मैं जीना चाहती हूँ.... माँ
अधूरा इंसाफ.... एक और दामिनी, राम पुजारी, सामाजिक उपन्यास।
भारत एक ऐसा देश है जहाँ नारी शक्ति की पूजा की जाती है, नारी को देवी माना जाता है। इसलिए भारतीय धर्मग्रंथ कहते हैं।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
नारी के विभिन्न रूप हैं, वह माँ, बहन, पत्नी आदि विभिन्न रूपों में आदरणीय है, पूज्य है। लेकिन भारतीय संस्कृति अपने जीवन मूल्यों को खो रही है और उसी का दुष्परिणाम है जिस देश में नारी की पूजा की जाती थी वहीं आज स्त्री एक भोग की वस्तु मात्र ही तो बन कर रह गयी। (पृष्ठ-119)
राम पुजारी जी एक सामाजिक उपन्यासकार हैं। वे समाज को बहुत गहरे से देखते हैं और जो विकृति उन्हें नजर आती वे उसे कहानी का रूप दे देते हैं। वह कहानी मात्र मनोरंजन की दृष्टि से नहीं लिखते बल्कि समाज पर एक व्यंग्य करते हैं, समाज की निकृष्टता को समाने लाते हैं।
राम पुजारी जी का एक सामाजिक उपन्यास है 'अधूरा इंसाफ.....एक और दामिनी'। यह उपन्यास एक वास्तविक घटना पर आधारित है या यूं कह सकते है इस उपन्यास के माध्यम से लेखक महोदय ने दिल्ली में16 दिसंबर 2012 में घटित एक घटना का वर्णन किया है। यह मात्र एक उपन्यास नहीं है बल्कि एक दुर्घटना का जीवंत चित्रण है।
यह कहानी है वैदेही की। दिल्ली निवासी वैदेही एक सामान्य परिवार की लड़की। वैदेही के दो भाई-बहन और भी हैं। माँ- बाप मेहनत-मजदूरि करके अपने बच्चों को शिक्षित करते हैं।- वैदेही प्रतिभाशाली है, और उसकी प्रतिभा को सही दिशा मिल जाये तो वह जिंदगी में बहुत कुछ हासिल कर सकती है। (पृष्ठ-31) लेकिन उसे हासिल क्या हुआ।
स्त्री आज के आधुनिक युग में भी अपने आपको एक जंगल में पाती है, जहाँ के जानवर थोड़ा पढ-लिख कर सुंदर कपड़े पहनना सीख गये। (पृष्ठ-110)
कुछ आधुनिक युग के शिक्षित जानवरों ने वैदेही के सपने को चकनाचूर कर दिया। स्त्री की यह नियति रही की वह स्त्री है। क्या नारी होना भी एक गुनाह है। हम जिस गर्भ से जन्म लेते हैं उसी गर्भ के प्रति हमारी सोच इतनी निकृष्ट क्यों?
....और लड़की का इसमें कोई कसूर नहीं, सिवाय इसके कि वह लड़की है।(पृष्ठ-53)। बलात्कार एक एक ऐसा कृत्य है जो पीड़ित की आत्मा तक को खत्म कर देता है- रेप,बलात्कार कहने को एक अपराध है, जिसमें शारीरिक घाव तो सभी को दिखाई दे जाते हैं, आंतरिक चोट का अंदाजा उसे ही होता है, जिसने इसे सहा है।(पृष्ठ-110) यह दर्द सहती है वैदेही।
वैदेही अमानवीय कृत्य को सह न सकी और इस दुनियां को अलविदा कह गयी लेकिन अपने पीछे असंख्य प्रश्न छोड़ गयी। उन प्रश्नों का जवाब हमें तलाशना है, सिर्फ जवाब ही नहीं बल्कि ऐसे कुकृत्य फिर न हो यह कोशिश भी करनी है।
नारी की दर्द को दर्शाती राम पुजारी जी की यह रचना वर्तमान समाज का यथार्थ दर्शाती है। एक तरफ हम शिक्षा का स्तर बढा रहे हैं वहीं हमारे सामाजिक और नैतिक मूल्यों का तेजी क्षय हो रहा है। हम मात्र भौतिकवादी बन कर रह गये। यह भौतिकता एक दिन हमें कहां लेकर जायेगी यह विचारणीय प्रश्न है।
उपन्यास में वैदेही के घटनाक्रम के साथ-साथ उस समय दिल्ली में हुये प्रदर्शन का भी चित्रण है।
मानवीय संवदेना को झकझोरता यह उपन्यास हमारे समाज के समक्ष एक दर्पण है जो हमें हमारी वास्तविक से परिचित करवाता है।
उपन्यास मात्र एक बलात्कार पीड़ित स्त्री की हि कहानी नहीं बल्कि यह समाज और प्रशासन की कई कमियां को भी दर्शाया है।
नारी के प्रति भारतीय समाज का दृष्टिकोण तो इस उपन्यास में बहुत जगह नजर आता है। जहाँ तक की कुछ लोग तो पीडिता को ही दोषी मानते हैं। ये विचार सामान्य जनता के ही नहीं कुछ धार्मिक बाबा और नेताओं के भी हैं।-आज भी ये पुरुष प्रधान समाज ही है, जहाँ प्रत्येक बात के लिए औरत को ही दोषी माना जाता है। (पृष्ठ-85)
मानव और वैदेही को पुलिस ने घायल अवस्था होने पर भी नजरअंदाज किया। वहीं पुलिस के व्यवहार पर लेखक ने बहुत अच्छा लिखा है।- दरअसल, आम भारतवासी पुलिस स्टेशन जाने से डरता है। और जो डरता नहीं.... उसका विश्वास उस दिन चकनाचूर हो जाता है, जिस दिन उसे दुर्भाग्यवश पुलिस स्टेशन जाना पड़ता है....।(पृष्ठ-20)
वर्तमान भौतिक युग में हमारे रिश्ते भी खत्म होते जा रहे हैं। कभी स्वयं के मौहल्ले की ही नहीं बल्कि पूरे गाँव की लड़की बहन होती थी और अब सिनेमा-टीवी ने भाई-बहन के रिश्ते भी खत्म कर दिये। इसी दर्द को लेखक ने लिखा है- अधिकतर लड़कियां सिर्फ बाॅयफ्रेण्ड बनाती हैं और लड़के गर्लफ्रेंड । भाई-बहन का ख्याल तो दोनों में किसी के सपने में भी नहीं आता। (पृष्ठ-190)
ऐसे अनेक प्रश्न उपन्यास में उठते हैं जो हमें सोचने को विवश करते हैं की आखिर हम जा किस राह रहे हैं।
उपन्यास की भाषा शैली सहज और सरल है कहीं भी कोई क्लिष्ट शब्दावली प्रयुक्त नहीं हुयी कुछ कथन स्मरणीय है।- ये जीवन एक संघर्ष है। यदि किसी काम में सफलता न मिले तो अपनी कोशिशों को सौ गुणा बढा देना चाहिए।(पृष्ठ-33)
उपन्यास में एक दो जगह शाब्दिक गलतियाँ को छोड़ दे तो कुछ कमी नहीं, हाँ, कहीं-कहीं अनावश्यक विस्तार अवश्य खटकता है। लेखक को प्रत्येक घटना का विस्तार से वर्णन की जगह कुछ बाते संकेत में बता देनी चाहिए।
निष्कर्ष-
'अधूरा इंसाफ....एक और दामिनी' वर्तमान पुरूष प्रधान समाज में नारी के प्रति सोच को प्रर्दशित करता एक सार्थक उपन्यास है। आज चाहे हम कितने भी शिक्षित हो गये लेकिन स्त्री के प्रति विचार नकारात्मक ज्यादा रहे।
वास्तविक का चित्रण करता यह उपन्यास मात्र पठनीय ही नहीं बल्कि विचारणीय भी है।
उपन्यास- अधूरा इंसाफ....एक और दामिनी
लेखक- राम पुजारी
प्रकाशक- GullyBaba
www.gullybaba.com
पृष्ठ-_ 198
मूल्य- 160
लव जिहाद- राम पुजारी
उपन्यास विमोचन- YouTube video
अधूरा इंसाफ.... एक और दामिनी, राम पुजारी, सामाजिक उपन्यास।
लेखक राम पुजारी जी के साथ (दिल्ली) |
भारत एक ऐसा देश है जहाँ नारी शक्ति की पूजा की जाती है, नारी को देवी माना जाता है। इसलिए भारतीय धर्मग्रंथ कहते हैं।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
नारी के विभिन्न रूप हैं, वह माँ, बहन, पत्नी आदि विभिन्न रूपों में आदरणीय है, पूज्य है। लेकिन भारतीय संस्कृति अपने जीवन मूल्यों को खो रही है और उसी का दुष्परिणाम है जिस देश में नारी की पूजा की जाती थी वहीं आज स्त्री एक भोग की वस्तु मात्र ही तो बन कर रह गयी। (पृष्ठ-119)
राम पुजारी जी एक सामाजिक उपन्यासकार हैं। वे समाज को बहुत गहरे से देखते हैं और जो विकृति उन्हें नजर आती वे उसे कहानी का रूप दे देते हैं। वह कहानी मात्र मनोरंजन की दृष्टि से नहीं लिखते बल्कि समाज पर एक व्यंग्य करते हैं, समाज की निकृष्टता को समाने लाते हैं।
राम पुजारी जी का एक सामाजिक उपन्यास है 'अधूरा इंसाफ.....एक और दामिनी'। यह उपन्यास एक वास्तविक घटना पर आधारित है या यूं कह सकते है इस उपन्यास के माध्यम से लेखक महोदय ने दिल्ली में16 दिसंबर 2012 में घटित एक घटना का वर्णन किया है। यह मात्र एक उपन्यास नहीं है बल्कि एक दुर्घटना का जीवंत चित्रण है।
यह कहानी है वैदेही की। दिल्ली निवासी वैदेही एक सामान्य परिवार की लड़की। वैदेही के दो भाई-बहन और भी हैं। माँ- बाप मेहनत-मजदूरि करके अपने बच्चों को शिक्षित करते हैं।- वैदेही प्रतिभाशाली है, और उसकी प्रतिभा को सही दिशा मिल जाये तो वह जिंदगी में बहुत कुछ हासिल कर सकती है। (पृष्ठ-31) लेकिन उसे हासिल क्या हुआ।
स्त्री आज के आधुनिक युग में भी अपने आपको एक जंगल में पाती है, जहाँ के जानवर थोड़ा पढ-लिख कर सुंदर कपड़े पहनना सीख गये। (पृष्ठ-110)
कुछ आधुनिक युग के शिक्षित जानवरों ने वैदेही के सपने को चकनाचूर कर दिया। स्त्री की यह नियति रही की वह स्त्री है। क्या नारी होना भी एक गुनाह है। हम जिस गर्भ से जन्म लेते हैं उसी गर्भ के प्रति हमारी सोच इतनी निकृष्ट क्यों?
....और लड़की का इसमें कोई कसूर नहीं, सिवाय इसके कि वह लड़की है।(पृष्ठ-53)। बलात्कार एक एक ऐसा कृत्य है जो पीड़ित की आत्मा तक को खत्म कर देता है- रेप,बलात्कार कहने को एक अपराध है, जिसमें शारीरिक घाव तो सभी को दिखाई दे जाते हैं, आंतरिक चोट का अंदाजा उसे ही होता है, जिसने इसे सहा है।(पृष्ठ-110) यह दर्द सहती है वैदेही।
वैदेही अमानवीय कृत्य को सह न सकी और इस दुनियां को अलविदा कह गयी लेकिन अपने पीछे असंख्य प्रश्न छोड़ गयी। उन प्रश्नों का जवाब हमें तलाशना है, सिर्फ जवाब ही नहीं बल्कि ऐसे कुकृत्य फिर न हो यह कोशिश भी करनी है।
नारी की दर्द को दर्शाती राम पुजारी जी की यह रचना वर्तमान समाज का यथार्थ दर्शाती है। एक तरफ हम शिक्षा का स्तर बढा रहे हैं वहीं हमारे सामाजिक और नैतिक मूल्यों का तेजी क्षय हो रहा है। हम मात्र भौतिकवादी बन कर रह गये। यह भौतिकता एक दिन हमें कहां लेकर जायेगी यह विचारणीय प्रश्न है।
उपन्यास में वैदेही के घटनाक्रम के साथ-साथ उस समय दिल्ली में हुये प्रदर्शन का भी चित्रण है।
मानवीय संवदेना को झकझोरता यह उपन्यास हमारे समाज के समक्ष एक दर्पण है जो हमें हमारी वास्तविक से परिचित करवाता है।
उपन्यास मात्र एक बलात्कार पीड़ित स्त्री की हि कहानी नहीं बल्कि यह समाज और प्रशासन की कई कमियां को भी दर्शाया है।
नारी के प्रति भारतीय समाज का दृष्टिकोण तो इस उपन्यास में बहुत जगह नजर आता है। जहाँ तक की कुछ लोग तो पीडिता को ही दोषी मानते हैं। ये विचार सामान्य जनता के ही नहीं कुछ धार्मिक बाबा और नेताओं के भी हैं।-आज भी ये पुरुष प्रधान समाज ही है, जहाँ प्रत्येक बात के लिए औरत को ही दोषी माना जाता है। (पृष्ठ-85)
मानव और वैदेही को पुलिस ने घायल अवस्था होने पर भी नजरअंदाज किया। वहीं पुलिस के व्यवहार पर लेखक ने बहुत अच्छा लिखा है।- दरअसल, आम भारतवासी पुलिस स्टेशन जाने से डरता है। और जो डरता नहीं.... उसका विश्वास उस दिन चकनाचूर हो जाता है, जिस दिन उसे दुर्भाग्यवश पुलिस स्टेशन जाना पड़ता है....।(पृष्ठ-20)
वर्तमान भौतिक युग में हमारे रिश्ते भी खत्म होते जा रहे हैं। कभी स्वयं के मौहल्ले की ही नहीं बल्कि पूरे गाँव की लड़की बहन होती थी और अब सिनेमा-टीवी ने भाई-बहन के रिश्ते भी खत्म कर दिये। इसी दर्द को लेखक ने लिखा है- अधिकतर लड़कियां सिर्फ बाॅयफ्रेण्ड बनाती हैं और लड़के गर्लफ्रेंड । भाई-बहन का ख्याल तो दोनों में किसी के सपने में भी नहीं आता। (पृष्ठ-190)
ऐसे अनेक प्रश्न उपन्यास में उठते हैं जो हमें सोचने को विवश करते हैं की आखिर हम जा किस राह रहे हैं।
उपन्यास की भाषा शैली सहज और सरल है कहीं भी कोई क्लिष्ट शब्दावली प्रयुक्त नहीं हुयी कुछ कथन स्मरणीय है।- ये जीवन एक संघर्ष है। यदि किसी काम में सफलता न मिले तो अपनी कोशिशों को सौ गुणा बढा देना चाहिए।(पृष्ठ-33)
उपन्यास में एक दो जगह शाब्दिक गलतियाँ को छोड़ दे तो कुछ कमी नहीं, हाँ, कहीं-कहीं अनावश्यक विस्तार अवश्य खटकता है। लेखक को प्रत्येक घटना का विस्तार से वर्णन की जगह कुछ बाते संकेत में बता देनी चाहिए।
निष्कर्ष-
'अधूरा इंसाफ....एक और दामिनी' वर्तमान पुरूष प्रधान समाज में नारी के प्रति सोच को प्रर्दशित करता एक सार्थक उपन्यास है। आज चाहे हम कितने भी शिक्षित हो गये लेकिन स्त्री के प्रति विचार नकारात्मक ज्यादा रहे।
वास्तविक का चित्रण करता यह उपन्यास मात्र पठनीय ही नहीं बल्कि विचारणीय भी है।
उपन्यास- अधूरा इंसाफ....एक और दामिनी
लेखक- राम पुजारी
प्रकाशक- GullyBaba
www.gullybaba.com
पृष्ठ-_ 198
मूल्य- 160
लव जिहाद- राम पुजारी
उपन्यास विमोचन- YouTube video