Wednesday 17 April 2019

183. एक करोड़ का जूता- सुरेन्द्र मोहन पाठक

किस्सा एक करोड़ के जूते का।
एक करोड़ का जूता- सुरेन्द्र मोहन पाठक

        सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के थ्रिलर उपन्यास मेरी विशेष पसंद हैं। यह उपन्यास तो अपने नाम से ही बहुत रोचक है।
एक बार उपन्यास के बारे में चर्चा कर लेते हैं। प्रस्तुत कथन इतना प्रभावशाली है की पाठक उपन्यास पढे बिना नहीं रह सकता।
"सत्तरह साल से, हर साल, बिना नागा आपको जन्म दिन पर दो हजार रूपये का मनीआॅर्डर हासिल हो रहा है?"
"जी हाँ"
"अपने पिता की तरफ से?"
"जी हाँ"
"अपने उस पिता की तरफ से जो की सत्तरह साल से गायब है?"
"जी हां।"
"ऐसा पहला मनी आॅर्डर आपको कब हासिल हुआ?"
"दस नवम्बर 1967 को। मेरी ग्यारहवीं वर्षगांठ पर। मेरे डैडी के गायब होने के बाद वह मेरी पहली वर्षगांठ थी।" (पृष्ठ-06-07)

       उक्त संवाद सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'एक करोड़ का जूता' से हैं। उपन्यास की कहानी एक ऐसे शख्स की है जो सत्तरह साल से गायब है लेकिन उसके एकमात्र वारिस उसके पुत्र के जन्मदिन गायब बाप की तरफ से एक मनीआॅर्डर अवश्य आता है।
                       यह कहानी आरम्भ होती है गोपाल यशवंत अवतारमानी जो 'इलैक्ट्रा कारपोरेशन' नामक कम्पनी का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर है। गोपाल को खतरा रहता है अपनी जान का। उस खतरे से बचने का उसके पास एक ही रास्ता है वह है सफेद रंग का 'एक करोड़ का जूता। गोपाल का एक दस वर्ष का पुत्र है मोती अवतारमानी, गोपाल अपने पुत्र को भी यह बात बताता है- जब भी मैं अपने आपको खतरे में पाता हूं, मैं वह एक करोड़ का सफेद जूता पहन लेता हूँ। मोती, भविष्य में कभी भी तू मुझे यह सफेद जूता पहने देखे तो समझ लेना तेरे बाप के सिर पर जान या माल का कोई खतरा मंडरा रहा है। (पृष्ठ-29)
                         एक दीपावली की रात को गोपाल अवतारमानी अपने घर से सफेद जूता पहन कर गायब हो गया। वह कहां गया, मर गया या जिंदा है उसका कुछ पता नहीं चलता। लेकिन एक रहस्य बरकरार रहता है। वह रहस्य है मोती के जन्मदिन पर गोपाल अवतारमानी के हस्ताक्षर युक्त दो हजार रुपये का मोती के नाम मनीआॅर्डर आना।
गोपाल अवतारमानी के गायब होने के सत्तरह साल बाद मोती अपने पिता की तलाश में निकलता है

                    "हकीकत यह है कोतवाल साहब"- मोती तनिक कठिन स्वर में बोला -" कि मेरा बाप कैसा भी था, आखिर मेरा बाप था और मैं उससे बहुत प्यार करता था। एक जिम्मेदार, फरमाबदार बेटा होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं पता लगाऊं कि आखिर उसे क्या हुआ था?"(पृष्ठ-112)
                        जैसे ही यह खबर फैलती है की मोती अपने पिता की तलाश में है तो सत्तरह साल पुराने लोग एक बार फिर सक्रिय हो जाते हैं। कुछ मोती की मदद के लिए तो कुछ मोती के राह की मुश्किल बनने के लिए।
इलैक्ट्रा कारपोरेशन के भूतपूर्व चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर गोपाल यशवंतराय अवतारमानी -जो कि पिछले सत्तरह साल से गायब है- का लड़का अपने पिता के पुराने जोड़ीदार के साथ मिलकर अपने पिता की लाश तलाश करने की कोशिश कर रहा है ताकि वह उसके बीमे की दस लाख रकम क्लेम कर सके।

- आखिर गोपाल यशवंत अवतारमानी कहां गायब हो गया?
- वह जिंदा था या मर गया?
- क्या रहस्य था उसके एक करोड़ के जूते में?
- क्या मोती अपने बाप को खोज पाया?
- क्या यह मात्र बीमा रकम का खेल था?
- कौन लोग थे जो नहीं चाहते थे मोती सत्य तक पहुंचे?

ऐसे रहस्यमय प्रश्नों के उत्तर तो पाठक जी का उपन्यास 'एक करोड़ का जूता' ही दे सकता है।

               यह एक दिलचस्प कथानक है। सर्वप्रथम तो उपन्यास का शीर्षक ही पाठक को आकृष्ट करने में सक्षम है की आखिर कोई जूता एक करोड़ का कैसे हो सकता है। दूसरा यह की उपन्यास के आरम्भ में यह पता चलता है की गायब गोपाल अपने पुत्र को जन्मदिन पर मनीआॅर्डर अवश्य भेजता है। आखिर वह ऐसा क्यों कर रहा है। ऐसे कई सवालों के साथ उपन्यास आरम्भ होता है और जैसे -जैसे आगे बढता है वैसे-वैसे कई और रहस्य अपने साथ समेट लेता है।


             गोपाल का एक साथी है चक्रवर्ती। गोपाल गायब है और चक्रवर्ती जेल में। जिस चक्रवर्ती के साथ गोपाल ने सभी प्लान बनाये उस चक्रवर्ती को भी कुछ समझ में नहीं आया की गोपाल कहां है और सत्तरह साल बाद चक्रवर्ती भी आ धमकता है उस एक करोड़ के जूते के लिए। जब गोपाल ही नहीं मिला तो जूता कहां से‌ मिलता। फिर तलाश आरम्भ होती है गोपाल की जो एक नहीं कई शहरों से गुजरती हुयी अपने गंतव्य तक पहुंचती है। लेकिन यह रास्ता इतना आसान भी नहीं था। अपने पिता की खोज में निकले मोती को हर कहीं मौत टकराती है।

भाषा शैली-
                उपन्यास की भाषा सामान्य बोलचाल की भाषा है जिसमें कहीं कोई क्लिष्ट शब्दावली नहीं है। पात्रों के अनुकूल संवाद हैं। उपन्यास के कुछ संवाद पठनीय है।
इंसान की जिंदगी में कभी ऐसा वक्त भी आता है जब कि उसे वह पुल नष्ट कर देना पड़ता है जिस पर से होकर वह आगे बढा होता है। (पृष्ठ-38)

                  जब गोपाल गायब होता है तब मोती की उम्र दस साल थी। सत्तरह साल बाद जब वह अपने पिता को खोजने निकलता है तो वह सताइस साल का होगा लेकिन एक-दो जगह उसे अट्ठारह साल का दिखाया गया है।
               मोती अपने पिता की तलाश में सवा दौ सौ लोगों की‌ लिस्ट लेकर घूमता है लेकिन वह किस-किस से मिलता है यह कहीं नहीं दर्शाया गया। अगर यह विवरण मिल जाता तो उपन्यास का आनंद और बढ जाता। बस एक जगह उदयपुर (राजस्थान) का वर्णन अवश्य आता है।‌
निष्कर्ष -
              सुरेन्द्र मोहन पाठक का उपन्यास 'एक करोड़ का जूता' एक थ्रिलर उपन्यास है। यह एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति की कहानी है जो सत्तरह वर्ष से गायब है।
उपन्यास आदि से अंत तक पठनीय और रोचक है। कहानी शुरुआती पृष्ठ से ही पाठक को सम्मोहित करने में सक्षम है।

उपन्यास-  एक करोड़ का जूता
लेखक-     सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक
प्रकाशक-  रजत प्रकाशन मेरठ
पृष्ठ- -       237

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