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Sunday, 4 April 2021

429.अरे, ओमप्रकाश- मनहर चौहान.

 तथाकथित तांत्रिक की रोचक कथा

अरे, ओमप्रकाश- मनहर चौहान
साहित्य के क्षेत्र में मनहर चौहान का नाम प्रयोगशील कथाकार के रूप में लिया जा सकता है। जहां एक तरफ इन्होंने गंभीर साहित्य के क्षेत्र में लेखन किया वहीं लोकप्रिय साहित्य में भी अपनी सार्थक उपस्थित दर्शायी है। लोकप्रिय साहित्य में स्वयं के नाम मनहर चौहान के अतिरिक्त छद्म नाम 'मीना सरकार' के नाम से भी लेखन किया है। वहीं अगर प्रयोग के रूप में देखें तो मनहर चौहान जी ने 'दस घण्टे' और 'अरे, ओमप्रकाश' जैसी रचनाओं का निर्माण किया है जो साहित्यिक और लोकप्रिय साहित्य का मिश्रण हैं।  
   'अरे, ओमप्रकाश' एक ऐसे चालाक आदमी की कथा है जो मनुष्य के स्वभाव का फायदा उठाता है। वह चालाकी के साथ लोगों को मूर्ख बनाकर अपनी जेबें भरता है। 
  कहानी का संबंध सिर्फ यूरोप से है, भारत से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है। समस्त पात्र भी यूरोपियन हैं। हालांकि प्रथम दृष्टि यह प्रतीत होता है यह कहानी भारत की है। कथानक का नाम 'ओमप्रकाश'  अवश्य भारतीय है, क्योंकि वह अमरीकी लोगों को भारत के ज्ञान के आधार पर ही मूर्ख बनाता है। लेकिन ओमप्रकाश ने तो कभी भारत देखा ही नहीं। 
"कौन ओमप्रकाश?"- यह प्रश्न सहज ही आपके मस्तिष्क में उभरा होगा।  तो हमे पहले ओमप्रकाश को ही जान लेते हैं।       "आप का एक नाम है ओमप्रकाश । भद्र सुन्दरियां आप को 'प्रिय गुरु' कहती हैं। भद्र पुरुषों के बीच आप 'ओम्नीपोटेण्ट ओम' के नाम से जाने जाते हैं । डाक्टर पियरे आर्नार्ड -- यह नाम आप का है ही । क्या इनके अलावा भी आप का कोई नाम है ?" वरिष्ठ पत्रकार दीवार की ओर देखता हुआ पूछ रहा है ।
  मिस्टर पीटर कून जो की पेशे से एक नाई है। और एक दिन कथित धर्मगुरु बन जाता है। वह लोगों आत्मिक शांति प्रदान करने के नाम भारी दक्षिणा वसूल करता है। 
     
     एक समय था जब हिप्पीवर्ग भारत में आध्यात्मिक शांति के लिए आते थे। वहीं कुछ धर्मगुरुओं ने यूरोप में भी शांति प्रदान करने वाली शाखाएं खोल ली थी। ऐसे समय में अगर कोई युरोपीय भी अपने दुकान आरम्भ कर ले तो ? इसी सोच का परिणाम था ओमप्रकाश शास्त्री की विभिन्न प्रकार की शांति प्रदान करने वाली कथित संस्थाएं।
  उपन्यास में एक गाँव का वर्णन है। जहां शास्त्री जी अपना एक संस्थान आरम्भ करते हैं। उस ग्रामवासियों के माध्यम से लोगों की मानसिक वृत्ति का अच्छा चित्रण किया गया है।
     संस्था के परिसर में नग्न स्नान और आराम करते लोगों को ग्रामवासी दूरबीन द्वारा देखते हैं। लेकिन जब वह दृश्य लोगों को दिखने बंद हो जाते हैं तब ग्रामवासी शास्त्री जी पर अश्लीलता का आरोप लगाते हैं।
          'शास्त्री' की उपाधि का गलत सलत अर्थ समझा कर, स्वयं को भारतीय तान्त्रिक घोर योगियों से जोड़ कर, ओमप्रकाश उर्फ पीटर कून ने अपने पढे-लिखे देश को भी किस तरह बेवकूफ बनाया, इस की यह सनसनीसेज सत्य कथा, ओमप्रकाण के देश के लिए चुनौती हो चाहे न हो-भारत के लिए चुनौती अवश्य है । पश्चिम की सास्कृतिक दासता, आजादी के इतने इतने वर्षों बाद भी किस बुरी तरह हमें जकड़े हुए है, किसी से छिपा नही। उन्हीं पश्चिमी देशों में भारतीय सभ्यता की धाक कितनी अधिक है, इस का आईना इस कृति में मिलेगा।
                मनहर चौहान जी का कहना है की यह उपन्यास वास्तविक घटना से प्रेरित है। मेरे विचार से ऐसे सार्थक प्रयोग होने चाहिए। सत्य घटनाएं काल्पनिक कथाओं से बहुत आगे होती हैं।
'सत्य कथाओं पर आधारित वृतान्त उपन्यासों ( डाक्यूमेंट्री नॉवल्स) के लेखन की कोई नियमित परम्परा हिन्दी में नही है । मैंने इस दिशा मे कुछेक प्रयोग किए हैं। 'सीमाएं' के बाद, इस तरह का मेरा नवीनतम प्रयास, आप के हाथो में है इस पर आप की राय जानने को उत्सुक हूँ।'
  पाठक मित्र अगर आपने यह उपन्यास पढा है तो अपनी राय अवश्य वक्त करें। 
उपन्यास - अरे, ओमप्रकाश
लेखक -   मनहर चौहान
पृष्ठ -      178
तिथि -   जून  1972

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