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Monday, 27 May 2019

193. धर्मयुद्ध- वेदप्रकाश शर्मा

एक युद्ध आधारित रोमांचक उपन्यास
धर्मयुद्ध- वेदप्रकाश शर्मा, जासूसी उपन्यास

वह धर्मयुद्ध था। जो मानवता और सैन्य प्रशासन के मध्य लड़ा गया। वह युद्ध जिसके लिए क्रांतिकारी अपनी जान‌पर खेल गये। सत्य और असत्य का युद्ध ।

वेदप्रकाश शर्मा जी के आरम्भिक उपन्यास पूर्णतः एक्शन उपन्यास होते थे। जिनके नायक 'विजय-विकास होते थे।
धर्मयुद्ध भी एक ऐसा ही एक्शन प्रधान उपन्यास है। यह कहानी है 'मजलिस्तान' नामक देश की, जिस पर कुछ बड़े देश अपना अधिकार जमाना चाहते हैं। कुछ अपने होकर कुछ दुश्मन होकर।

मजलिस्तान एक छोटा सा देश है। वहाँ के राष्ट्रपति है सादात। देश की आंतरिक दशा ठीक न होने पर मजलिस्तान को एक अन्य देश 'सेमिनार' की सैन्य मदद लेनी पड़ती है।
...कोई भी बड़ा मुल्क किसी भी छोटे मुल्क का दोस्त नहीं हो सकता,....—हां, अपना उल्लू सीधा करने के लिए दोस्ती का मुखौटा जरूर चढ़ा सकता है। और सेमिनार ने अपना उल्लू सीधाा किया।
एक दिन मजलिस्तान का सैन्य जनरल इबलीस सेमिनार सेना के साथ मिलकर विद्रोह कर देता और राष्ट्रपति भवन पर आक्रमण कर देता है।
राष्ट्रपति भवन के अन्दर कोहराम-सा मचा हुआ था—बाहर निरन्तर गनों की गर्जना एवं टैंकों की हुंकार गूंज रही थी—इंसानी चीखो-पुकार का बाजार गर्म था।
ऐसा महसूस हो रहा था जैसे राष्ट्रपति भवन के आस-पास का क्षेत्र एकाएक ही किसी युद्धस्थल में बदल गया हो—बाहर आग बरस रही थी—इंसानी चीखें गूंज रही थीं।
प्रलय-सी आ गई थी।
हर तरफ चीखो-पुकार, हाहाकार, कोहराम और मारकाट।
एक ही मुल्क की सेना दो हिस्सों में बंटकर युद्ध करने लगी थी। एक हिस्से का प्रयास राष्ट्रपति भवन पर कब्जा कर लेना था और दूसरे का उसकी हिफाजत करना।

      अब मजलिस्तान पर अन्य देश की सेना का कब्जा है और जनता पर अत्याचार होते हैं। लेकिन देश की जनता इसके खिलाफ मोर्चा लेती है। और एक संस्था 'रक्त तिलक' का जन्म होता है।
   

"सच्चाई ये है किसी मजलिस्तान की जनता की आवाज और आरजुओं का गला घोंटा जा रहा है। उन पर मनमाने जुल्म किए जा रहे हैं। सच्चाई ये है कि इस मुल्क को गुलाम बना लिया गया है—मुल्क पर हुकूमत करने वाला इबलीस, कर्नल तोम्बो और गार्जियन की कठपुतली है—सेमिनार नाम के बड़े मुल्क ने मजलिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया है—इबलीस ने सेमिनार की शर्तें स्वीकार की थीं, उनके मुताबिक मजलिस्तान में सेमिनार के लड़ाकू हवाई अड्डे—नौसैनिक अड्डे और छावनियों की स्थापना की जा रही है—सच्चाई वही है—यह कि एक बार फिर वही हुआ है जैसा इतिहास के मुताबिक हमेशा ही सम्पन्न देश अपने छोटे मित्र देश के साथ करते रहे हैं।


         'रक्त तिलक' मजलिस्तान के देशभक युवाओं की एक संस्था जो अपने देश से विदेशी शासन से मुक्त देखना चाहती है।
           रक्त तिलक भारतीय डाक्टर भसीन का अपहरण कर लेती है। ताकी प्रशासन पर दवाब बनाया जा सके। डाक्टर भसीन को रक्त तिलक से मुक्त करवाने भारत से जासूस डबल एक्स फाईव यानि के विकास मेमिनार आता है।
पहली टक्कर में ही रक्त तिलक भी स्वीकार कर लेता है की विकास में दम है। "लोग इसे शेर का बच्चा कहते हैं, ....और आज के टकराव के बाद मैंने जाना कि डबल एक्स फाइव वाकई शेर के बच्चे का नाम है।"

              मजलिस्तान के सैन्य प्रशासन को सीधी धमकी मिलती है।- दुनिया के लिए मेरा सन्देश खत्म—और अब वे सुनें जिन्होंने इस मुल्क को गुलाम बना रखा है—हां—मैं तुम्हीं से कह रहा हूं गद्दार इबलीस—कर्नल तोम्बो—गार्जियन और यदि सेमिनार सुन रहा है तो वह भी कान खोलकर सुन ले—..... इस मुल्क की जनता पर हुए एक-एक जुल्म का हिसाब लेगा—इस मुल्क के आवाम को गुलाम बनाने के तुम्हारे जुर्म की सजा देने के लिए आया हूं मैं।

लेकिन परिस्थितियों जल्द ही बदल जाती हैं। विजय और अलफांसे भी मैदान में आ जाते हैं। एक तरफ मजलिस्तान के विद्रोही हैं एक तरफ मजलिस्तान के शासक हैं। विजय और विकास की टक्कर है तो वहीं अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे भी अपने गुल खिला रहा है।
क्या रहस्य है इनके पीछे, क्यों टकरा जाते हैं सभी आपस में।
- क्या मजलिस्तान स्वतंत्र हो पाया?
- रक्त तिलक से विकास डाक्टर को आजाद करवा सका?
- रक्त तिलक और विकास की जंग का परिणाम क्या निकला?
- इन सबके बीच अलफांसे का क्या काम था?
- आखिर क्यों विजय और विकास एक दूसरे से टकरा बैठे?
- करनल इबलीस, तोम्बो और गार्जियन का क्या हुआ?


इन प्रश्नों के उत्तर तो वेदप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास 'धर्मयुद्ध' में ही मिलेंगे।


उपन्यास में विकास का रौद्र रुप वर्णित है। 'रक्त तिलक' के सदस्य इशाक के साथ उसका वीभत्स व्यवहार बहुत बुरा लगता है।
             विजय की भूमिका एक हास्य के रूप में आरम्भ होती है। बहुत से उपन्यासों में देखा गया है की विजय की 'बकवास' वास्तव में अपठनीय होती है लेकिन इस उपन्यास में विजय का इबलीस, तोम्बो आदि के साथ वार्तालाप पाठक के चेहरे पर मुस्कान ला देता है।
                 राष्ट्रपति सादात की पुत्री मुमताज का करैक्टर बहुत अच्छा और मन को छू लेने वाला है। यह पठनीय है की एक राष्ट्रपति की बेटी अपने दुश्मनों से कैसे टकराती है।
               अलफांसे, बस नाम ही काफी है। लूमड़- यह एक ऐसी चिड़िया का नाम है, जो जिस खेत में चाहें दाना चुग लेती है।
उपन्यास में अलफांसे उर्फ लूमड की उपस्थित उपन्यास को और भी रोचक बना देती है।
     उपन्यास में वर्णित 'बख्तरबंद वैन' का वर्णन अविस्मरणीय है। एक ऐसी वैन जो काल का दूसरा नाम है। किस वैन की उपन्यास में जबरदस्त भूमिका है।

अगर आप वेदप्रकाश शर्मा के विजय- विकास सीरिज के पाठक हैं तो यह उपन्यास आपका भरपूर मनोरंजन करेगा।

निष्कर्ष-
अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर लिखा तेज -रफ्तार एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास में जहाँ एक तरफ विकास का खतरनाक रूप सामने है वहीं विजय की बुद्धि।
गुरु-शिष्य की टक्कर और अलफांसे की चालाकी से भरा यह उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- धर्मयुद्ध
लेखक-  वेदप्रकाश  
शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स-मेरठ

2 comments:

  1. जबरदस्त उपन्यास है, ऐसी कहानी सिर्फ वेद प्रकाश शर्मा जी ही लिख सकते थे।

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  2. रोचक। उपन्यास मिला तो पढ़ूँगा।

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