपाल' याद आ गया। दोनों पात्र एक जैसे ही हैं, बस नाम में हल्का सा परिवर्तन है।
अनिल मोहन (भारद्वाज) जी ने अर्जुन के साथ अपना गोत्र लगा कर अर्जुन भारद्वाज बना दिया और नरेन्द्र नागपाल जी ने अपना गोत्र लगाकर 'अर्जुन नागपाल' बना दिया।
अन्य पात्रों में भी हल्का सा परिवर्तन किया गया है। काली - नरेन्द्र नागपाल उपन्यास पढें।

     बाकी रहने दो यार....
उपन्यास आप पढें। अगर पढी है तो बतायें यह आपको कैसी लगी। अगर नहीं पढी तो अब पढ लीजिए।
उपन्यास का शीर्षक 'उड़न छू' क्यों है? कहीं कुछ स्पष्ट नहीं है।
'उड़न छू' एक एक्शन उपन्यास है। जिसमें एक वैज्ञानिक के फार्मूले को प्राप्त करने की कोशिश विभिन्न देशों के मध्य चलती है। मुख्यतः यह टक्कर अर्जुन भारद्वाज और जेम्स बॉण्ड के मध्य होती है। 
       उपन्यास की कहानी इतनी उलझी है, इतनी अतार्किक है, इतनी असंबद्ध है की कहीं भी कुछ समझ ही नहीं आता। हालांकि पाठक आदि और अंत समझ सकता है,‌पर उपन्यास का प्रस्तुतीकरण इस तरह का है की एक अच्छा भला उपन्यास एक प्रयोग के चक्कर में पाठकों को घनचक्कर बना देता है।
         उपन्यास पढना न पढना पाठक का इच्छा पर है पर मुझे यह उपन्यास कोई विशेष नहीं लगा।
उपन्यास-  उड़न छू
लेखक-    अनिल मोहन
प्रकाशक- तुलसी पेपर बुक्स
पृष्ठ-         285
मूल्य-       30₹
अर्जुन सीरीज - नरेन्द्र नागपाल समीक्षा
काली - नरेन्द्र नागपाल
अहमदाबाद से खरीदे गये उपन्यास

5 comments:

  1. दिमाग़ का दही 😄😄

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  2. पढ़कर दिमाग उड़न छू हो जायेगा इसीलिए नाम रखा उड़न छू।
    🤣🤣🤣🤣🤣

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  3. अनिल मोहन तो अब बिल्कुल नहीं पढ़ा जाता...

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  4. उपन्यास पढ़कर तो लगता है दिमाग का दही ही होगा। सर्दी में न हो इसलिए उपन्यास नहीं पढ़ा जायेगा।

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