Sunday 7 February 2021

418. वे दिन- निर्मल वर्मा

कहां गये वो दिन...
वे दिन- निर्मल वर्मा, उपन्यास

हिंदी साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर निर्मल वर्मा को पढने का अर्थ है उनके पात्रों में स्वयं को ढाल लेना, उन में जी लेना।
   शिमला में जन्में निर्मल वर्मा कथाकार और पत्रकार रहे हैं। उनकी रचनाओं को पढने से यह तो स्पष्ट होता है कि वे ठण्डे दिनों की बात अवश्य करते हैं, क्या यह उन पर शिमला का ही प्रभाव है। निर्मल वर्मा चेकोस्लोवाकिया रह चुके हैं, इसका प्रभाव 'वे दिन' रचना में दृष्टिगत होता है।
  मैंने सबसे पहले निर्मल वर्मा जी की रचना 'परिंदे' पढी थी। अवसाद से ग्रस्त पात्रों की मार्मिक रचना थी। उसके बाद लंबे समय पश्चात उपन्यास 'वे दिन' पढा। दोनों में बहुत समानता भी है और अंतर भी। 

वे दिन- निर्मल वर्मा
वे दिन- निर्मल वर्मा
   वे दिन उपन्यास चेकोस्लोवाकिया में रह रहे एक भारतीय विद्यार्थी की कथा है। क्रिसमस के दिनों में जब काॅलेज- यूनिवर्सिटियां बंद हो जाती हैं, तब भी कुछ प्रवासी विद्यार्थी होस्टल में रहते हैं। इन्हीं में से एक है भारतीय विद्यार्थी इंदी।
   एक आस्ट्रिया महिला रायना जो की अपने पति से अलग रहती है। वह अपने पुत्र मीता के साथ चेकोस्लोवाकिया के शहर प्राग में घूमने आती है। 

    एक टयूरिस्ट एजेंसी के माध्यम से इंदी उस महिला के लिए गाइड या दूभाषिए का काम करता है।
और उनका साथ सन्न-सन्न एक अदृश्य प्रेम में परिवर्तित हो जाता है।
मैंने उसकी ओर देखा—रेस्तराँ का आधा, कटा आलोक उसके पीले तिकोने चेहरे पर गिर रहा था। मुझे लगा मैं उसके बारे में कुछ नहीं जानता…उस क्षण वह मुझे उतनी ही पराई और दूर-सी जान पड़ी जितनी पहले दिन…वह रात की शुरू की घड़ी थी। हम पुल पर खड़े थे।
      दोनों में एक प्रेम कथा आरम्भ होती है, जो की बहुत बारीक सी है। उनके साथ घूमने और फिर अलविदा कहने तक चलती है।
   लेकिन वे दिन इंदी की स्मृति में रहते हैं।
आज भी—अरसे बाद—आँखें मूँदकर मैं उन सब घटनाओं पर अँगुली रख सकता हूँ, जो सर्दी के उन दिनों में गुज़री थीं। वह ‘याद करना’ मुश्किल नहीं है। वह उतना ही आसान है जैसे हम किसी बचपन की धुन को लम्बी मुद्‌दत बाद पियानो पर बजाते हैं। ध्यान अगर भटक भी जाए, अँगुलियाँ हर नोट पर पुराना रास्ता टटोल लेती हैं।
  यह कहानी सिर्फ इंदी या रायना की नहीं और भी पात्र हैं, जिनके अपने -अपने दर्द हैं।

  कहानी के स्तर पर चाहे उपन्यास छोटा और धीमा है, पर निर्मल वर्मा अपने पात्रों और वातावरण के माध्यम से जो व्यक्त करना चाहते हैं वह अन्य कहीं पढने को नहीं मिलता।
हर पात्र एक अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। कभी -कभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि ये पात्र हम स्वयं हैं।
  मुझे याद है निर्मल वर्मा जी की कहानी 'परिंदे' पढ कर एक लड़की (मेरी साथी) स्वयं को उस कहानी की पात्र 'लतिका' समझने लगती थी और वैसे ही विषाद में डूब जाती थी।
यह जादू है निर्मल वर्मा जी लेखनी का।
     वह वातावरण को इस तरह से चित्रण करते हैं की उनकी उदासी हृदय में  उतर जाती है।
निर्मल वर्मा जी की रचनाओं में लैम्प पोस्ट, कोहरा, परिंदे, ट्राम की आवाज आदि शब्द बहुतायत में मिलते हैं और इनको वे इतनी खूबसूरती के साथ उदासी में परिवर्तित कर देते हैं कि लगता है जैसे ये सब उदासी के प्रतीक हों।
यहाँ तक की वायलिन की ध्वनि को भी-
ऑरकेस्ट्रा के वायलिन का सुर ऊपर उठा था—सुनहरा और भूरा, हवा में काँपता हुआ—जैसे कोई हाथ से मुँह ढँककर बहुत धीरे-धीरे रो रहा हो।
निर्मल वर्मा जी की शाब्दिक बौद्धिकता के कुछ और उदाहरण देखें-
-वह जल्दी में आधा वाक्य बोलकर छोड़ देती थी—आधा हवा में लटका रहता था। कुछ शब्द उसके अपने थे और वह उन्हें अनेक बार अलग-अलग अर्थ में इस्तेमाल करती थी…।
- 'वे दिन' एक चेकोस्लोवाकिया में रह रहे भारतीय विद्यार्थी की प्रेम कहा है। उपन्यास बहुत धीमा है और बहुत बौद्धिक भी।
  अगर आप निर्मल वर्मा जी के लेखन से परिचित हैं तो यह उपन्यास आपको पसंद आयेगा।
धन्यवाद.
- गुरप्रीत सिंह
  श्री गंगानगर, राजस्थान।
- sahityadesh@gmail.com



2 comments:

  1. रोचक... यह खरीद कर रखी है... जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी...

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    1. निर्मल वर्मा की 'परिंदे' कहानी भी पढें।

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